Saturday, August 21, 2010

गुजरात के गौरव में कांग्रेस का कबाड़ा


निरंजन परिहार
गुजरात सरकार और नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में कांग्रेस का कबाड़ा हो रहा है। सोहराबुद्दीन जैसे अपराधी की मौत को फर्जी मुठभेड़ साबित करने की कोशिश में जुटी कांग्रेस को पता नहीं यह आइडिया किसने दिया। लेकिन अब यह जरूर पता चल रहा है कि इस पूरे मामले में भावनात्मक स्तर पर कांग्रेस को नुकसान तय है।
कुछ साल पहले तक गुजरात में महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के अलावा कोई और नेता नहीं था, जिसको लेकर आम गुजराती के मन में गर्व का भाव रहा हो। लेकिन नरेंद्र मोदी ने पिछले कुछेक सालों में दुनिया के किसी भी कोने में बसनेवाले गुजराती के मन में उसके गुजराती होने के गौरव का नए सिरे से संचार किया है। यही वजह है कि आम गुजराती के मन में यही भावना है कि गुजरात और उसके गौरव को चोट पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन को माफी पाने का कोई हक नहीं है। कांग्रेस को इसी का सबसे बड़ा नुकसान होगा।
गुजरात के मामले में कांग्रेस, सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट इन तीनों के बर्ताव से देश के आम आदमी को तो यही लग रहा है, जैसे सोहराबुद्दीन इस देश का कोई बहुत मासूम और साधा सादा नागरिक हो। लेकिन आम गुजराती यह अच्छी तरह जानता है कि सोहराबुद्दीन कोई आपके और हमारे जैसा सामान्य नागरिक नहीं था, जिसके मारे जाने पर गुजरात के गौरव पर कलंक लगाने की कोशिश की जा रही है। जो लोग सोहराबुद्दीन को नहीं जानते उनको सिर्फ यह बताना ही काफी है कि मध्य प्रदेश के झरनिया नामक एक दूर दराज के छोटे से गांव में उसके घर से पुलिस को चालीस अत्याधुनिक एके – 47 राइफलें, कई जिंदा कारतूस और हैंड ग्रेनेड़ मिले। वह भारत के पांच राज्यों में वांटेड़ था और उस पर 40 से ज्यादा जघन्य अपराध आज भी दर्ज हैं। फिर भी कांग्रेस, पता नहीं क्या सोचकर गुजरात के खिलाफ उसे मुर्दा होने के बावजूद हीरो बनाने की कोशिश में जुटी है। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसी की पार्टी के शासन वाले महाराष्ट्र में सोहराबुद्दीन पर कोल्हापुर के चांदगढ़ पुलिस स्टेशन में सन 2000 में हत्या करने के उद्देश्य से सरेआम फायरिंग का मुकद्दमा दर्ज है। और उसी चांदगढ़ पुलिस स्टेशन के पन्नों में सन 2005 में षड़यंत्र करके हत्या करने का एक और मुकद्दमा भी सोहराबुद्दीन पर दर्ज है। कांग्रेस के शासनवाले महाराष्ट्र में वहां सोहराबुद्दीन पर क्या कार्रवाई हुई, और नहीं हुई, तो क्यों नहीं हुई, कांग्रेस इस पर बोलने को बिल्कुल तैयार नहीं है।
न केवल गुजरात और देश, बल्कि पूरी दुनिया के गुजरातियों में सबसे पहली बदनामी तो कांग्रेस की इस बात को लेकर हो रही है कि एक कुख्यात अपराधी की पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले में गुजरात और मोदी को घेरने के लिए कांग्रेस, सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट तीनों का गठबंधन देश और दुनिया के सामने सार्वजनिक हो गया। और यह भी साफ हो गया कि कांग्रेस इन दोनों का जमकर इस्तेमाल कर रही है। भले ही केंद्र में सरकार कांग्रेस की है। लेकिन उसके हर आदेश को सर झुकाकर मानना सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट की मजबूरी नहीं है। लेकिन ऐसा पहले भी होता रहा है, इसीलिए इस मामले में भी हो रहा है। और कुछ ज्यादा ही हो रहा है। सोहराबुद्दीन केस में कांग्रेस ने न केवल सीबीआई का अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। बल्कि अब तो यह भी साफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को किस तरह कांग्रेस ने सीबीआई के जरिए साध कर उससे कैसे सोहराबुद्दीन मामले में सीबीआई जांच के आदेश करवाए। आपकी जानकारी के लिए यहां यह भी बताना जरूरी है कि कांग्रेस के शासन में जिस भोपाल में जिस गैस हादसे में 30 हजार निर्दोष लोगों की मौत जैसे बेहद गंभीर और संवेदनशील मामले की चार्जशीट तीन पेज, जी हां सिर्फ तीन पेज की। और सोहराबुद्दीन जैसे एक अपराधी की मौत के मामले की चार्जशीट पूरे तीन हजार पेज की। कांग्रेस की असली मंशा को सिर्फ इसी से समझा जा सकता है।
सीबीआई सोहराबुद्दीन के इस मामले की सुनवाई के लिए भी गुजरात को उपयुक्त राज्य मानने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई ने अपील की है कि इस मामले की सुनवाई राज्य के बाहर की जाए। हो सकता है, बाकी दो मुकद्दमों की तरह इसकी भी गुजरात से बाहर सुनवाई हो, लेकिन इसके बारे में केंद्र सरकार पर गुजरात की न्याय व्यवस्था पर शक करने का आरोप लगाने के मोदी के पलटवार से गुजरात के वकील, जज और वहां की न्याय व्यवस्था में भरोसा करने वाला आम नागरिक कांग्रेस से बेहद नाराज है। इस मुद्दे पर पूरी तरह मोदी के साथ खड़ा दिख रहा है।
कांग्रेस खुद भी जानती है कि सोहराबुद्दीन कोई सामान्य इंसान तो था नहीं, जिसके मारे जाने पर इतना बवाल खड़ा किया जाए। लेकिन वह यह भी जानती है कि मुसलमानों की भावनाओं से खेलने के लिए गुजरात सरकार और नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में सोहराबुद्दीन की मौत को फर्जी मुठभेड़ ही सबसे आसान मुद्दा हो सकती थी। मगर कांग्रेस को यह पता नहीं है कि मोदी को घेरने की कोशिश में जो बेवकूफियां हुई है, और लगातार की जा रही हैं, उसी की वजह से आम गुजराती को लग रहा है कि कांग्रेस पूरे गुजरात के गौरव को ही कठघरे में खड़ा कर रही है। सही मायने में देखा जाए तो एक अपराधी की लाश की शह पर नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में कांग्रेस को जो नुकसान हो रहा है, इसके दूरगामी परिणाम बहुत गंभीर होंगे। दाऊद और लतीफ जैसे कुख्यात अपराधियों के लिए काम करने वाले एक कुख्यात अपराधी को मारे जाने के इस मामले को जितना तूल मिलेगा, न केवल गुजरात बल्कि पूरे देश में कांग्रेस को और नुकसान होगा, यह उसे समझना चाहिए। यह सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने सिर्फ गुजरात में ही नहीं दुनिया में कहीं भी बसनेवाले गुजराती के मन में उसके गुजराती होने के गौरव का संचार किया है। और गुजरात की जनता को यह कतई गवारा नहीं है कि गौरव के उस अहसास के साथ कोई छेड़छाड़ करे। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि नरेंद्र मोदी गुजरात के गौरव के उस अहसास का अभिन्न तत्व बन गए हैं। लेकिन समझ में आए तब न !

दिमाग के दिवालिएपन की दास्तान


निरंजन परिहार
पता नहीं, राज ठाकरे को यह मालूम है कि नहीं, लेकिन अब पूरी दुनिया को पता चल गया है कि उन्हें अपने दिमाग का इलाज कराने की जरूरत है। मुंबई में फैल रहे मलेरिया के लिए राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार ठहराते हुए जो बयान दिया है, उसके बाद तो कम से कम यही लगता है। अब राज ठाकरे से एक यह सवाल भी पूछ लेने का मन करता है कि भैया... जरा यह भी बता दो कि मुंबई की सड़कों पर गड्ढे बहुत बढ़ गए हैं, इनके लिए कौन जिम्मेदार है ? अगर राज ने जवाब दिया, तो निश्चित तौर पर मलेरिया वाले बयान जैसा ही बेवकूफी भरा ही होगा। खैर, राज तो राज है। ईश्वर ने उनको जुबान दी है, वे कुछ भी बोलते रहे हैं, सो बोलें। उनको कुछ भी बोलने - कहने के लिए जनता माफ भी कर देगी। लेकिन पता नहीं उद्धव ठाकरे को कौन सा रोग लग गया है कि वे भी राज की होड़ करते दिखने लगे हैं। मुंबई की राजनीति में राज के मुकाबले उद्धव को गंभीर और इज्जतदार आदमी माना जाता है। लेकिन वे भी अपनी सारी गंभीरता छोड़कर मलेरिया के मैदान में उतर गए हैं। बिल्डरों को धमका रहे हैं। उद्धव का कहना है कि मुंबई में मलेरिया और स्वाइन फ्लू बिल्डरों की वजह से फैल रहा है। अपना मानना है कि दोनों ठाकरे बंधुओं के दिमाग की दाद दी जानी चाहिए।

अरे भाई, मान लिया कि महानगर पालिका का चुनाव सामने है, आप दोनों को अपनी – अपनी राजनीति चमकानी है। दोनों को एक – दूसरे के वोट बैंक में सैंध मारनी है। और दोनों को एक – दूसरे को नीचा दिखाना है। लेकिन उसका अगर यही तरीका है, तो फिर दोनों का हश्र क्या होगा, यह भी समझा जा सकता है। राज और उद्धव, दोनों भले ही मुंबई में फैल रहे मलेरिया को अपनी राजनीति का हिस्सा मान रहे हों, लेकिन असल बात यह है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मलेरिया राजनीति के चक्कर में अपने बयानों से मुंबई में मसखरे साबित हुए हैं।

सही मायने में देखें तो मुंबई जैसे देश के ही नहीं दुनिया के इस आधुनिक शहर में मलेरिया का फैलना राजनेताओं के लिए एक बहुत ही गंभीर मसला होना चाहिए। लेकिन राज ठाकरे ने अपने बयान के जरिये इस गंभीर विषय को मजाक का मामला बना दिया। राज ने कहा कि मुंबई में मलेरिया उत्तर भारतीयों के कारण फैल रहा है। लेकिन अब उनसे यह कौन पूछे कि मच्छर किसी को भी काटने पहले क्या यह पूछता है कि भैया, तुम मराठी हो या उत्तर भारतीय ? उत्तर भारतीय हो तो काटूंगा और मराठी हो तो छोड़ दूंगा। आप भी यहीं मानते होंगे और अपना भी यही मानना है कि ऐसा होता तो नहीं। लेकिन राज ठाकरे शायद यह मानने लग गए हैं कि अब मुंबई के मच्छर भी उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हैं, सो वे सिर्फ उत्तर भारतीयों को ही चुन चुन कर काटते हैं, ताकि उनमें खूब मलेरिया फैले और राज को मलेरिया के मामले में उत्तर भारतीयों को कोसने का मौका मिले। सचमुच, राज के इस बयान ने पूरे मुद्दे को मजाक बना दिया।
राज से वैसे भी मुंबई और देश को कोई बहुत उम्मीद नहीं है। लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस मामले में जो कुछ भी कहा – किया, उससे दुनिया के दिमाग में उनके नंबर कुछ कम ही हुए हैं। सही बात यह है कि मलेरिया की वजह से मुंबईवासियों की हालत खराब है। .ह भी सही है कि शिवसेना के कब्जेवाली बीएमसी के सरकारी अस्पताल इस संकट से निपटने के लिए पूरे प्रयास नहीं कर पा रहे हैं। यह वास्तव में एक गंभीर मामला है। इस समस्या के बढ़ने की असली वजह बीएमसी ही है। जिसे समस्या का समाधान निकालना चाहिए। लेकिन उद्वव ठाकरे को यह नहीं दिखता। बीएमसी में शिवसेना का शासन है। उनको अपने लोगों का नाकारापन नहीं दिखाई देता। इसलिए मुंबई में बीमारियों के मामले में उद्धव बिल्डरों को दोषी बता रहे हैं। मलेरिया का कारण बिल्डर हो सकते हैं, यह तो कोई बेवकूफ भी नहीं मानेगा। लेकिन उद्धव ठाकरे मानते हैं, इसका क्या किया जाए। दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ को भी उद्धव के इस तर्क में बिल्डरों को शामिल करने का मतलब पूछा जाए तो जवाब यही मिलेगा कि शिवसेना के इस नेता की निगाहें अगले मनपा चुनाव के लिए चंदे की वसूली पर है। मामला साफ है कि बिल्डरों को धमकाओ, तो अभी से लाइन लगनी शुरू होगी। इसके अलावा और क्या कारण हो सकता है ?
राज ठाकरे की राजनीति की धाराओं को जाननेवाले यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि बाल ठाकरे की 60 साल की मेहनत के मुकाबले खुद को मराठियों और महाराष्ट्र का मसीहा साबित करने की होड़ में उतरे राज ठाकरे की कड़वाहट भरी जुबान का जहर आगे और बढ़नेवाला है। इतिहास गवाह है कि बौखलाहट अकसर किसी को भी अधिक आक्रामक बनाती रही है। अपन जानते हैं कि आने वाले दिनों में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य के अचानक बहुत तेजी से सक्रिय होने के बाद राज की सेना के नौजवान रंगरूट फिर से शिवसेना की तरफ आनेवाले हैं। क्योंकि उधर अकेले राज हैं। लेकिन उनके मुकाबले शिवसेना में उद्धव और बाल ठाकरे के अलावा नया सितारा आदित्य भी है। अपनी सेना के नए लड़कों को खिसकता देखकर राज का रूप और विकराल भी हो सकता है। पर, राज कुछ भी करें, लोग उनको माफ भले ही ना करें, पर अनदेखा जरूर कर देंगे। लेकिन उद्धव से मुंबई को अब भी कुछ उम्मीदें हैं। क्योंकि अब भी उनकी छवि एक भले आदमी की है। आपसी होड़ में उतरना वंश के खून का असर हो सकता है, लेकिन उद्धव का भला इसी में है कि मुंबई में मलेरिया के मामले में वे राज ठाकरे से जिस तरह की होड़ में उतरे हैं, उसकी पुनरावृत्ति आगे नहीं होगी। आप भी ऐसा ही मानते ही होंगे...!