Monday, November 4, 2013

गोल्ड में ग्लैमर से चमका ज्वेलरी का जलवा

-निरंजन परिहार-

वैसे तो हर तरह विज्ञापनों में हीरोइनें पहले भी आती रही हैंछाती भी रही हैं और सबको लुभाती रही हैं। पर पिछले कुछेक सालों में बहुत सारी हीरोइनें अचानक ज्वेलरी के विज्ञापनों में खूब दिखने लगी हैं। यहां वे रैंप पर चलती हैंहोर्डिंग में टंगती हैपत्र  पत्रिकाओं और टीवी के विज्ञापनों में चमकती हैं और हमेशा मीडिया से घिरी रहती हैं। ज्वेलरी के आयोजन भी महंगे होटलों में होते हैंबड़े सितारों के साथ जगह मिलती है और हर इवेंट का प्रचार भी खूब होता है। मतलबफिल्में हाथ में हो न हो कोई फर्क नहीं पड़ता। ग्लैमर जस का तस। पैसा भी दूसरे विज्ञापनों के मुकाबले ज्वेलरी में ज्यादा है। गोल्ड और उसकी ज्वेलरी का ग्लैमर इसीलिए हीरोइनों को लुभा रहा है।

हमारी हीरोइनें अब दूसरों की मेहरबानियों की मोहताज नहीं हैं। वे सयानी हो गई हैं। और इतनी समझदार भी कि उन्हें ग्लैमर की दुनिया में रहते हुए अपने आगे के चमकदार आसमान को बुनना आ गया है। फिल्मों का क्या भरोसा। आज मिलेकल छूट जाए। और आगे शायद कभी मिले ही नहीं। फिर ऊम्र भी तो मुंई वक्त के साथ लगातार भागती रहती है। इसलिए, फिल्मों में काम करते रहने के चमक दमक से लकदक वक्त को अपने हक में खड़ा करके हमारी हीरोइनें खुद के पैरों पर खड़े होने का इंतजाम कर रही है। वे अब जमकर विज्ञापन करने लगी हैंपर ग्लैमर गर्ल्स को गोल्ड और डायमंड की ज्वेलरी का जलवा सबसे ज्यादा लुभा रहा है। क्योंकि इसमें वह सब कुछ हैजो फिल्मों जैसा ही रिटर्न भी देता है।
माधुरी दीक्षित पुणे की 181 वर्ष पुरानी एक महाराष्ट्रीयन ज्वेलरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर हैं। माधुरी से पहले सोहा अली खान इस कंपनी के विज्ञापनों में सजती थीं। पुणे के ही एक अन्य सबसे बड़े और 174 साल पुराने राजस्थानी ज्वेलर के ब्रांड एंबेसडर के रूप में विद्या बालन लंबे समय से उनके साथ है। ऐश्वर्या राय अपनी बेटी आराध्या को जन्म देने के नौ महीने के बाद ही सक्रिय होकर दक्षिण भारत की एक जानी मानी ज्वेलरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर के रूप में फिर से नई पारी शुरू की। करीना कपूर और हेमामालिनी भी दक्षिण भारत की गोल्ड ज्वेलरी कंपनी को उत्तर भारत में पैर जमाने के लिए उसकी मॉडल और ब्रांड एंबेसडर हैं। वैसे तो दो दो हिरोइनों का एक ही कंपनी के ब्रांड एंबेसडर के रूप में चलना आसान नहीं है,.लेकिन करीना और हेमा दोनों की ऊम्र में मां बेटी का फासला है। करीना नए जमाने के ज्वेलरी पसंद करने वाले वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है तो हेमा ऊम्रदराज महिलाओं को मलबार गोल्ड की ट्रेडीशनल ज्वेलरी की तरफ खींचती है। गोल्डडायमंड और प्लेटिनम के 60 से भी ज्यादा ज्वेलरी ब्रांड्स वाला देश का सबसे बड़ा ग्रुप हमारी हीरोइनों का सबसे ब्रांड अड्डा है।  बिपाशा बसुनेहा धूपियाकटरीना कैफसोनाक्षी सिन्हामान्यता दत्त, सेलिना जेटली, अमीषा पटेल रिया सेन आदि ढेर सारी हीरोइनें इस बहुत सारे ब्रांड वाली अकेली कंपनी के विज्ञापनों में थोक के भाव छाती रही हैं। करिश्मा कपूर शादी के बहुत बाद भी एक ज्वेलरी कंपनी के विज्ञापन कर रही है तो जूही चावला भी गुजरात की एक ज्वेलरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर हैं। प्रियंका चौपड़ा, सोनाक्षी सिन्हा, प्रीति जिंटा, कटरीना कैफ, लारा दत्ताचित्रांगदा सिंह और सुष्मिता सेन जैसी नामी हीरोइनें भी डायमंड ज्वेलरी में भी खूब चमक रही हैं। दीपिका पादुकोण और सोनम कपूर तो फिर भी कुछ पुरानी हैंमगर आलिया भट्ट, अनुष्का शर्मा, यामिनी गौतम और श्रद्धा कपूर जैसी बहुत ताजा हीरोइनों को भी ज्वेलरी और गोल्ड की दुनिया में काम मिल रहा है। तो महिमा चौधरी और दीपशिखा जैसी अपने उतार वाली हीरोइनों को भी काम की कमी नहीं है। और तो और नीतूसिंह, शबाना आजमी और इला अरुण के लिए भी ज्वेलरी में बहुत स्कोप बन रहा है। खास बात यह है कि गोल्ड या डायमंड की मॉडलिंग के लिए किसी के हीरोइन के दाम कम से कम दस लाख रुपए से नीचे नहीं है। और ऊपर की सीमा तो दो करोड़ रुपए तक हैं।
Niranjan Parihar, Sanjeev Srivastava and Actress
 Aishwarya Rai at a Function in Hotel Oberoi, Mumbai
किसी खास ज्वेलरी कंपनी की ब्रांड एम्बेसडरिंग और मॉडलिंग के अलावा उनके प्रमोशन और ज्वेलरी स्टोर्स के उदघाटन का भी अपना अलग बाजार है। इसके रैंप पर उतरने के भी फायदे उनको समझ में आने लगे हैं। माधुरी दीक्षित कहती हैं – इसमें पैसा और प्रचार तो है ही, गोल्ड जैसा ग्लैमर भी है। लेकिन ज्यादातर नामी हीरोइनें बड़े ब्रांड्स के अलावा बात ही नहीं करती। विद्या बालन कहती है  - बड़े ब्रांड्स में स्कोप भी बड़ा होता है।लेकिन असल बात यह है कि छोटे ब्रांड में पैसे कम मिलते हैं और प्रमोशन का दायरा भी कोई बहुत बड़ा नहीं होता। वैसे, बड़े ब्रांड्स का फायदा यह भी है कि उसके लिए रैंप पर भी उतरो तो मीडिया हाइप तो मिलता ही हैअखबारों के पन्नों से लेकर टीवी के शो तक में खासी जगह मिलती है। हालांकि हेमामालिनी के मुताबिक – ज्वेलरी हमेशा से महिलाओं के लिए सबसे बड़ा आकर्षण रहा है। इसीलिए इसमें हीरोइनों को ज्यादा महत्व मिल रहा है। इंडिया इंटरनेशनल ज्वेलरी वीक तो जैसे इन हीरोइनों के लिए चांदी काटने के मौके जैसा होता है। मुंबई के जाने माने ज्वेलर अमित सोनी कहते हैं - भारत के इस सबसे महंगे और सबसे बड़े ज्वेलरी शो में हफ्ते भर तक करीब 150 से ज्यादा हीरोइनें और मॉडल रैंप पर उतरती हैं। जहां कुछ मिनट के लिए रैंप पर उतरने या सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के भी उनको लाखों रुपए मिलते हैं। यामिनी गौतम कहती है – अब तक सिर्फ अवॉर्ड फंक्शंस में ही बहुत सारी बॉलीवुड हीरोइनें एक साथ दिखती थीं। पर, अब इंडिया इंटरनेशनल ज्वेलरी वीक और बाकी ज्वेलरी शो में भी बहुत सारी हीरोइनों को एक साथ देखा जा सकता है।’ बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहित कंबोज के मुताबिक - यह सब इसलिए है क्योंकि गोल्ड में ग्लैमर हैज्वेलरी का जलवा भी है और शौहरत तो है ही। फिर सम्मान भी मिलता है। हीरोइनें इसीलिए ज्वेलरी की मॉडलिंग के लिए फट से राजी बी हो जाती हैं।
असल बात यह है कि, फिलहाल भले ही गोल्ड 30 – 32 हजार रुपए प्रति दस ग्राम के आसपास घूम रहा है। लेकिन पंद्रह साल में भाव आठ गुना से भी ज्यादा हो गए हैं। ज्वेलरों को घर बैठे बहुत बड़ी कमाई हुई है। इसीलिए पुराने ज्वेलरों के पास खर्च करने के लिए पैसे की कमी नहीं है। उनके लिए बड़ी फीस देकर हीरोइनों को साइन करनाउनसे मॉडलिंग करवानाया स्टोर का उदघाटन कराना या फिर उनको ब्रांड एंबेसडर के रूप में कंपनी के साथ जोड़ना कोई बहुत बड़ा काम नहीं लगता। बड़े ब्रांड की बात छोड़ दीजिएछोटे और मझोले ज्वेलरी के ब्रांड भी बड़े खर्च करके नाम कमाने की कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं। दिल्ली की एक बेहद मामूली ज्वेलरी कंपनी ने भी मंदिरा बेदी को हाल ही में अपनी ब्रांड एंबेसडर को रूप में साइन किया है।
 और यह सब पहली बार नहीं हुआ है। हमारी हीरोइनें पहले भी गोल्डडायमंड और प्लेटिनम ज्वेलरी की मॉडलिंग करती रही हैं। लेकिन पिछले दो तीन सालों में जिस तेजी से हीरोइनों के ब्रांड की बुलबुल बनने में अचानक उछाल आया हैवह साफ तौर पर उनके विकसित होते व्यावसायिक नजरिये की तरफ ध्यान खींचता है। काम का कामदाम भी भरपूर और जलवा भी जोरदार। गोल्ड और डायमंड के विज्ञापनों में हीरोइनें इसीलिए इन दिनों कुछ ज्यादा ही चमक रही हैं।  

मेवाड़ में राजनीति के खेल और खेल में राजनीति के खेल की राजनीति


-निरंजन परिहार-
राजनीति और खेल। रिश्ता पुराना है। बहुत पुराना। इतना पुराना कि पहले खेल शुरू हुए या राजनीति पहले आई, यह कोई नहीं कह सकता। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि खेल में राजनीति और राजनीति में खेल अकसर होते रहते हैं। यही नहीं, लोग तो खेल खेल में भी राजनीति कर लेते हैं, और राजनीति करते करते लोग कई तरह के खेल, खेल लेते हैं, यह भी सभी जानते हैं। होने को तो वैसे भी राजनीति किसी खेल से कम नहीं है। लेकिन खेल की राजनीति और राजनीति के खेल का अगड़म बगड़म बहुत उलझन भरा है। इतना उलझनवाला कि जो समझ जाता है, वह जीत जाता है, और जो नहीं समझ पाता, वह पूरे जीवन इसी में उलझकर खेल करते करते कब राजनीति के इस खेल का शिकार हो जाता है, उसे खुद भी पता नहीं चलता। लेकिन अकसर ऐसा भी होता है कि खेल खुद राजनीति के शिकार हो जाते हैं। और ऐसा खासकर तब होता है, जब राजनेता राजनीति करने के बजाय खेल करने लग जाएं। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत इन दिनों खेल और राजनीति की इसी उलझन को सुलझाने में कोशिश में हैं। लेकिन खेल के मैदानों में बैठकर राजनीति कर रहे नेताओं के समर्थक इसे भी गहलोत का एक खेल ही समझ रहे हैं। राजस्थान में पहली बार राजनीति के खेल का मामला सबकी जुबान पर है।

मेवाड़ के दमदार कांग्रेस नेता सीपी जोशी आजकल राजनीति भी कर रहे हैं और खेल की राजनीति में भी हैं। इसीलिए आशंका हर पल यही है कि कहीं वे राजनीति के खेल के शिकार न हो जाएं। होने को तो वे इन दिनों कांग्रेस के अखिल भारतीय महासचिव हैं। पर दिन में भी सपने वे राजस्थान और खासकर मेवाड़ के ही देखते रहते हैं। मेवाड़ कांग्रेस का गढ़ रहा है। कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें वहीं से मिलती रही है। लेकिन भले ही इस बार भी मेवाड़ के सलूंबर से ही राहुल गांधी ने फिर से कांग्रेस को जिताने का संकल्प दिलाया हो। पर मामला आसान नहीं है।
राजस्थान को चार मुख्यमंत्री देने वाले मेवाड़ के उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा आदि जिलों में कुल 35 विधानसभा सीटें हैं। इतिहास रहा है कि कांग्रेस के लिए तो कमसे कम राजस्थान की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर जाता है। उदयपुर से मोहनलाल सुखाड़िया, बांसवाड़ा से हरिदेव जोशी, भीलवाड़ा से शिवचरण माथुर और राजसमंद से हीरालाल देवपुरा जैसे नेता इसी मेवाड़ की धरती से जीतकर ही प्रदेश के सीएम बने। मेवाड़ ने अकसर कांग्रेस का साथ दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही यहां अपनी चुनावी तैयारियों में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते। कांग्रेस परेशान है, क्योंकि पार्टी के विधायकों के पास गिनाने के लिए सरकार की योजनाएं तो हैं। लेकिन अपनी ओर से कराया कोई भी बड़ा काम बताने को नहीं है। भले ही इस बार वहां बहुमत कांग्रेस का है, लेकिन परेशानी यह है कि पूरी कांग्रेस खेमों में बंटी हुई है। सीपी जोशी का इलाका भीलवाड़ा है, लेकिन वे पूरे मेवाड़ में दखल चाहते हैं। डॉ. गिरिजा व्यास चित्तौड़ की सांसद हैं, लेकिन वे बड़ी और पुरानी नेता है, सो किसी का दखल नहीं चाहती और खासकर सीपी जोशी को तो किसी भी सरह का सहयोग उनको नहीं चाहिए। वागड़ में ताराचंद भगौरा मजबूत हैं, तो  उदयपुर के रघुवीर मीणा अपनी मर्जी के उम्मीदवार चाहते हैं। सीपी जोशी की मुश्किल यह है कि इन दिनों वे अकेले पड़ते जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास, अखिल भारतीय कांग्रेस के सचिव ताराचंद भगौरा और सांसद रघुवीर मीणा इन दिनों पूरी तरह अशोक गहलोत के साथ हैं। ये तीनों सीपी जोशी के किसी भी आदमी को पनपते देखना नहीं चाहते। और सीपी हैं कि हर इलाके में खुद को मजबूत बनाने की कोशिश में पांव फैलाते जा रहे हैं। मामला सीएम का ख्वाब पूरा करने का है।
सीपी जोशी मानकर चल रहे हैं कि भले ही कांग्रेस ने अशोक गहलोत को पूरी छूट दे दी हो। लेकिन चुनाव के बाद बाजी पलट भी सकती है। अपना मानना है कि हम सबको सपने देखने चाहिए। जिस दिन हमने सपने देखना बंद कर दिया, उसी दिन से हमारा पराभव भी शुरू हो जाता है। यही कारण है कि खवाब पूरे होने की आशंकाओं और पार्टी में पनपती गुटबाजी के बीच झूलती कांग्रेस की राजनीति अब मेवाड़ से कोई नया मोड़ लेकर पूरे प्रदेश की राजनीति को किसी दूसरे मुकाम पर ले सकती है। मेवाड़ में कांग्रेस की एक दर्जन से अधिक सीटों पर चल रही गुटबाजी की जबरदस्त हवा है। सांसद रघुवीर मीणा की पत्नी बसंती मीणा सलूम्बर से विधानसभा चुनाव में 3 हजार 98 वोटों से जीती थी। मगर वे अपने पति रघुवीर मीणा की 23 हजार 353 वोट से हुई जबरदस्त जीत का जलवा कायम नहीं रख सकी। मावली से सीपी जोशी के घनघोर समर्थक पुष्कर डांगी पिछले चुनाव में 4 हजार 862 वोटों से जीते थे। लेकिन अब वे सीपी की शह पर सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ है, तो गहलोत के समर्थक उनको मजा चखाने के लिए कमर कस चुके हैं। वल्लभनगर से पिछली बार 6 हजार 660 वोटों से जीते गजेन्द्रसिंह शक्तावत अब मुख्यमंत्री खेमे में हैं। इसीलिए सीपी केसाथी उनको नॆशाने पर लिए हुए हैं।  गोगून्दा से 10 हजार 112 वोटों से जीते मांगीलाल गरासिया गहलोत की सरकार में मंत्री हैं। लेकिन सत्ता विरोधी लहर के असर में फंसे साफ दिख रहे हैं। खैरवाड़ा से 14 हजार 757 वोटों से जीते दयाराम परमार इतने साल बाद भी अपने वजूद की लड़ाई में ही खराब हो रहे हैं। राजनीति में हर किसी को एक लाइन पकड़नी पड़ती है, लेकिन परमार किधर हैं, इधर या उधऱ, कोई नहीं जानता। उदयपुर ग्रामीण से 10 हजार 696 वोट से जीती सज्जन कटारा अपने स्वर्गीय पति खेमराज कटारा की तरह उदयुपर की राजनीति पर कब्जे की चाहत में हैं। बांसवाड़ा में बागीदौरा से जीतकर मंत्री बने महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने 44 हजार 689 वोटों से जीतकर रिकॉर्ड कायम किया। लेकिन वागड़ के साथ साथ मेवाड़ की राजनीति पर भी अपना मजबूत असर दिखाने के अति उत्साह में मालवीय कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के निशाने पर हैं। गढ़ी से 25 हजार 433 वोटों से जीती कांता गरासिया अपने परंपरागत वोट बैंक के भरोसे हैं। बांसवाड़ा से 15 हजार 849 वोटों से जीते अर्जुनसिंह बामनिय खेमेबंदी में इधर - उधर नजर आ रहे हैं। चित्तौडग़ढ़ के बेगूं में 643 वोटों से जीते राजेन्द्र विधूड़ी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ खड़े हैं, सो मामला गड़बड़ ही लगता है।  कपासन में 6 हजार 654 वोटों से जीते शंकरलाल बैरवा अपनी सीट बचाने की कोशिश में हैं। चित्तौडग़ढ में 11 हजार 551 वोटों से जीते सुरेन्द्रसिंह जाड़ावत एकला चलो की रणनीति पर कदमताल कर रहे हैं। निम्बाहेड़ा विधायक उदयलाल आंजना सीपी जोशी के समर्थक हैं, लेकिन उनके एक बरसों पुराने सेक्स स्केंडल के सार्वजनिक हो जाने से सीपी जोशी को बड़ा झटका लगा है। बड़ी सादड़ी के विधायक प्रकाश चौधरी भी अपनी ही सरकार के प्रति नाराजगी प्रकट करके गहलोत के विरोध में खड़े होने का सबूत दे चुके हैं। प्रतापगढ़ में धरियावाद से जीते नगराज मीणा जरूर अशोक गहलोत के साथ दिखाई दे रहे हैं। डूंगरपुर में 11 हजार 621 वोटों से जीते लालशंकर घाटिया, आसपुर में 14 हजार 547 से जीते राईया मीणा, सागवाड़ा में 32 हजार 326 वोटों से जीते सुरेन्द्र बामनिया पर सीपी जोशी समर्थक का ठप्पा लगा हुआ है। इनमें से कुछ पहले गहलोत के साथ थे, तो कोई गिरिजा व्यास के साथ। यह खेमेबाजी का खेल है।
दरअसल, यही राजनीति का खेल हैं। हर कदम पर खेल। सीपी जोशी राजनीति से क्रिकेट के खेल में आए हैं और इसी के जरिए राजनीति में भी खेल कर रहे हैं। वे किसी को जिला क्रिकेट संघ का अध्यक्ष तो किसी को कमेची में मेंबर बवाकर खेल के जरिए अपनी राजनीति को मजबूत करने के खेल कर रहे हैं। हालांकि, अशोक गहलोत, सीपी जोशी के इस सारे खेल को बहुत आसानी से खराब कर सकते हैं, पर वे शायद इसके लिए सही वक्त की राह देख रहे हैं। सीपी भले ही इन दिनों बड़े नेता हैं। पर, गहलोत भी कोई कम खिलाड़ी नहीं हैं। सीपी जो बनने के सपने देख रहे हैं, उस सीएम की कुर्सी पर गहलोत दो बार पूरे दस साल से हैं। वे राजस्थान की राजनीति के आज के खिलाड़ियों में सबसे मजबूत भी हैं और सीनियर भी। फिर राजनीति में गहलोत पुराने हैं और ठेट राजीव गांधी के कार्यकाल में खेल मंत्री तो वे पूरे देश के रहे हैं। इसीलिए राजनीति में खेल और खेल – खेल में राजनीति के खेल करने की राजनीति दूसरों के मुकाबले ज्यादा समझते हैं। यही कारण है कि राजस्थान का आम कांग्रेसी यही मानता है कि मेवाड़ से शुरू हुए शह और मात के इस खेल में भी गहलोत सबसे बड़े खिलाड़ी साबित होंगे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

टीवी के परदे पर बाल कलाकार


छोटी उमर में बड़ी कमाई
-निरंजन परिहार-

रात में अक्सर देर तक जागना, और डायलॉग याद करते रहना पिछले कुछ महीनों से फैजल की आदत में आ गया है। सुबह जल्दी उठकर तेज भागते घोड़े की लगाम थामकर उस पर कूद कर चढ़ जाना और फिर भी उसके चेहरे पर न कोई थकान और न कोई परेशानी। यह सब वह बहुत आसानी से कर लेता है। क्योंकि वह धरती का वीर पुत्र महाराणा प्रताप है। सुबह छह बजे नींद से उठकर घर से कॉलेज, दोपहर में वहां से सीधे गोकुलधाम, पूरे दिन शूटिंग और फिर शाम को ट्यूशन के बाद घर पर आकर बहुत सारा होमवर्क, उसके साथ अगली सुबह की शूटिंग के लिए डायलॉग की तैयारी भी। भव्य गांधी भी यह सब बहुत भव्यता से इसलिए कर लेता है, क्योंकि वह तारक मेहता का उल्टा चश्मा का टपू है। हर्षिता ओझा सिर्फ छह साल की है, लेकिन उसे भी रोज सुबह उठकर वह तो सब कुछ करना ही होता है, जो उसकी ऊम्र से बहुत बड़े किसी कलाकार को करना होता है, लेकिन हर्षिता को तो उसके अलावा स्कूल भी जाना होता है। क्योंकि हर्षिता ओझा वीरा है। सीरियल हो या विज्ञापन, या कोई और शूट, फिर परदा भी भले छोटा हो, पर ये छोटे कलाकार बड़ी मेहनत कर रहे हैं। बड़ा नाम कर रहे हैं। बड़ा काम कर रहे हैं और कमाई भी बड़ी कर रहे हैं। छोटी ऊमर में बड़ी कमाई का यह जलवा पिछले कुछ सालों में अचानक कुछ ज्यादा ही जोर मारता दिखने लगा है।
Niranjan Parihar at Bhopal Airport on Diwali - 2013
बच्चे हमारी जिंदगी का हिस्सा होते है। या फिर यह भी कहा जा सकता है कि बच्चे हमारी जिंदगी है। इसे आसानी से समझना हो तो जरा यूं समझिये, कि हम भी किसी के बच्चे हैं। इसलिए हमारे बिना हमारे परिजनों को उनकी जिंदगी कैसी लगेगी, यह जरा उन्हीं से पूछकर देख लीजिए। मतलब साफ है कि बच्चे जब जिंदगी के हर पहलू के सबसे अहम रोल में हैं तो फिर हमारे टीवी के सीरियल और हमारे विज्ञापन उनके बिना कैसे पूरे हो सकते हैं। टीवी पर बच्चे इन दिनों मुख्य धारा में हैं। पिछले कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि हमारे बाल कलाकार टीवी के परदे से पर ही नहीं, बड़ी बड़ी फिल्मों तक में भी जो करिश्मा करके दिखा रहे है, वह अपने आप में बहुत गजब की बात है। टीवी सीरियल में बच्चे बड़े कलाकारों जितने अहम रोल निभा रहे हैं। वे बाल कलाकार नहीं, कलाकार हैं। हमारा सिनेमा आज भले ही हर दूसरी - तीसरी फिल्म से सौ-दो सौ करोड़ रुपए कमा रहा हो, लेकिन हमारे देश में सिनेमा से कई गुना ज्यादा दर्शक टीवी के हैं। टीवी की इसी ताकत को पहचानते हुए पिछले कुछ समय से बच्चों को केंद्र में रखकर उनके लिए रोल लिखे जा रहे हैं, किरदार गढ़े जा रहे हैं, कहानियां तलाशी जा रही हैं और बच्चों की केंद्रीय भूमिका वाले सीरियल आ रहे हैं। बहुत सारे सीरियल में उनको मुख्य किरदार के रूप में रखा जा रहा है। सीरियल तो सीरियल, रियलिटी शो भी बच्चों पर बन रहे हैं।  साफ लग रहा है कि वे दिन चले गए, जब छोटे बच्चों को सीरियल में बड़ों का साथ निभानेवाले छोटे-मोटे रोल दिए जाते थे। वक्त बदल गया है। बच्चे अब बड़े कलाकार हैं, बड़ों से भी बड़े। बच्चे लीड रोल में आ रहे हैं।
तारक मेहता का उल्टा चश्मा का टपू यानी भव्य गांधी सीरियल की बच्चा पार्टी का मुखिया है। उसकी बच्चा पार्टी को टपू सेना के नाम से ही जाना जाता है।  ‘धरती का वीर पुत्र महाराणा प्रताप पहले दिन से ही बहुत सारे बच्चों वाला सीरियल बना हुआ है। महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह और अकबर के बाल्यकाल को जब तक यह सीरियल दिखाएगा, उनके साथियों के रोल में भी इस सीरियल में बहुत सारे बच्चे भी खूब छाते रहेंगे।  ‘’  ‘बालिका वधू की अविका गोर ने तो 10 साल की छोटी उम्र में ही सीरियल में काम करना शुरू कर दिया था। उतरनकी इच्छा (स्पर्श), और तपस्या (इशिता) ने पूरे सीरियल को रहां से कहां पहुंचा दिया। झांसी की रानीका किरदार ठीक से निभाने के लिए उलका गुप्ता ने तो घुड़सवारी से लेकर तलवारबाजी जैसे मुश्किल काम भी सीखे। आपकी अन्तरामें सिर्फ सात साल की जायना वासतानी ने जो किरदार निभाया है, वह उसकी ऊम्र किसी भी बच्चे के लिए करना बड़ा ही मुश्किल है, लेकिन इस बच्ची ने अन्तरा के किरदार को बड़े रोमांचक तरीके से निभाया। सारेगामा, लिटिल चैंप जैसे रियलिटी शो और कॉमेडी शो आदि में भी बाल कलाकार अपने अभिनय का जलवा दिखाने में जबरदस्त कामयाब हुए हैं।
इन बच्चों की अगर कमाई की बात करें, तो हर मुख्य कलाकार को 20 से 30 हजार रुपए हर शिफ्ट के हिसाब से मिलते हैं। छह घंटे की शिफ्ट के लिए इन बाल कलाकारों को कमसे कम 5 हजार रुपए और ज्यादा देखें तो 15 हजार रुपए के आसपास तो मिल ही जाते हैं। सहयोगी बाल कलाकारों भी रोज कमसे कम दो से पांच हजार रुपए के बीच कमाई हो जाती है। काम अगर दो शिफ्ट को हो तो बच्चों की यह कमाई एक दिन में दुगने से भी ज्यादा हो जाती है। इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के जाने माने पीआर हिमांशु झुनझुनवाला कहते हैं कि बाल कलाकारों की यह फीस उनके किरदार, रोल की लंबाई और भूमिका की महत्ता के हिसाब से तय होती है। लेकिन यह सब प्रोडक्शन हाउस, चैनल और कंपनी के व्यावसायिक स्तर पर भी निर्भर करता है कि उनका लेवल क्या है। हिमाशु के मुताबिक  - फीस के मामले में यह भी देखा जाता है कि सीरियल की टीआरपी क्या है और अगर बाल कलाकार सीरियल का अनुभवी है, तो भी उसे काम के बदले अच्छे पैसे मिलने की संभावना ज्यादा होती है। वैसे, ज्यादातर टीवी सीरियल की शूटिंग रोज कमसे कम दो शिफ्ट से ज्यादा लंबी हो ही जाती है। सो, कमाई अकसर दुगने से ज्यादा हो जाती है।
कुछ वक्त पहले महाराष्ट्र सरकार ने टीवी सीरियल में बाल कलाकारों से काम लेने वाले निर्माताओं और उनके माता पिता पर कार्रवाई करने का ऐलान किया था। सरकार को लग रहा था कि वे लोग बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लेते हैं। जो बालश्रम कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। बाल श्रम (रोकथाम और नियमन) कानून 1986 के अनुसार इनके काम की अवधि 6 घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। काम की जानकारी भी सरकार को देनी होती है। वह इसलिए, क्योंकि कानून अपनी जगह है और कमाई की अपनी जगह और काम अपनी जगह। बच्चों और उनके परिजनों को सीरियल में काम करना सुहा रहा है। बच्चों की बढ़िया कमाई से परिजन निहाल हो रहे हैं। और प्रेडक्शन हाउस के सीरियल भी मजे से चल रहे हैं, तो कानून की किसको पड़ी है। इसीलिए, बच्चे कहां, कितना और कैसा काम कर रहे हैं, और कितना कमा रहे हैं, सरकार को इसकी जानकारी कोई नहीं देता। और अगर कोई देता भी है, तो उसमें सच कम ही होता है। लोढ़ा फाउंडेशन की निदेशक मंजू लोढ़ा के मुताबिक – टीवी सीरियल में काम करने वाले बच्चों के आराम, वैयक्तिक विकास, पढ़ाई, और बचपन पर असर हो रहा है। इसलिए इन बच्चों के माता पिता को बच्चों की कमाई पर ज्यादा ध्यान न देकर इनकी समस्यों पर ध्यान देने चाहिए।लेकिन तारक मेहता... के टपू यानी भव्य गांधी के मामा विपिन शाह कहते हैं कि यह सब जीवन का हिस्सा है। बच्चों का बचपन खिलसर सामने आ रहा है। विपिन के मुताबिक – कमियां तलाशने के बजाय, बच्चे जिस तरह से टीवी इंडस्ट्री को चला रहे हैं, उसे उनकी सफलता के नजरिये से देखा जाना चाहिए।’  निर्देशक तनूजा शंकर के मुताबिक – टीवी में बच्चों के लिए स्कोप बहुत बढ़ गया है। और बच्चों के सपने भी बड़े हो गए हैं। लेकिन कई टैलेंट शो में जज की भूमिका निभा चुके संगीत निर्देशक विशाल भारद्वाज के अनुसार  - बड़े सपने इन कलाकार बच्चों के नहीं होते, ये उनके मां-बाप अपने दिमाग में लेकर चलते हैं। बच्चे टीवी में प्रसिद्धी के लिए या एक्टर बनने नहीं आते, वो तो इसलिए आते हैं क्योंकि परिजन उनको प्रेरित करते है।

बहस चाहे कोई कितनी भी करे, लेकिन सच यही है कि छोटे परदे की ज्यादातर कहानियां इन बच्चों पर ही आधारित होने लगी है। और छोटे परदे पर छोटे बच्चों के बड़े हुनर को देख कर ऐसा लगता है कि आज का दौर फिलहाल तो इन बच्चों का ही होकर रह गया है। इसीलिए छोड़ी उमर में ये बड़ी कमाई कर रहे हैं। और मंजर जैसा है, उसे देखकर यह भी कहा जा सकता है कि फिलहाल तो छोटे परदे पर इन्हें कोई आसानी से पछाड़ नहीं सकता। बड़े कलाकारों के मुकाबले काम, कमाई और कोशिश में ये छोटे कलाकार काफी आगे निकल चुके हैं। आगे भले ही तस्वीर बदल जाए, पर काम और कमाई के हिसाब से आज तो इन बाल कलाकारों का है। 

फिल्मी सितारों के व्यापार


कोई सूरत सजाता है, कोई रोटी खिलाता है
-निरंजन परिहार- 

हमारे सितारे अब ज्यादा कमाने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि वे पहले कम कमाते थे। लेकिन अब वे अभिनय से भी, नाम से भी और किसी दूसरे काम से भी, यानी हर तरफ से कमा रहे हैं। बहुत सारे सितारे एक्टिंग के साथ साथ व्यापार भी कर रहे हैं। इसलिए, क्योंकि जिंदगी के बारे में वे अब पहले से ज्यादा गंभीर हो गए हैं। जिंदगी, आखिर जिंदगी है, उसकी जरूरतें भी बहुत ज्यादा हैं। जिनको पूरा करने के लिए हमारे सितारे, अभिनय के साथ अपने होने की भी अब वे पूरी तरह भुना रहे हैं। फिल्मों के अलावा विज्ञापनों में काम करना तो बहुत आम बात पहले भी थी। इसी तरह फिल्म की शूटिंग से संबंधित साधन मुहैया कराना, स्टूड़ियो चलाना, डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी चलाना और फिल्म निर्माण के बाकी काम धंधे भी हमारे सितारे पहले से ही करते रहे हैं। लेकिन ग्लैमर की दुनिया के पार जाकर भी सितारे सफल हो रहे हैं। कोई हीरो रेस्टोरेंट में रोटियां खिलाता है, तो कोई हीरोइन सेलून का संचालन करती है। कोई एक्टर बड़े लोगों को महंगा सुरक्षा कवच मुहैया कराता है, कोई बड़ा सितारा बड़े होटल का मालिक है, कई सारे क्रिकेट टीम की कंपनियों के मालिक भी हैं। अब ज्यादातर कलाकार किसी न किसी वैकल्पिक व्यवसाय में भी हैं। सच्चाई यही है कि कई कलाकारों की तो फिल्मों से ज्यादा कमाई उनके अपने अलग व्यवसाय से हो रही है। फिल्मों में काम मिला, उन्हीं से नाम और दाम भी मिला। अब इसी नाम – दाम को दूसरे धंधों में निवेश करके हमारे सितारे खूब कमा रहे हैं क्योंकि सवाल सुखद भविष्य को सुनिश्चित करने का हैं। 

साफ साफ कहें, तो जिंदगी को जमकर जीने की ललक अब इस कदर जोर मारने लगी है, लेकिन इसके लिए बहुत ज्यादा नाम, काम और पैसा भी चाहिए। सुनील शेट्टी हो या मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेंद्र हो या राखी सावंत, और या फिर भले ही रोणित राय ही क्यों न हो। सारे के सारे एक्टिंग के अलावा अपने अलग व्यापार भी करते हैं। सीधे तरीके से इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि हमारे सितारों की समझ में आ गया है कि फिल्मों का क्या भरोसा, वहां भले ही आज बहुत काम है लेकिन कल कुछ भी नहीं भी हो सकता है। सो, भविष्य को भी अपने आज की ही तरह चमकदार बनाने के लिए कलाकार व्यापार करने लगे हैं।
पुराने जमाने की बात करें, तो उन दिनों किसी भी एक्टर को फिल्म में काम करने के एवज में आज की तरह मेहनताना नहीं मिलता था, उसे तनख्वाह मिला करती थी। जब तक फिल्म की शूटिंग, डबिंग और बाकी काम चलता था, तब तक उस कलाकार की तनख्वाह चालू रहती थी। कलाकार जब तक उस फिल्म के लिए काम करता था, किसी भी अन्य के लिए काम करना संभव नहीं था, क्योंकि वह तो नौकरी हुआ करती थी। लेकिन, जैसे ही फिल्म पूरी हुई कि काम भी बंद। फिर उसके बाद हमारे कलाकार नया काम तलाशते थे। हालांकि मिल भी जाता थी। लेकिन कुल मिलाकर वे प्रोड्यूसर के नौकर हुआ करते थे। लेकिन बाद में वक्त बदला, लोग बदले, लोगों के काम करने, कराने और कमाने के तरीके भी बदले। प्रोड्यूसर के पास एक्टर के नौकरी करने का सिलसिला बंद हो गया, पूरी फिल्म में काम करने का मेहनताना मिलने लगा और बाद में तो अब यह भी हुआ कि एक ही वक्त में कोई भी अभिनेता अपनी मर्जी से कई कई फिल्मों में एक साथ काम कर रहा है। अब कलाकार अपनी मर्जी का मालिक है। इसीलिए अभिनय के अलावा अपना व्यापार भी कर रहे हैं।
मिथुन चक्रवर्ती ने तो खैर बहुत साल पहले से ही दक्षिण भारत के विख्यात हिल स्टेशन ऊटी में अपना एक शानदार होटल शुरू कर दिया था। मिथुन के इस होटल में शुरू शुरू में तो सिर्फ शूटिंग के लिए जानेवाले फिल्मी लोग ही ठहरा करते थे। लेकिन मिथुन को जब समझ में आ गया कि दुनिया फिल्मों के पार भी बहुत बड़ी, बहुत विशाल और ज्यादा मलाईदार है। तो फिल्म जगत के लोगों की आवभगत छोड़कर अपने होटल के दरवाजे उन्होंने बाकी दुनिया के लिए भी खोल दिए। आज एक फिल्म में काम करने के वक्त और उतने ही वक्त की होटल की कमाई की तुलना करें, तो होटल की कमाई बहुत भारी है। मिथुन साठ पार के हैं और इस उमर में किसी भी कलाकार के लिए फिल्मों में काम का दायरा किस तरह सिमट जाता है, यह सभी जानते हैं। मगर मिथुन बहुत साल पहले से ही इस राज को जान गए थे। इसलिए वे अपने फाइव स्टार होटल मोनार्क से बहुत खुश हैं। वे कहते हैं – मोनार्क मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा है, इसी ने मुझे हर तरह से सम्हाला है। सुनील शेट्टी के भी मुंबई में रेस्टोरेंट हैं। गिरगांव चौपाटी पर उनका एचटूओ नामक एक वॉटर स्पोर्ट्स सेंटर भी है। जहां से छोटी छोटी नावों में बैठकर रोज सैकड़ों लोग समंदर की सहरों का आनंद लेते हैं, वहां खाना भी खाते हैं और सुनील शेट्टी को एक यात्रा के बदले हजारों रूपए देते हैं। शेट्टी बताते हैं – फिल्मों के साथ व्यापार करने का अपना मजा है, वक्त अच्छा गुजरता है। बहुत बड़बोली राखी सावंत होने को तो फिल्म अभिनेत्री हैं, लेकिन फिल्मों में उनके पास कितना काम है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। पर, जिंदगी बहुत ऐशोआराम और कुछ ज्यादा ही शान से कट रही है। वह महंगी गाड़ियों में चलती है और हवाई जहाज में भी एग्जिक्यूटिव क्लास में उड़ती है। राखी से पूछा तो वह बोली – पुरानी फिल्मों की हीरोइनों की तरह मेरे खर्चे कोई प्रोड्यूसर या कोई सेठ नहीं उठाता। मैं अपने सेलून के बूते पर मौज की जिंदगी जी रही हूं। मुंबई के लोखंडवाला में उनका राखी सावंत ब्यूडी लॉज लिमिटेड़ के नाम से जबरदस्त धमाके के साथ चल रहा खूब महंगा सेलून उन्हें यह सब करने की इजाजत आसानी से दे देता है। इसी तरह बहुत पहले कुछ फिल्मों में काम करके हीरो बनने के बाद चंकी पांडे अब भले ही ग्लैमर की दुनिया में हैं, मगर व्यवसाय में सुपर हिट हैं। मुंबई के कई इलाकों में उनके रोटी रेस्टोरेंट खूब चलते हैं। पहले फिल्मों और फिर टीवी में खूब सारा काम करके हीरो तो नहीं मगर कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके रोणित रॉय एस. सिक्युरिटी एंड प्रोटेक्शन नामक एक सफल सिक्योरिटी कंपनी चलाते हैं। रोणित कई जाने माने उद्योगपतियों, बड़े व्यवसायियों और बहुत सारे फिल्मी सितारों को महंगी फीस पर सुरक्षा कवच देते है। रोणित कहते हैं – एक्टिंग और व्यापार साथ साथ किए जा सकते हैं। फिर मेरे लिए तो ये दोनो एक दूसरे के सपोर्टिव भी हैं। फिल्म कलाकार अर्जुन रामपाल भी रेस्टोरेंट के धंधे में एक सफल व्यापारी की हैसियत से हैं। अर्जुन के तो मुंबई, दिल्ली के अलावा दुबई में भी उनके होटल हैं। अर्जुन के मुताबिक – एक्टिंग करने के लिए क्रिएटिव माइंड चाहिए, लेकिन बिजनेस करने के लिए कैलकुलेटिव माइंड की जरूरत होती है। ईश्वर ने मुझे दोनों दिमाग साथ साथ दिए हैं, सो उनका उपयोग भी कर रहा हूं। आपको आनेवाले दिनों में यह भी सुनने को मिल सकता है कि अर्जुन रामपाल ने पेरिस, लंदन और  न्यूयार्क में भी होटल खोल लिए हैं।’  टीवी एक्टर अनुज गुप्त भी रेस्टोरेंट चलाते हैं। उनकी एक कंपनी और भी है – एल्डर फार्मा, जो दवाई बनाती है। सलमान खान ने भी रेस्टोरेंट खोलने की कमर कस रखी हैं। पर, पहले उन्होंने बीइंग ह्यूमन ब्रांड के टीशर्ट स्टोर्स शुरू किया। शिल्पा शेट्टी, प्रीती जिंटा और शाहरूख खान आदि क्रकेट कंपनियों के मालिक हैं। शिल्पा की राजस्थान रॉयल्स’, शाहरुख खान की  ‘कोलकाता नाइट राइडर्स और प्रीति जिंटा कीकिंग्ज इलेवन पंजाब क्रिकेट टीमों के मालिक – मालकिन हैं। उनकी टीम पिच पर भले ही हारे या जीते, स्पॉन्सरशिप, ब्रांडिंग, और विज्ञापनों से तो जमकर कमा ही रही है। शिल्पा शेट्टी तो अपनी एक रियल एस्टेट वेबसाइट भी चलाती है। संजय दत्त ने शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा के साथ बिग फाइट लीग शुरू की है, जिसमें करीब एक सौ करोड़ निवेश किया बताते हैं। संजय दत्त फिलहाल तीन साल के लिए जेल में है, मगर उनकी यह कंपनी कमाती रहेगी। वैकल्पिक व्यवसाय करने वाले सितारे और भी बहुत सारे हैं। सारे के सारे बहुत व्यस्त हैं। क्योंकि उन्होंने अपने पास उपलब्ध समय का भरपूर दोहन करना जरूरी मान लिया है। कमाई आखिर सबके लिए जिंदगी की पहली जरूरत है, जो लगातार पूरी ताकत से जिद की तरह हमारी जिंदगी में जिंदा रहती है। बस, इसको समझने वाले और समझने के बाद उसे करने वाले चाहिए।

वैसे, सच्चाई यह है कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि एके हंगल जैसा महान कलाकार अपनी जिंदगी के आखरी दिनों में पैसे के अभाव में बीमार होता चला गया। भगवान दादा जैसे गजब के कलाकार को भुखमरी की वजब से मरना पड़ा। परवीन बाबी जैसी जबरदस्त कलाकार की लाश तीन – चार दिन बाद घर में सड़ी हालत में मिली, तो पता चला कि उनके घर ब्रेड़ और दूध सप्लाई करनेवालों के पैसे भी वे नहीं दे पा रही थी। ऐसे में, हमारे फिल्मी सितारे अभिनय के अलावा का इंतजाम भी कर रहे हैं, तो यह बहुत अच्छी बात है। इसकी एक मात्र वजह यही है कि फिल्मों में काम तो तब तक ही मिलेगा, जब तक चेहरा है, खूबसूरती है या फिर शरीर का मजबूती से साथ है। लेकिन, व्यापार तो तब भी चलता ही रहेगा, जब यह सब कुछ साथ नहीं होगा। इसीलिए, कोशिश तो हर कोई करता है, पर जो सफल हैं, वे हमारे सामने हैं।

Friday, September 13, 2013

आत्मा के उत्सर्ग का महापर्व है क्षमापना

-राष्ट्रसंत आचार्य श्री चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज-
मानव जीवन सबसे अनमोल है। इसे व्यर्थ में जाने देना सबसे बड़ी भूल है। इसलिए हर पल हमें जीवन को सार्थक बनाने के प्रयास में लगे रहना चाहिए। यह प्रयास अगर जीवन के शुद्धिकरण से हो, तो जीवन की सार्थकता शीग्र फलित होती है। लेकिन यह सब तभी होगा, जब हमारे जीवन में शुद्धता, शुचिता और शुभ्र आचरण का स्थान सर्वोपरि होगा। क्योंकि ये ही हमारे जीवन धर्म के सबसे आवश्यक अंग हैं। इनके बिना जीवन निरर्थक है। जीवन में अनेक अवसर ऐसे आते हैं, जो हमें अकसर भटकाव की तरफ बहा ले जाते हैं। ऐसे अवसरों पर सिर्फ सांसारिक लोग ही नहीं साधु संत भी शुद्धता, शुचिता और शुभ्र आचरण की तलाश में देखे जा सकते हैं। क्योंकि इनके बिना जीवन को संयमित रखना, मन को नियंत्रित रखना और व्यवहार में सदाचार को स्थान देना आसान नहीं होता। लेकिन जीवन तभी शुद्ध होगा, जब हमारा मन शुद्ध होगा। हमारी भावना शुद्ध होगी तभी हमारी आत्मा शुद्ध होगी। आत्मा की शुद्दि का पर्व है  - पर्यूषण महापर्व।
Media Expert and Political analyst Niranjan Parihar and Praveen Shah 
presenting their Book to President Smt. Pratibha Patil at Raj Bhawan,  
Mumbai. Book was on RashtraSant ShriChandranan Sagar  
यह महापर्व है मन, भावना और आत्मा के उत्सर्ग का। जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, हमारा जीवन कभी शुद्धता को प्राप्त नहीं हो सकता। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि क्षमा मांगना बहुत बड़ा काम है। लेकिन उससे भी बड़ा काम है क्षमा करना। हालांकि क्षमा मांगने और क्षमा करने दोनों ही के लिए मन बहुत बड़ा होना चाहिए। क्योंकि मन अगर बड़ा है, तभी हम दूसरों की भूलों को भूल सकते हैं। मानवीय जीवन का यह सबसे महान कार्य माना गया है। दूसरों की भूलों को भूल जाना जीवन की सबसे बड़ी सार्थक है, इसी में  पर्यूषण पर्व की सार्थकता है। पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर आनेवाला क्षमापना दिवस इस महापर्व की आत्मा कहा जा सकता है।
यह मैत्री पर्व मानव धर्म की दुर्लभ विशेषताओं में से एक है। क्योंकि यह पर्व हमारी ग्रंथियों को खोलने की सीख देता है।  क्षमा मांगने वाला अपनी भूलों को स्वीकृति देता है और भविष्य में पुनः न दुहराने का संकल्प लेता है। जबकि क्षमा करने वाला बिना किसी पूर्वाग्रह या निमित्तों को सह लेता है। यह सहना भी एक तरह का तप कहा जाता है। मेरा मानना है कि क्षमा मानव जीवन का एक ऐसा ऐसा विलक्षण आधार है जो किसी को मिटाता नहीं, बल्कि स्वयं मिटकर हमारे संबंधों को सुधरने का अवसर प्रदान करता है। जो स्वयं अपना अस्तित्व समाप्त करके संबंधों को संवारे, उससे बड़ा अवसर और कोई नहीं होता। इसीलिए क्षमापना को हमारे जीवन का सबसे बड़ा पर्व यानी महापर्व माना गया है। यह दूसरों की भूल को भूलने और अपनी भूल को सुधारने का पर्व है। पर्यूषण के दौरान एक दूसरे के निकच।
महापर्व इसलिए, क्योंकि क्षमा के महत्व को हमारे जीवन के संदर्भ में परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि क्षमा घने अंधेरों के बीच जुगनू की तरह चमकता एक प्रेरक जीवन मूल्य हैं। चमक उसी को प्राप्त होती जो महान होता है। लेकिन क्षमा के अभाव में मनुष्य दानव बन जाता है। हम न किसी से क्षमा मांगे, न किसी को क्षमा करें, तो क्या होगा। बैर भाव बढ़ता ही जाएगा। भीतर बी भीतर हम हमेशा आक्रोश में ही रहेंगे। तो फिर दम मनुष्य होकर भी किसी दानव से कम नहीं होंगे, क्योंकि दानव यानी राक्षसों के भीतर आक्रोष ही तो भरा रहता है। हमें अपने भीतर की दानवता का शमन करने के लिए पूरे मन और संपूर्ण समर्पण भाव से अपनी हर भूल की क्षमा मांगने और दूसरों को क्षमा करने का संकल्प करना चाहिए। क्योंकि क्षमा ही हमारे जीवन धर्म की प्रतिष्ठा का प्राण है।
धर्म की प्रतिष्ठा का यह प्राण अवस्थित है पर्यूषण महापर्व की अवधारणा में। पर्यूषण महापर्व आत्मा को शुद्ध करने का पर्व है। दरअसल, मन जब शुद्ध होता है तभी वह प्रसन्न होता है। हम जब किसी से क्षमा मांगते हैं, मिच्छामि दुक्कड़म कहते हुए विनम्रता से हाथ जोड़कर सिर झुकाते हैं, तो सामनेवाले का मन तो प्रसन्न होता ही है, हमारा भी मन खिल उठता है। मन जब खिलता है, वही पल है जब हम स्व. के सबसे ज्यादा निकट होते हैं। पर्यूषण की व्याख्या करते हुए कहा जा सकता है कि पर्यूषण का मतलब स्वयं के निकट होना है। स्वयं के निकट यानि अपने असली केंद्र की ओर लौटना। पर्यूषण दो शब्दों का मेल है। परि एवं उषण। परि का मतलब है चारों ओर सेतथा उषण का अर्थ है दाह। जिस पर्व में चारों तरफ से कर्मों का दाह यानी विनाश होता है, वह पर्यूषण है। जब हमारे हर तरह के कर्मों का शमन होता है, तभी हम स्वयं के सर्वाधिक निकट जा सकते हैं। यह आत्मा में अवस्थित होने का पर्व है।
पर्यूषण महापर्व के दौरान हमारा सारा ध्यान जीवन के सुखों के संयम पर होता है। कहा जाता है कि यह संयम जिसके जीवन में है और जो धार्मिक आचरण में रहता है, उनका देवी-देवता भी अभिनंदन करते हैं। पर्यूषण महापर्व के दौरान धार्मिक कार्यों एवं धार्मिक आचरण का ज्यादा महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यह मानव जीवन के उत्सर्ग का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। जिस प्रकार वर्षा के मौसम में बरसात का पानी जमीन में प्रवेश कर भूमि को उपजाऊ व ऊर्जावान बनाता है। ठीक उसी तरह पर्यूषण महापर्व के दौरान किया गया धर्माचरण मनुष्य को पवित्रता एवं शांति का परम सुख प्रदान करता है।
इसी परम सुख प्रदान करनेवाले महापर्व के समापन का पर्व है क्षमापना। दरअसल, क्षमा में बहुत बड़ी ताकत होती है। वह सब बराबर कर देती है। हम जब क्षमा मांगते हैं, तो हमारे मन के भाव बदलने के साथ ही सामने वाले के भाव भी बदल जाते हैं। वे बदवे हुए बाव ही क्षमा मांगनेवाले को क्षमा प्रप्त करने की पात्रता से भर देते हैं। इसीलिए सामनेवाले को भी क्षमादान के लिए प्रेरित होना पड़ता है। यही प्रेरणा क्षमा मांगने वाले को तपस्वी बनाती है और क्षमा प्रदान करनेवाले को दानवीर। यही वजह है कि हमारे ग्रेंथों में बी कहा गय़ा है कि क्षमा प्रदान करने से दान बड़ा कोई दान है ही नहीं। क्योंकि वह दो मनों के बोझ को हल्का करता है। और मन जब हल्का होता है तो जीवन में भी सुकून के फूल खिलने लगते हैं। पर्यूषण महापर्व और क्षमापना के इस पावन अवसर पर, आप सबके जीवन की बगिया में भी सुख, शांति और समृद्धि के फूलों की बहार हमेशा खिली रहे, यही शुभाशीष। मिच्छामि दुक्कड़म। 
(मीडिया विशेषज्ञ निरंजन परिहार से हुई बातचीत के अंश)

गहलोत की पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त...!


-निरंजन परिहार-
राजस्थान में चुनाव की बिसात बिछ गई है। अशोक नहीं ये आंधी हैं, मारवाड़ का गांधी हैं के नारे फिर से गूंजने लग गए हैं। कांग्रेस में जोश कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस में प्रदेश के निर्विवाद रूप से सबसे बड़े नेता के रूप में अपने होने को साबित कर चुके हैं। अब सबसे मुश्किल काम शुरू होने वाला है। दो सौ विधानसभाओं में उम्मीदवारियां तय करने की तैयारी है। नेताओं के लिए अपनी असल ताकत साबित करने का यही सही वक्त है। माहौल बदल गया है। इसीलिए लोग अभी से कहने लग गए हैं कि सरकार तो फिर से अशोक गहलोत की ही बनेगी, कांग्रेस की ही बनेगी।

राहुल गांधी की सलूंबर में हुई सभा के बाद हालांकि दिख तो यही रहा है कि सारे कांग्रेसियों को संभावित जीत ने एकजुट कर दिया है। सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी अध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान, प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत, सीपी जोशी, राजस्थान से निकलकर दिल्ली जाकर बने सारे केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास, शीशराम ओला, चन्द्रेश कुमारीनमोनारायण मीणा, सचिन पायलट, लालचन्द कटारिया, सब के सब सलूंबर में थे। डेढ़ लाख आदिवासियों – किसानों की भीड़ इकट्ठा करने के लिए दिन रात सफल मेहनत करने के लिए गहलोत को बधाई दे रहे थे। आपस में देखकर मुस्कुरा भी रहे थे। एकजुट लग रहे थे। पर राजनीति में, खासकर कांग्रेस की राजनीति में अंत में होता वही है, जो किसी को भी दिखता नहीं है। और, जो दिखता है, वह तो कभी भी नहीं होता। सो, राहुल गांधी की सलूंबर सभा की सफलता को दरकिनार करके नेता अपने लोगों को टिकट दिलाने की तैयारी में लग गए हैं।
विधानसभा चुनाव सर पर हैं। उम्मीदवारी तय करने के दिन आ गए हैं। इस बार टिकट की मारामारी बहुत ज्यादा होनेवाली है। सो, बड़े नेता कमर कस रहे हैं। सबसे ज्यादा कोशिश सीपी जोशी करते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, वे खुद भी जानते हैं कि दिल्ली से लेकर राजस्थान के गांव की बिल्ली तक सभी को पता है कि प्रदेश में कांग्रेस अकेले गहलोत की ताकत पर ही टिकी हुई है। इसलिए इस बार भी उनकी कोई बहुत ज्यादा नहीं चलनेवाली। लेकिन फिर भी राजनीति में इस तरह से हार मानकर कोई भी आसानी से घर नहीं बैठ जाता। भले ही बिहार में भी विधानसभा के चुनाव हैं और एआईसीसी महासचिव सीपी जोशी वहां के प्रभारी होने के नाते वहां भी बहुत व्यस्त रहेंगे। लेकिन मन तो उनका राजस्थान में ही रमता है। सो, खबर है कि सीपी जोशी ने विधानसभा चुनाव में राजस्थान में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए कमर कस ली है।   
वैसे, कहते तो यही हैं कि दिल्ली की माई और कांग्रेस के भाई, दोनों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान में खुली छूट दे दी है। लेकिन गहलोत ठहरे गांधी के अनुयायी। मारवाड़ के गांधी, सबको साथ लेकर चलने और सबकी सुनकर काम करने के मूड़ में लगते हैं। पता नहीं सच में ऐसा हो पाता है या नहीं, पर कोशिश तो ऐसी ही रहे हैं। गहलोत जानते हैं कि राजस्थान के इतिहास में सारे के सारे 200 टिकट आज तक न तो कोई अपनी मर्जी से बांट सका है और न ही कभी ऐसा हो सकता। फिर वे तो यह भी जानते हैं कि वे अगर अकेले कर भी लेंगे, तो दुश्मनों की फौज में और इजाफा हो जाएगा। नेता बहुत हैं। कम से कम प्रदेश में पांच बड़े नेता तो हैं ही। एआईसीसी के महासचिव सीपी जोशी, केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास और शीशराम ओला, केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह और सचिन पायलट। लेकिन इन सबकी मुश्किल यह हैं कि सारे के सारे इलाकाई और कबिलाई के नेता हैं। मेवाड़ के बाहर सीपी और गिरिजा का प्रभाव कितना है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। सचिन पायलट अपने पिता राजेश पायलट की तरह गुर्जरों के एकछत्र नेता नहीं हैं। वे अभी तो अपनों में ही जगह बनाने की कोशिश में हैं। जितेंद्र सिंह का मेवात से बाहर कोई बहुत ज्यादा असर नहीं है। सारे जानते हैं कि कांग्रेस के किसी नेता का पूरे के पूरे प्रदेश में समान प्रभाव हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत ही हैं।
फिर भी राजनीति तो राजनीति है। कितनी भी नीतियां बना लीजिए, चाहे जितने नियम लागू कर दीजिए, कोई फर्क नहीं पड़ता। सो, सीपी जोशी को भले ही केंद्रीय मंत्री पद से हटाकर कमजोर करके पार्टी के महामंत्री के रूप में बंगाल, बिहार जैसे कांग्रेस के लिए दुष्कर राज्यों का प्रभारी बना दिया गया हो, फिर बिहार में भले ही चुनाव भी हों, लेकिन गहलोत पर भारी साबित होने की कोशिश में सीपी जोशी राजस्थान में दखल देते रहेंगे। हालांकि, गहलोत पर भारी पड़ना सीपी जोशी के बस की बात न तो पहले थी और न अब है। फिर जिस मेवाड़ को सीपी जोशी अपनी जागीर मानते हैं, वहां की करीब तीन दर्जन से अधिक सीटों के टिकट बंटवारे में गिरिजा व्यास और रघुवीर मीणा भी अपनी बड़ी भूमिका हैं। गिरिजा व्यास और मीणा दोनों, अब पहले से ज्यादा ताकतवर हैं। फिर कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद भी मेवाड़ से ही है। सो, मेवाड़ में अकेले सीपी जोशी को ज्यादा भाव देकर कांग्रेस खुद को कमजोर करने के मूड़ में नहीं है।
देखा जाए, तो टिकट बंटवारे में अशोक गहलोत को एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि इस बार राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी के रूप में गुरूदास कामत को खास तौर से दिल्ली से भेजा गया है। राजनीति में उनकी ताकत का अंदाज सभी को है। कामत कोई लुंज पुंज राजनेता नहीं हैं। पार्टी के रास्ते में कांटे बोनेवालों और तकलीफ पैदा करने वालों के साथ बहुत सख्ती से निपटने में माहिर भी हैं। माना जा रहा है कि ऐसे ताकतवर आदमी को सोनिया गांधी ने गहलोत की ढ़ाल बनाकर भेजा है। लेकिन कांग्रेस है, सो, खींचतान तय है। सो, किसी भी तरह गुटबाजी बहुत ज्यादा न पनपे, इसके लिए पार्टी दिल्ली दरबार से राहुल गांधी के जरिए सभी बड़े नेताओं को संदेश दे दिया गया है कि वे कोई भी ऐसा कदम न उठाए, जिससे गहलोत ने जो फिर से कांग्रेस को सत्ता में लाने का जो मजबूत माहौल बनाया है, वह कमजोर पड़ जाए। पार्टी मानती है कि अशोक गहलोत माहौल को बदलने में सफल रहे हैं। राजस्थान में कांग्रेस के बाकी नेताओं के असहयोग के बावजूद कांग्रेस को सत्ता में फिर से लाने के पथरीले रास्ते को उन्हीं ने सहज बनाया है। अपना मानना है कि अशोक गहलोत यह सब बहुत आसानी से इसलिए कर लेते हैं, क्योंकि बहुत सीधे, सरल, सहज और सादे दिखने के बावजूद गहलोत राजनीतिक रूप से बहुत परिपक्व हैं और कहां का दर्द ठीक करने के लिए चोट कहां करनी हैं, यह उन्हें पता है। पता नहीं होता, तो राजस्थान की गलियों में,  ‘अशोक नहीं ये आंधी हैं... के नारे अभी से थोड़े ही गूंजते। वैसे, लोग कहते हैं कि गहलोत की असल अग्नि परीक्षा तो टिकट बंटवारे में होगी। लेकिन इसके जवाब में अपनी बात को अगर फिल्मी भाषा में कहें, तो गहलोत की असल पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त...। खेल तो अभी शुरू हुआ है। देखते रहिए, अभी तो और क्या - क्या होता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)