Thursday, September 12, 2013

..तो राजनीति में कइयों को निवृत्त कर देगी निवृति कुमारी

-निरंजन परिहार-
राजस्थान की राजनीति में उम्मीद की जा रही है कि मेवाड़ की राजनीतिक धाराएं बदलनेवाली हैं। खासकर बीजेपी की राजनीति में मेवाड़ का महत्व आनेवाले दिनों में कुछ और बढ़ सकता है। निवृत्ति कुमारी मेवाड़ आ रही हैं। वे पूरे ठसके से आ रही हैं और सब कुछ ठीक ठाक रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि निवृत्ति कुमारी आनेवाले दिनों में बीजेपी के कई तीसमार खांओं की राजनीति से निवृत्ति के रास्ते तय कर दे। मेवाड़ वैसे भी राजनीतिक रूप से निरंकुश रहा है। लेकिन मेवाड़ राजघराने की निगाह में जब तक बीजेपी की कमान रही, सब कुछ ठीक ठाक ही था। महाराणा भगवत सिंह और भानुकुमार शास्त्री के जमाने में इतने लफड़े नहीं थे। गुलाबचंद कटारिया भी सब कुछ अच्छे से ही सम्हाले हुए थे। लेकिन आजकल मेवाड़ बीजेपी में यह निरंकुशता कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई दिखाई देती है। विशेषकर तब से, जब से किरण माहेश्वरी जैसे लोगों को पार्टी में अचानक उनकी औकात से बहुत ज्यादा जगह मिली, पार्टी में एक दूसरे का सम्मान ही समाप्त हो गया। लेकिन अब लगता है कि मेवाड़ में बीजेपी के दिन फिरनेवाले हैं। राजनीति में इस उम्मीद की किरण कोई माहेश्वरी नहीं बल्कि मेवाड़ राजघराने की होनेवाली यह नई बहुरानी हैं, जिनके हाथों मेवाड़ में बीजेपी के कल्याण की उम्मीद की जा रही है।
 मेवाड़ राजघराना वैसे भी, सालों तक राजस्थान में बीजेपी की राजनीति को कंट्रोल करता रहा। लेकिन महाराणा भगवत सिंह के दिवंगत हो जाने के बाद राजनीति पर से मेवाड़ राजघराने का कंट्रोल छूटता गया। महाराणा भगवतसिंह विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष थे। वे जब गए, तो मेवाड़ को लगा था कि हिंदुत्व का सूर्य अस्त हो गया। महाराणा प्रताप का प्रतापी शासन हिंदुत्व के इतिहास की शान माना जाता है। मेवाड़ राजघराना अपनी परंपरा के मुताबिक हिंदुत्व का प्रबल पक्षधर रहा है। लेकिन महाराणा भगवत सिंह के बाद मेवाड़ राजघराने का राजनीति में कोई सक्रिय योगदान कभी नहीं रहा। उल्टे, महाराणा भगवत सिंह के जाने बाद में तो मेवाड़ राजघराने के पूर्व शासकों के आपसी झगड़ों को सड़क पर बिखरते और प्रताप की परंपराओं को तार तार होते आपने और हम सबने देखा ही है। महाराणा भगवत सिंह के वंशज अरविंद सिंह मेवाड़, उदयपुर के अपने पुराने किलों और महलों को सहेजकर उनको होटल के रूप में दुनिया भर में ख्याति दिलाने में जरूर सफल रहे हैं। वे सामाजिक कार्यक्रमों में भी कभी कभार देखे जाते रहे हैं, लेकिन राजनीति में आने की बहुत प्रबल इच्छाओं के बावजूद राजनीतिक रूप से उपेक्षित ही हैं। बरसों हो गए, अरविंद सिंह का मेवाड़ की राजनीति में भी कहीं कोई दखल कभी नहीं दिखा।
 लेकिन अब लगता है कि राजनीति में मेवाड़ का सितारा एक बार फिर से बुलंद होनेवाला है। बुलंदी की यह आस दिख रही है राजघराने की नई होनेवाली युवरानी में। माना जा रहा है कि राजघराने के युवराज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ की जिस युवती से सगाई हुई है, वह ओडीशा के बोलांगीर राजघराने की राजकुमारी निवृत्ति कुमारी सिंह आने वाले समय में मेवाड़ की राजनीति की राहों को बदल सकती है। इस काम में उनके होनेवाले पति लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का भी उन्हें सहयोग मिल सकता है। लक्ष्यराज सिंह की भी राजनीति में रुचि तो रही ही है, जो कभी उदयपुर क्रिकेट असोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में तो कभी राजनीतिक मंचों पर उनकी उपस्थिति के जरिए जोर मारती रहती है। अपने पिता महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ से थोड़े भिन्न राजकुमार लक्ष्यराज सिंह का लोगों से जुड़ाव ज्यादा है। उन्हें कभी कभार उदयपुर शहर में भी घूमते देखा जा सकता हैं। इन्हीं वजहों से लोग भले ही उनको बहुत जिंदादिल व नेक इंसान मानते हों, लेकिन अब भी आम लोगों तक उनकी पहुंच बहुत ही कम है। वैसे भी राजा होने की वजह से महलों में रहने की मजबूरियां आम जनता से इतनी दूरी तो बना ही देती हैं। लेकिन सक्रिय राजनीति की शौकीन पत्नी के रूप में अब उनको भी एक मजबूत राजनीतिक जीवन साथी मिल जाएगा, जो जनता और उनके बीट की इन दूरियों को मिटाने में सहयोगी साबित होगा।
 निवृत्ति कुमारी सिंह तेज तर्रार हैं, खूबसूरत भी हैं और धारदार भी। राजघराने की होने की वजह से मान देना और बदले में सम्मान पाना, दोनों उनको आता भी है, भाता भी है और सुहाता भी है। राजनीति में उनकी गहरी रुचि है क्योंकि वह उनके खून में है। यह सब राजवंश की होने के कारण नहीं बल्कि मेवाड़ की इस नई बहू को राजनीति अपने माता पिता से विरासत में मिली है। उनके पिता कनकवर्धन सिंह ओडीशा बीजेपी के अध्यक्ष हैं और मां संगीता सिंह बीजेपी की सांसद रही है। खास बात यह है कि अपने माता और पिता दोनों के राजनीतिक मामलों को संभालने में निवृत्ति कुमारी हमेशा से महत्वपूर्ण काम करती रही है। वे चुनाव प्रबंधन करने से लेकर सभाएं आयोजित करने, जनसंपर्क संभालने, कार्टकर्ताओं को सहेजने, उनकी हौसला अफजाई करने और चुनाव जीतने की अंदरूनी रणनीति तय करने में वे अहम रोल निभाती रही हैं। उनके इन्हीं सारे गुणों की वजह से बीजेपी की पहली पांत के प्रमुख नेता उनको निजी तौर से जानते हैं और उनकी राजनीतिक क्षमता का लोहा भी मानते हैं। ये नई पीढ़ी का नया चेहरा हैं और बड़े नेताओं से उन के संबंध भी बहुत अच्छे है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी, और बीजेपी के लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी आदि सभी उनके काम करने के तरीकों से वाकिफ हैं।
राजनीति में निवृत्ति कुमारी की काम करने की परंपरागत पारिवारिक शैली को देखकर कहा जा सकता है कि वे भले ही राजकुमारी है और महलों में रहती हैं, लेकिन दिल उनका हमेशा महलों की ऊंची दीवारों को फांदकर गलियों और चौबारौं में घुमक्कड़ी करता रहता है, ताकि लोगों के मन को समझा जा सके। वे मजबूर मन की मजबूती और मकाबला करने की ताकत को समझती हैं। सुनते हैं कि कमजोर और जरूरतमंद की मदद के लिए इसीलिए वे हमेशा तैयार रहती है। बोलांगीर की राजकुमारी निवृत्ति कुमारी सिंह जनवरी 2014 में ब्याह कर मेवाड़ की बहूरानी बनकर उदयपुर आएंगी। इसी साल मई - जून में लोकसभा के चुनाव हैं। यह बहुत सहज बात है कि निवृत्ति कुमारी अगर राजनीति में आती हैं, तो मेवाड़ के सियासी समीकरण बदलना तय है। लेकिन मेवाड राजघराने की राजनीतिक आकाश पर फिर से छा जाने की मंशा ने ज्यादा जोर मारा और नई बहू को अगर पूरी छूट मिली और तो यह भी तय है कि निवृत्ति कुमारी अपनी चमत्कृत कर देनेवाली राजनीतिक कलाबाजियों से बीजेपी को बीमार करनेवालों की राजनीतिक निवृत्ति भी जरूर तय कर देगी।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)