राज बब्बर की राजनीतिक रौनक
-निरंजन परिहार-
बारह
रुपए में खाना मिलने की बात कहकर खबरों से लेकर विवादो तक सब में अचानक छा गए राज
बब्बर के दिल्ली में महादेव रोड के बीस नंबर बंगले की रौनक अब कुछ ज्यादा ही बढ़
गई हैं। इसलिए, क्योंकि
राज बब्बर अपने जीवन के अब तक के सबसे मजबूत मुकाम पर हैं। कुछ दिन पहले तक वे
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यसमिति के सदस्य थे। पर अब वे अधिकारिक प्रवक्ता भी हैं। राजनीति में, और खासकर कांग्रेस
में देश चलाने के रास्ते इसी तरह से खुलते हैं। एक आदमी किसी एक जनम में आखिर जितना
कुछ हो सकता है, राज बब्बर
इसके सबसे सटीक उदाहरण हैं। वे राजनेता भी हैं, अभिनेता भी और जन नेता भी।
अगर, जन नेता नहीं होते, तो अखिलेश सिंह यादव के यूपी के सीएम बन
जाने से खाली की हुई सीट से उनकी पत्नी और मुलायम सिंह यादव जैसे कद्दावर नेता की
बहू डिंपल यादव को हराकर राज बब्बर फिरोजाबाद से संसद में नहीं पहुंचते। वे जन नेता है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की घनघोर जातिवादी
राजनीति के बीच राज बब्बर जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उस पंजाबी समुदाय की आबादी तो उस इलाके
में एक प्रतिशत भी नहीं है, जहां से वे जीतकर आते रहे हैं। वे फिरोजाबाद से जीते, जहां की चूड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर
हैं। आगरा से वे जीतते रहे हैं, जहां का ताज दुनिया भर का सरताज है। पहली बार 1994 में राज्यसभा और उसके बाद तीन बार
लोकसभा में पहुंचे राज बब्बर अब कांग्रेस के सांसद हैं। इससे पहले उनकी राजनीति
चमकी तो बहुत, पर वह चमक
इतनी चमत्कृत कर देनेवाली चकाचौंध भरी कभी नहीं थी। पर, आज राज बब्बर को देश के सर्वोच्च सत्ता
की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गांधी का विश्वास हासिल है और राहुल गांधी भी उनकी
बात पर भरोसा करते हैं। खासकर यूपी के मामलों में उनकी सलाह का महत्व माना जाता
है। मतलब साफ है कि वर्तमान तो अच्छा है ही, अब भविष्य भी उज्ज्वल ही लग रहा है। देश की
सरकार चलाने के रास्ते दस जनपथ से ही निकलते हैं, और जिसे वहां का विश्वास हासिल हो, तो जिम्मेदारियां भी कुछ ज्यादा ही बढ़
जाती हैं। कांग्रेस में यह विश्वास किया जाता है कि राज बब्बर विश्वसनीय तो हैं ही, जिम्मेदार भी हैं। सो अगले लोकसभा चुनाव
के प्रचार अभियान के एक हीरो वे भी होंगे। स्टार कैंपेनर तो वे शुरू से ही रहे हैं, और फिल्मों में हीरो भी। सो, लोगों का
लगाव और भरोसा दोनों उनको कुछ ज्यादा ही हासिल है।
हालांकि, राज बब्बर की जिंदगी पहले भी मजे से थी और आज भी कोई कमी नहीं है। यह तो, निरंकुश सीईओ की भूमिका में आकर अमर सिंह ने मुलायम सिंह की पूरी समाजवादी पार्टी को ही अपनी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में तब्दील कर दिया था, जिससे नाराज होकर राज बब्बर ने अलविदा कह दिया। फिर, अमर सिंह तो खैर, अपने आप में एक अलग संस्कृति के प्राणी थे। वह संस्कृति, जो दलाली से निकल कर सिर्फ दलदल में समाती है, अमरसिंह जीते जी उसी में समा गए। उनकी राजनीति का अंतीम संस्कार लगभग हो चुका है। लेकिन राज बब्बर संस्कारी आदमी हैं। उनको समाजवादी पार्टी या संस्कार, दोनों में से एक को उनको चुनना था, सो उन्होंने समाजवादी पार्टी से अपने संबंधों का अंतिम संस्कार करते हुए अलविदा कह दिया। वीपी सिंह के साथ जनमोर्चा को फिर जीवित किया, लेकिन बाद में कांग्रेस में आ गए। अब जमकर काम कर रहे हैं।
राज बब्बर मूल रूप से अभिनेता हैं। फिल्मों में काम किया, तो इस कदर किया डूबकर किया कि कभी फिल्में उनकी वजह से और कभी वे फिल्मों की वजह से चलते रहे। यही वजह है कि उनने भले ही अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त राजनीति को देना शुरू कर दिया हो, पर फिल्मों ने उनको अभी भी अपनी मजबूत डोर से बांधे रखा है। राज बब्बर अब फुल टाइम राजनेता हैं, फिर भी फिल्में हैं कि मुंईं छोड़ती ही नहीं। शायद इसलिए, क्योंकि राज बब्बर के होने की अहमियत फिल्मों को पता है। हाल ही में आई उनकी फिल्म ‘साहब, बीवी और गैंगेस्टर’ के उस सीन को याद कीजिए, जिसमें राज बब्बर सिर्फ एक शब्द और एक सीन में ही पूरी महफिल ही लूटकर निकल जाते हैं। आपको याद हो तो, ‘साहब, बीवी और गैंगेस्टर’ में जब वह मुग्धा के आइटम सॉंग के दौरान मुग्ध होकर निहायत त्रस्त स्वर में ‘तिवारी........’ पुकारते हैं, तो हर किसी को समझ में आ जाता है कि किसी फिल्म में राज बब्बर के होने का मतलब क्या है। लेकिन फिर भी राज बब्बर के लिए रिश्ते रिश्ते हैं, जिंदगी जिंदगी है और सिनेमा सिनेमा। राज बब्बर से अपने रिश्तों पर बात कभी और करेंगे। क्योंकि अपन इतना जानते हैं कि संबंधों के समानांतर संसार की संकरी गलियों में रिश्तों की राजनीति के राज, राज बब्बर अच्छी तरह जानते हैं। महादेव रोड़ के उनके बंगले पर कुछ ज्यादा रौनक कोई यूं ही नहीं है।