-निरंजन परिहार-
राजनीति और खेल।
रिश्ता पुराना है। बहुत पुराना। इतना पुराना कि पहले खेल शुरू हुए या राजनीति पहले आई, यह कोई नहीं कह सकता। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि खेल
में राजनीति और राजनीति में खेल अकसर होते रहते हैं। यही नहीं, लोग तो खेल – खेल में भी राजनीति
कर लेते हैं, और राजनीति करते करते लोग कई तरह के खेल, खेल लेते हैं, यह भी सभी जानते हैं।
होने को तो वैसे भी राजनीति किसी खेल से कम नहीं है। लेकिन खेल की राजनीति और
राजनीति के खेल का अगड़म बगड़म बहुत उलझन भरा है। इतना उलझनवाला कि जो समझ जाता है, वह जीत जाता है, और जो नहीं समझ पाता, वह पूरे जीवन इसी में
उलझकर खेल करते करते कब राजनीति के इस खेल का शिकार हो जाता है, उसे खुद भी पता
नहीं चलता। लेकिन अकसर ऐसा भी होता है कि खेल खुद राजनीति के शिकार हो जाते हैं।
और ऐसा खासकर तब होता है, जब राजनेता राजनीति करने के बजाय खेल करने लग जाएं। राजस्थान के सीएम
अशोक गहलोत इन दिनों खेल और राजनीति की इसी उलझन को सुलझाने में कोशिश में हैं।
लेकिन खेल के मैदानों में बैठकर राजनीति कर रहे नेताओं के समर्थक इसे भी गहलोत का
एक खेल ही समझ रहे हैं। राजस्थान में पहली बार राजनीति के खेल का मामला सबकी जुबान
पर है।
मेवाड़ के दमदार
कांग्रेस नेता सीपी जोशी आजकल राजनीति भी कर रहे हैं और खेल की राजनीति में भी
हैं। इसीलिए आशंका हर पल यही है कि कहीं वे राजनीति के खेल के शिकार न हो जाएं।
होने को तो वे इन दिनों कांग्रेस के अखिल भारतीय महासचिव हैं। पर दिन में भी सपने
वे राजस्थान और खासकर मेवाड़ के ही देखते रहते हैं। मेवाड़ कांग्रेस का गढ़ रहा
है। कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें वहीं से मिलती रही है। लेकिन भले ही इस बार भी
मेवाड़ के सलूंबर से ही राहुल गांधी ने फिर से कांग्रेस को जिताने का संकल्प
दिलाया हो। पर मामला आसान नहीं है।
राजस्थान को चार
मुख्यमंत्री देने वाले मेवाड़ के उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा,
प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा आदि जिलों में कुल 35 विधानसभा सीटें हैं। इतिहास
रहा है कि कांग्रेस के लिए तो कमसे कम राजस्थान की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर
जाता है। उदयपुर से मोहनलाल सुखाड़िया, बांसवाड़ा से हरिदेव जोशी, भीलवाड़ा से
शिवचरण माथुर और राजसमंद से हीरालाल देवपुरा जैसे नेता इसी मेवाड़ की धरती से
जीतकर ही प्रदेश के सीएम बने। मेवाड़ ने अकसर कांग्रेस का साथ दिया है। यही कारण
है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही यहां अपनी चुनावी तैयारियों में कोई कसर नहीं
छोडऩा चाहते। कांग्रेस परेशान है, क्योंकि पार्टी के विधायकों के पास गिनाने के
लिए सरकार की योजनाएं तो हैं। लेकिन अपनी ओर से कराया कोई भी बड़ा काम बताने को नहीं
है। भले ही इस बार वहां बहुमत कांग्रेस का है, लेकिन परेशानी यह है कि पूरी
कांग्रेस खेमों में बंटी हुई है। सीपी जोशी का इलाका भीलवाड़ा है, लेकिन वे पूरे
मेवाड़ में दखल चाहते हैं। डॉ. गिरिजा व्यास चित्तौड़ की सांसद हैं, लेकिन वे बड़ी
और पुरानी नेता है, सो किसी का दखल नहीं चाहती और खासकर सीपी जोशी को तो किसी भी
सरह का सहयोग उनको नहीं चाहिए। वागड़ में ताराचंद भगौरा मजबूत हैं, तो उदयपुर के रघुवीर मीणा अपनी मर्जी के उम्मीदवार
चाहते हैं। सीपी जोशी की मुश्किल यह है कि इन दिनों वे अकेले पड़ते जा रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास, अखिल भारतीय कांग्रेस के सचिव ताराचंद भगौरा और
सांसद रघुवीर मीणा इन दिनों पूरी तरह अशोक गहलोत के साथ हैं। ये तीनों सीपी जोशी
के किसी भी आदमी को पनपते देखना नहीं चाहते। और सीपी हैं कि हर इलाके में खुद को
मजबूत बनाने की कोशिश में पांव फैलाते जा रहे हैं। मामला सीएम का ख्वाब पूरा करने
का है।
सीपी जोशी मानकर चल
रहे हैं कि भले ही कांग्रेस ने अशोक गहलोत को पूरी छूट दे दी हो। लेकिन चुनाव के
बाद बाजी पलट भी सकती है। अपना मानना है कि हम सबको सपने देखने चाहिए। जिस दिन
हमने सपने देखना बंद कर दिया, उसी दिन से हमारा पराभव भी शुरू हो जाता है। यही
कारण है कि खवाब पूरे होने की आशंकाओं और पार्टी में पनपती गुटबाजी के बीच झूलती
कांग्रेस की राजनीति अब मेवाड़ से कोई नया मोड़ लेकर पूरे प्रदेश की राजनीति को
किसी दूसरे मुकाम पर ले सकती है। मेवाड़ में कांग्रेस की एक दर्जन से अधिक सीटों
पर चल रही गुटबाजी की जबरदस्त हवा है। सांसद रघुवीर मीणा की पत्नी बसंती मीणा सलूम्बर
से विधानसभा चुनाव में 3 हजार 98 वोटों से जीती थी। मगर वे अपने पति रघुवीर मीणा
की 23 हजार 353 वोट से हुई जबरदस्त जीत का जलवा कायम नहीं रख सकी। मावली से सीपी
जोशी के घनघोर समर्थक पुष्कर डांगी पिछले चुनाव में 4 हजार 862 वोटों से जीते थे।
लेकिन अब वे सीपी की शह पर सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ है, तो गहलोत के समर्थक उनको
मजा चखाने के लिए कमर कस चुके हैं। वल्लभनगर से पिछली बार 6 हजार 660 वोटों से
जीते गजेन्द्रसिंह शक्तावत अब मुख्यमंत्री खेमे में हैं। इसीलिए सीपी केसाथी उनको
नॆशाने पर लिए हुए हैं। गोगून्दा से 10
हजार 112 वोटों से जीते मांगीलाल गरासिया गहलोत की सरकार में मंत्री हैं। लेकिन
सत्ता विरोधी लहर के असर में फंसे साफ दिख रहे हैं। खैरवाड़ा से 14 हजार 757 वोटों
से जीते दयाराम परमार इतने साल बाद भी अपने वजूद की लड़ाई में ही खराब हो रहे हैं।
राजनीति में हर किसी को एक लाइन पकड़नी पड़ती है, लेकिन परमार किधर हैं, इधर या
उधऱ, कोई नहीं जानता। उदयपुर ग्रामीण से 10 हजार 696 वोट से जीती सज्जन कटारा अपने
स्वर्गीय पति खेमराज कटारा की तरह उदयुपर की राजनीति पर कब्जे की चाहत में हैं।
बांसवाड़ा में बागीदौरा से जीतकर मंत्री बने महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने 44 हजार
689 वोटों से जीतकर रिकॉर्ड कायम किया। लेकिन वागड़ के साथ साथ मेवाड़ की राजनीति
पर भी अपना मजबूत असर दिखाने के अति उत्साह में मालवीय कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं
के निशाने पर हैं। गढ़ी से 25 हजार 433 वोटों से जीती कांता गरासिया अपने परंपरागत
वोट बैंक के भरोसे हैं। बांसवाड़ा से 15 हजार 849 वोटों से जीते अर्जुनसिंह बामनिय
खेमेबंदी में इधर - उधर नजर आ रहे हैं। चित्तौडग़ढ़ के बेगूं में 643 वोटों से
जीते राजेन्द्र विधूड़ी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ खड़े हैं, सो मामला
गड़बड़ ही लगता है। कपासन में 6 हजार 654
वोटों से जीते शंकरलाल बैरवा अपनी सीट बचाने की कोशिश में हैं। चित्तौडग़ढ में 11
हजार 551 वोटों से जीते सुरेन्द्रसिंह जाड़ावत एकला चलो की रणनीति पर कदमताल कर
रहे हैं। निम्बाहेड़ा विधायक उदयलाल आंजना सीपी जोशी के समर्थक हैं, लेकिन उनके एक
बरसों पुराने सेक्स स्केंडल के सार्वजनिक हो जाने से सीपी जोशी को बड़ा झटका लगा
है। बड़ी सादड़ी के विधायक प्रकाश चौधरी भी अपनी ही सरकार के प्रति नाराजगी प्रकट
करके गहलोत के विरोध में खड़े होने का सबूत दे चुके हैं। प्रतापगढ़ में धरियावाद
से जीते नगराज मीणा जरूर अशोक गहलोत के साथ दिखाई दे रहे हैं। डूंगरपुर में 11
हजार 621 वोटों से जीते लालशंकर घाटिया, आसपुर में 14 हजार 547 से जीते राईया मीणा, सागवाड़ा में 32 हजार 326 वोटों से जीते सुरेन्द्र बामनिया पर सीपी
जोशी समर्थक का ठप्पा लगा हुआ है। इनमें से कुछ पहले गहलोत के साथ थे, तो कोई
गिरिजा व्यास के साथ। यह खेमेबाजी का खेल है।
दरअसल, यही राजनीति
का खेल हैं। हर कदम पर खेल। सीपी जोशी राजनीति से क्रिकेट के खेल में आए हैं और इसी
के जरिए राजनीति में भी खेल कर रहे हैं। वे किसी को जिला क्रिकेट संघ का अध्यक्ष
तो किसी को कमेची में मेंबर बवाकर खेल के जरिए अपनी राजनीति को मजबूत करने के खेल
कर रहे हैं। हालांकि, अशोक गहलोत, सीपी जोशी के इस सारे खेल को बहुत आसानी से खराब
कर सकते हैं, पर वे शायद इसके लिए सही वक्त की राह देख रहे हैं। सीपी भले ही इन
दिनों बड़े नेता हैं। पर, गहलोत भी कोई कम खिलाड़ी नहीं हैं। सीपी जो बनने के सपने
देख रहे हैं, उस सीएम की कुर्सी पर गहलोत दो बार पूरे दस साल से हैं। वे राजस्थान
की राजनीति के आज के खिलाड़ियों में सबसे मजबूत भी हैं और सीनियर भी। फिर राजनीति
में गहलोत पुराने हैं और ठेट राजीव गांधी के कार्यकाल में खेल मंत्री तो वे पूरे
देश के रहे हैं। इसीलिए राजनीति में खेल और खेल – खेल में राजनीति के खेल करने की
राजनीति दूसरों के मुकाबले ज्यादा समझते हैं। यही कारण है कि राजस्थान का आम
कांग्रेसी यही मानता है कि मेवाड़ से शुरू हुए शह और मात के इस खेल में भी गहलोत
सबसे बड़े खिलाड़ी साबित होंगे।
(लेखक राजनीतिक
विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)