बचा खुचा गुजरात भी
फतह कर आए ओमजी
-निरंजन परिहार-
बीजेपी के लौहपुरुषजी यानी लालकृष्ण आडवाणी पिघल गए हैं। नरेंद्र मोदी का
जयकारा लगनेवाला है। सुलह हो गई है। और ओमजी भाई साहब बम बम हैं। ओमजी, यानी
राजस्थान बीजेपी के दिग्गज नेता राज्यसभा सांसद ओम प्रकाश माथुर। लोग सम्मान के
साथ उनको बीजेपी में तो कमसे कम ओमजी भाई साहब के नाम से ही पुकारते हैं। और
दुश्मनों की मुसीबत यह है कि उनके लिए नाम बिगाड़कर बोलना आसानी से संभव नहीं है।
फिर ओम बिना जी के शोभा भी नहीं देता। सो, शुभचिंतकों से लेकर राजनीति के उनके
दुश्मन तक उनको इसी नाम से याद करते हैं। तो, ओमजी भाई साहब के बम बम होने की वजह
कोई नरेंद्र मोदी और लौहपुरुषजी की गलबहियां नहीं हैं। राजनीति में यह सब होता
रहता है। उनके खुश होने का कारण है गुजरात में उपचुनावों के परिणाम। कांग्रेस का
सूपड़ा साफ हो गया। दो लोकसभा और चार विधान सभा में से एक पर भी कांग्रेस नहीं जीत
पाई। और हार भी हुई तो बहुत बुरी तरह से। अब तक तो लोग चारों खाने चित होते थे।
पर, गुजरात की छहों सीटों पर कांग्रेस छहों खाने चित। और वह भी तब, जब नरेंद्र
मोदी ने किसी भी सीट पर जाकर प्रचार तक नहीं किया। सब कुछ ओमजी भाई साहब के हवाले
था। और ओमजी अकेले दम पर रहा सहा गुजरात भी फतह करके ले लाए।
राजस्थान बीजेपी के अब तक के सारे अध्यक्षों में सबसे पराक्रमी अध्यक्ष के
रूप में विख्यात ओमजी भाई साहब का गुजरात से पुराना नाता रहा है। बरसों से वे
गुजरात बीजेपी के प्रभारी हैं। गजब के रणनीतिकार हैं और राजनीति में पता नहीं कहां
से बिसात ही ऐसी बिछाना सीखे है कि दुश्मन के पास हारने के सिवाय कोई रास्ता ही
नहीं बचता। यह तो पिछली बार राजस्थान में वसुंधरा राजे को शायद यह डर था कि ओमजी
के लोग ज्यादा जीतकर आए, तो वे सीएम बन जाएंगे, सो आपस में ही लड़ मरे और अशोक
गहलोत आधे अधूरे जनमत पर कांग्रेस की सरकार बनाकर सीएम बन बैठे। वरना, सन 2008 में
राजस्थान में भी ओमजी ने रणनीति तो जगब की बनाई थी। माथुर बीजेपी के राष्ट्रीय
महामंत्री रहे हैं। इस बार भी महासचिव के लिए नाम लगभग तय था, पर बीजेपी में पता
नहीं चूक कहां हो गई कि माथुर रह गए।
गुजरात में दो लोकसभा सीटों- पोरबंदर और बनासकांठा के लिए और चार विधानसभा
सीटों के उपचुनाव में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की। गुजरात में इन उपचुनावों को कांग्रेस
के लिए अग्निपरीक्षा माना जा रहा था। ये सभी सीटें कांग्रेस के पास थीं। लोकसभा
सीट पोरबंदर से बीजेपी ने वहां पहले कांग्रेस का सांसद का चुनाव जीत चुके रादडिया
को मैदान में उतारा था। सांसद का पद छोड़कर रादडिया ने धोराजी से विधायक का चुनाव
लड़ा था। जीत गए। पर, कांग्रेस ने विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद नहीं दिया तो
अपने विधायक बेटे जयेश रादड़िया के साथ कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में आ गए।
साबरकांठा में कांग्रेस सांसद मुकेश गढ़वी के निधन से खाली हुई थी। दो लोकसभा और चारों
विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। मोदी के करीबी ओम
माथुर लंबे समय से गुजरात से जुड़े हैं। उनकी पकड़ को देखते हुए ही बीजेपी ने
उन्हें फिर से गुजरात का प्रभारी बनाया था।
गुजरात में उपचुनाव के दोरान चुनाव भी उन्हीं ने सजाया, लड़ाया भी उनने और
जिताया भी उन्हीं ने। यही वजह है कि गुजरात
की दो लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर बीजेपी के क्लीन स्वीप में सबसे
अधिक चर्चा चुनाव के रणनीतिकार ओमप्रकाश माथुर की ही है। गांधीनगर से लेकर दिल्ली और जयपुर तक ओमजी का डंका
बज रहा है। हालांकि वे पहले भी गुजरात में बीजेपी को जिताते और कांग्रेस को हराते
रहे हैं। लेकिन इस बार माथुर ने एक बार फिर कांग्रेस से सारी सीटें छीनकर अपने
प्रभारी होने को तो सार्थक किया ही है। गजब के रणनीतिकार होने की अपनी छवि को भी
मजबूत किया है। माथुर पर मोदी का भरोसा है। राजनीति में भरोसा जीतना कोई बहुत बड़ी
बात नहीं होती। बड़ी बात होती है भरोसा करना। पर, वसुंधरा राजे यह सब सीखे तब न...!
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक
और वरिष्ठ पत्रकार हैं)