नई भूमिका में नरेंद्र मोदी
-निरंजन परिहार-
आप जब ये पंक्तियां
पढ़ रहे होंगे, तो या तो गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के बारे में गोवा से कोई नई खबर
आपको मिल चुकी होगी। या फिर वह खबर बन रही होगी। या वह खबर हवा में तैरने को तैयार
होगी। थोड़ी देर बाद, जब आप अपना टीवी खोलेंगे तो ब्रेकिंग न्यूज की शक्ल में
बीजेपी में मोदी की नई भूमिका और उस भूमिका की महिमा का बखान होता देख रहे होंगे।
कुल मिलाकर, नरेंद्र मोदी अपने राष्ट्रीय अवतार में प्रकट होनेवाले हैं। गुजरात तो
फतह कर ही लिया है। अब देश में छा जाने की बारी है। राष्ट्रीय स्तर के बयान तो
मोदी के पहले से ही आने शुरू हो गए हैं।
अपन यह सब इसलिए कह पा
रहे हैं क्योंकि एक ही दिन में इतनी सारी खबरें एक साथ आई हैं कि नरेंद्र मोदी
अचानक बहुत बड़े नेता के रूप में उभरकर देश के सामने आए हैं। सबसे पहले तो 20 देशों के राजदूतों ने
मोदी से मुलाकात करके गुजरात के विकास पर बातचीत की। चौंकानेवाली बात यह है कि हिंदुस्तान के इतिहास
में पहली बार ऐसा हुआ है कि इतने सारे राजदूतों ने एक साथ मिलकर किसी सूबे के सीएम
के साथ वहां के विकास के मामले में मुलाकात की हो। ब्रिटेन और जर्मनी के बाद एक अन्य
यूरोपीय देश बेल्जियम ने कहा कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से संवाद
बढ़ाने को तैयार है ताकि गुजरात के साथ व्यावसायिक संबंधों को मजबूत किया जा सके।
गोवा
में हिंदू जागृति समिति द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिंदू सम्मेलन में मोदी का
लिखित संदेश पढ़ा गया। स्वामी रामदेव ने कहा कि नरेंद्र मोदी ही देश में अकेले ऐसे
नेता है जो जनाक्रोश को वोट में बदल सकते हैं। गोरक्ष पीठ के उत्तराधिकारी व
गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में कहा कि नरेंद्र मोदी में अच्छा
नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राजीव प्रताप रूड़ी
ने पटना में लगभग धमकाते हुए जेडीयू की हार पर कहा कि बीजेपी को ही नहीं जेडीयू को
भी नरेंद्र मोदी की जरूरत है। मोदी अगर बिहार में प्रचार के लिए आते, तो जेडीयू
नहीं हारती। नई दिल्ली में
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ऐलान किया कि मोदी और लालकृष्ण आडवाणी
के बीच कोई मतभेद नहीं हैं। और बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने
स्पष्ट किया कि उनके
लौहपुरुषजी लालकृष्ण आडवाणी न तो पार्टी के किसी नेता के पक्ष में हैं और न ही
किसी के विरोध में। इन सारी खबरों को एक दूसरे से जोड़कर देखें, तो निष्कर्ष यही
है कि दुनिया से लेकर देश और प्रदेश से लेकर समाज के स्तर पर मोदी और उनकी अगली
भूमिका के प्रति स्वीकारोक्ति बढ़ती जा रही है।
मंजिल
भले ही बहुत मुश्किल है, पर रास्ता भी कोई आसान नहीं है। ऐसा रास्ता पार कराने के
लिए कोई रहनुमा भी कोई मजबूत चाहिए। रथयात्रा निकाल कर लालकृष्ण आडवाणी रबहर बने,
तो बीजेपी की सरकार बन गई। अब आडवाणी वृद्ध हैं। शरीर थक जाता है और दिमाग तो पता
नहीं क्या क्या खेल कर रहा है, हम रोज देख ही रहे हैं। सो, बीजेपी को ही नहीं देश
भर को लग रहा है कि अगले चुनाव में मोदी से बढ़िया रहबर कोई नहीं हो सकता है। फिर
मोदी ने अपने बंदों को पहले ही दिल्ली के अशोक रोड़ स्थित बीजेपी के मुख्यालय में
प्रतिष्ठित कर दिया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर महासचिव अमित शाह
तक सबके सब उनके ही आदमी हैं। बाकी भी बहुत सारे मोदी के आदमी वहां बिराजमान हैं।
इस सबके पार जाकर देखें, तो मोदी एक खुर्रांट, खांटी और खबरदार करनेवाले राजनेता
के रूप में हर तरह से सफल भी हैं, सबल भी है और सक्षम भी। राजनीति में किसी के भी
किसी पद पर होने की इससे बड़ी योग्यता इसके अलावा कुछ नहीं होती। फिर मोदी तो
चमत्कार करने में माहिर हैं। सो, कद के मुताबिक पद भी तय है। सिर्फ ऐलान बाकी है। अपन
इसीलिए कह रहे हैं कि आप जब ये पंक्तियां पढ़ रहे होंगे, तो गुजरात के सीएम देश के
नेता के रूप में प्रतिष्ठित होने के लिए कदम बढ़ा चुके होंगे।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ट
पत्रकार हैं)