Thursday, August 9, 2018

गहलोत और पायलट के बीच, कांग्रेस किधर, इधर या उधर ?



-निरंजन परिहार-
 सचिन पायलट उत्साही भी हैं और युवा भी हैं। लेकिन साढ़े चार साल से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर होने के बावजूद, राजस्थान का युवा अब तक उनसे खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रहा है। अगर एक जोश से भरे हुए 40 साल के युवा नेता के प्रदेश अध्यक्ष के होने बावजूद प्रदेश का युवा एक बुजुर्ग होते जा रहे अशोक गहलोत में ही अपना नेतृत्व तलाश रहा है, तो इसे सचिन पायलट की जवानी में राजनीतिक खोट नहीं तो और क्या माना जाए। वे जनवरी 2014 से राजस्थान में कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। लेकिन इतने लंबे समय में भी प्रदेश के कांग्रेसी युवाओं तक में अपने प्रति यह भरोसा भी नहीं जगा पाए हैं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस राजस्थान जीत सकती है, तो इसे उनकी और कांग्रेस दोनों की बदकिस्मती कहने में हर्ज क्या है।

राजस्थान में आप कहीं भी चले जाइए और नींद से उठाकर भी किसी भी कांग्रेसी को तो क्या, सामान्य व्यक्ति को भी पूछ लीजिए कि राजस्थान मे कांग्रेस को कौन जिता सकता है। तो जवाब में अशोक गहलोत का ही नाम सुनाई देगा।  लेकिन राहुल गांधी को यह गूंज सुनाई नहीं देती। राजस्थान में रणभेरी बज चुकी है लेकिन फिर भी कांग्रेस के कमरों में सिर्फ कोलाहल है। चुनाव में नेतृत्व कौन करेगा, इसको लेकर हर स्तर पर असमंजस है। तस्वीर साफ है कि गहलोत होंगे, तो ही कांग्रेस कार्यकर्ता सक्रिय होगा, और तभी कांग्रेस राजस्थान जीतने का सपना पाल सकती है। लेकिन पता नहीं राहुल गांधी को यह बात समझ में आती भी है या नहीं।   

वैसे देखा जाए, तो सचिन पायलट एक खास किस्म की राजनीतिक दूरदृष्टिवाले नेता के रूप में अपनी राजनीतिक स्थापना के प्रयास कर रहे हैं। उनकी इस खास किस्म की राजनीतिक हरकतोंसे साफ लग रहा है कि वे बहुत दूर की सोच रहे हैं। जिस तरह से राहुल गांधी 2019 के बजाय 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति बनाते दिख रहे हैं। उसी तरह से राजस्थान में सचिन पायलट इस बार खुद को कांग्रेस के मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में स्थापित करके यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार जीतें न  जीतें, लेकिन अगले चुनाव के लिए स्थापित जरूर हो जाएंगे। लेकिन अगर अशोक गहलोत इस बार दिल्ली से राजस्थान आकर फिर से कांग्रेस को जिताकर मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए, तो 2023 में फिर से सचिन के लिए आज की स्थिति में आना बहुत मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि तब तक और भी कई चेहरे सामने आ जाएंगे। फिर  पायलट वैसे भी राजस्थान में कोई बड़े जनाधार वाले अजेय और अपराजेय राजनेता नहीं हैं। पायलट इसी कारण इसी बार से खुद को अगला मुख्यमंत्री स्थापित करने की कोशिश में हैं। मगर, इस सबका नुकसान कांग्रेस और उसके कार्यकर्ता का हो रहा है, जो बेचारा चाहता तो है कि कांग्रेस की सरकार बने। लेकिन यह भी मानता है कि पायलट के नेतृत्व में यह सपना सच होना संभव नहीं है। पायलट के कमजोर नेतृत्व और गहलोत के आने की उम्मीद के असमंजस में कार्यकर्ता परेशान है। मगर, केंद्रीय नेतृत्व है कि इस असमंजस को मिटाने की कोशिश करना तो दूर इस तरफ देख भी नहीं रहा है। यह कांग्रेस की कमजोरी नहीं तो और क्या है।

इसे तथ्य कह लीजिये या सत्य कि अशोक गहलोत ही राजस्थान के अकेले राजनेता हैं, जिनका समस्त राजस्थान में समान रूप से जनाधार है और देश भर में पार्टी के पार भी सम्मान बहुत ज्यादा है। पैंतालीस साल से लगातार किसी न किसी प्रमुख पद कर रहते हुए उन्होंने जिस तरह से राजस्थान और राजस्थानियों की सेवा की है, वह अब तक कोई और नहीं कर सका। गहलोत का राजनीतिक कद देश के किसी भी नेता के मुकाबले राजस्थान में बहुत बड़ा इसीलिये माना जाता है। और कांग्रेस में दस साल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम दर्ज है।  गहलोत के नेतृत्व में पंजाब चुनाव में जीत, गुजरात में बरसों बाद कांग्रेस के ताकतवर उभार और अमित शाह की क्रूरतम सियासी चालों के बावजूद राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल को हारी हुई बाजी जिताने में अशोक गहलोत का जो रोल रहा, उसी की वजह से वे राहुल गांधी के बाद कांग्रेस में देश के सबसे ताकतवर और सबसे बड़े नेता के रूप में उभरकर हमारे सामने हैं। इसीलिए अब गहलोत दिल्ली में है। मगर, राजस्थान के राजनीतिक पानी की तासीर देखें, तो इतिहास यही है कि वह जिसे बड़ा बनाता है, उससे अपना नाता कभी नहीं तोड़ता। भैरोंसिंह शेखावत भले ही उपराष्ट्रपति बने और दिल्ली जाकर देश के दिलों पर छा गए। लेकिन राजस्थान ने हमेशा उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपना ही समझा। इसी तरह से अशोक गहलोत भी कांग्रेस में आज राहुल गांधी के बाद नंबर दो हैं, लेकिन राजस्थान आज भी उन्हें अपना नंबर वन नेता मानता है। यही कारण है कि राजस्थान में किसी से भी पूछिये क्या कांग्रेसी और क्या कोई और। हर किसी का जवाब एक ही होगा कि राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में लाना सचिन पायलट के बस की बात नहीं है। चार साल से कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बावजूद पायलट अपने उम्र वर्ग के युवाओं में भी ना तो जोश जगा पाए हैं और ना ही अपने प्रति सम्मान। वे इतनी बड़ी और इतनी पुरानी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद की गरिमा और आचरण का पाठ भी पूरी तरह से नहीं पढ़ पाए हैं। अभी यह उनका प्रशिक्षण काल है। सो, सर्वमान्य तत्य यही है कि कांग्रेस की नैया तो सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत ही उबार सकते हैं। राजस्थान की जनता के दिलों में अशोक गहलोत के प्रति बहुत स्नेह और सम्मान है। जनता मान रही है कि इस स्नेह और सम्मान के प्रकटीकरण का यह सबसे सही अवसर है। लेकिन फिर भी गहलोत को दरकिनार करके अगर पायलट को पतवार सोंपने की गलती की, तो इसे भावनाओं का अपमान मानकर राजस्थान पलटवार करेगा। पायलट जैसे एक युवा नेता को तवज्जो न देकर समूचे राजस्थान का युवा अशोक गहलोत में उम्मीदें तलाश रहा है। तो, कुछ तो है गहलोत में। सोराहुल गांधी को यह समझने की ज़रूरत है कि गहलोत की अनुपस्थिति में कांग्रेस की लुटिया डूबना तय है। अपना पक्का मानना है कि  चुनाव जितानेवाले योध्दा के रूप में पायलट अभी बहुत कच्चे है। आप भी यही मानते होंगे !

(लेखक राजनीतिक विशेलषक हैं)