संजू बाबा मोहरा बने वोट बैंक के खेल में
-निरंजन परिहार-
जसवंत सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा को तो खैर माफ कर दीजिए। दोनों संजय दत्त की सजा माफ कराने की वकालात कर रहे हैं। राजनीति में ठिकाने लग गए लोग सार्वजनिक रूचि के मुद्दों की चादर ओढ़कर जब तब इसी तरह, बीच बीच में प्रकट होते रहते हैं, ताकि वे खबरों की मुख्य धारा में बने रहें। लेकिन जो लोग यह मानते हैं कि दिग्विजय सिंह हर किसी के फटे में अपनी टांग फंसाने की आदत से मजबूर हैं, जिन लोगों को लगता है कि दिग्गी राजा अपने बड़बोलेपन से देश की राजनीति में खुद को जिंदा रखे हुए हैं और जिनको समझ में आ रहा है कि मध्य प्रदेश के इन पूर्व सीएम साहब को बोलने का शऊर नहीं हैं, उनको अपनी सलाह है कि वे जरा अपना राजनीतिक ज्ञान दुरूस्त कर लें। दिग्गी राजा ज्ञानी है, समझदार भी और राजनीतिक रूप से बहुत परिपक्व भी। कब, क्यूं, कहां, कैसे, क्या, कितना और किसके लिए किस तरह तोल मोल कर बोल रखने हैं, इसकी समझ जितनी दिग्गी राजा को है, उतनी कांग्रेस में तो कम से कम शायद ही किसी और को हो।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश के राज्यपालों और राष्ट्रपति को अपराध साबित होने के बावजूद अपराधी को माफ करने के कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। लेकिन संजय दत्त की सजा माफी के लिए जिन तर्कों को आधार बनाया जा रहा है उन पर रोने के सिवाय और कुछ भी नहीं किया जा सकता। कुख्यात अपराधी दाऊद का साथी होने, उसके अपराधी भाई अनीस इब्राहिम से आर्थिक व्यवहार करने, मुंबई में बम ब्वलास्ट करनेवालों से राइफल लेने और अपने सांसद पिता के घर में हथियारों का जखीरा रखने, वहां से निकले हथियारों के मुंबई में दंगों में शामिल होने के बावजूद संजय दत्त अगर अपराधी नहीं है, तो फिर या तो हमारी पुलिस व्यवस्था बेवकूफों की फौज है या हमारा न्यायतंत्र मूर्खो की जमात। जिस देश में सब्जी काटने के चाकू और खिलौना पिस्तौल को भी बहुत खतरनाक हथियार साबित करके जुर्म बताकर हजारों बेगुनाह लोग जेलों में ढूंस दिया गया हों, वहां संजय दत्त की सजा की माफी मांग अगर अल्प संख्यकों को रिझाने की राजनीति का हथियार बन जाए तो गलत क्या है।
पचपन साल के संजय दत्त मासूम है, बेवकूफ है या ढक्कन, अपने को इससे कोई लेना देना नहीं है। वह जेल जाएं तो इससे अपने को कोई तकलीफ नहीं होनेवाली और न जाएं तो अपनी कमाई में कोई इजाफा नहीं होने वाला। संजय दत्त से अपना ऐसा कोई सीधा जुड़ाव नहीं है। लेकिन राजनीति में कभी भी, किसी से भी कोई भी जुड़ाव कभी भी हो सकता है। सो, दिग्विजय सिंह से संजय दत्त मामले का जुड़ाव कोई यूं ही नहीं हैं। जो लोग राजनीति की धाराओं को नहीं समझते और वे दिग्विजय सिंह का विरोध कर रहे हैं, तो उनको तो माफ कर दिया जाना चाहिए। लेकिन राजनीति के जानकारों को अब तो कमसे कम यह मान ही लेना चाहिए कि दिग्विजय सिंह बेहद संजीदा और समझदार आदमी हैं।
सबसे पहले दिग्गी राजा के बोल सुनिए, उनने कहा कि - ‘संजय दत्त अपराधी नहीं हैं, वह आतंकवादी भी नहीं हैं। संजय दत्त ने युवावस्था में, उस वक्त के हालात में, सोचा कि जिस तरह उनके पिता सुनील दत्त सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और अल्पसंख्यकों का पक्ष ले रहे हैं, उसको देखते हुए शायद उन पर हमला हो सकता है। इसलिए एक बच्चे द्वारा कुछ करने की प्रतिक्रिया में अगर संजय दत्त ने कोई गलती की तो मेरा मानना है कि उसकी सजा वह भुगत चुके हैं।’ हमारे दिग्गी राजा ने यह बयान अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर दिया है, जरा इस सियासत को समझिए। दिग्गी राजा का यह अल्पसंख्यकीय विलाप कांग्रेस की मुसलमानों में फिर अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है। संजय दत्त तो बेचारा इस मुहिम का एक मोहरा हैं, जो अचानक कांग्रेस के हाथ लग गया है। राजनीति किसी का भी उपयोग कर ही लेती है, जरा समझिए।