Monday, August 1, 2022

महत्वाकांक्षा की उड़ान का 'पायलट'

 -निरंजन परिहार

कहने को आलाकमान ने भले ही अपने चहेते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जरिए सब कुछ ठीक ठाक कर लिया है और मुख्यमंत्री ने भी अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल व संगठन को दुरुस्त कर दिया है। लेकिन माना जा रहा है कि राजस्थान में राजनीतिक भूचाल एक बार फिर कभी भी आ सकता है। हालांकि पायलट गुट की कुछ बातें मानकर राजनीति के रण में युद्धविराम के संदेश का श्वेतध्वज लहरा दिया गया है। लेकिन पायलट समर्थकों की प्रवृत्तियों से कहीं से लग नहीं रहा कि नाराजगी से सना तीन साल पुराना विवाद ख़त्म हो गया है। सोशल मीडिया पर पायलट मांगे राजस्थान और पायलट संग राजस्थान जैसे हैशटैग ट्रेंड करवाए जा रहे हैं और अखबारी सर्वे में पायलट को परवान पर चढ़ा बताया जा रहा है। हालांकि राजस्थान की राजनीति को लेकर नेतृत्व निश्चिंत हैं, क्योंकि दिसंबर के अंत में राजस्थान के 4 जिलों में हुए पंचायतीराज चुनावों में 4 में से 3 जिला परिषदों में  जिला प्रमुख कांग्रेस के बने हैं और 30 में से 19 पंचायत समितियों में प्रधान पदपर भी कांग्रेस के उम्मीदवार चुने गए हैं।  उससे पहले हुए पंचायती राज के चुनावों एवं विधानसभा के उपचुनावों में भी गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस का डंका बजा है। 


फिर भी,  सचिन पायलट अपने जातिगत समीकरणों को साधकर राजनीति की रौनक दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। वे कहीं भी जाते हैं, तो काफिले सजाकर निकलते हैं, और उनकी हर यात्रा का जमकर प्रचार कराया भी जाता हैं। सोशल मीडिया में मजाकिया लहजे में ही सही, यह बात बहुत उछली कि पायलट को विवाह समारोहों में आमंत्रित करना भारी पड़ रहा है, क्योंकि उनके कहीं भी जाने पर दो - पांच सौ अतिउत्साही समर्थक तो वैसे ही उनके आगे पीछे पहुंच जाते हैं, जिससे विवाह समारोह के भोजन का भट्टा बैठ जाता है। उत्साही समर्थकों द्वारा पायलट को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी ज्यादा लोकप्रिय साबित कराने के सारे टोटके अपनाए जा रहे हैं। सोनिया गांधी और राहुल व प्रियंका की सभा में स्वयं के नारे लगवाए जा रहे हैं और लगभग हताशा के हाल में खुद को सुपर साबित करने की कोशिशें की जा रही है। हालांकि जुलाई 2020 में मानेसर से लौटते ही पायलट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री दोनों ही पद एक साथ छीन लिए गए थे। 

माना जाता है कि राजनीति में अजेय कोई नहीं होता, इसलिए अशोक गहलोत भी अजेय नहीं हैं। लेकिन सत्ता के अनुभव के लिहाज से गहलोत आज समूची कांग्रेस में और खासकर राजस्थान में आज सर्वाधिक अनुभवी राजनेता के रूप में सभी के सामने हैं।  तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में गहलोत ने अपने कुल कार्यकाल के तेरह वर्ष पूरे कर लिये हैं और इस दौरान उन्होंने अपनी ही पार्टी में बैठे घात प्रतिघात की राजनीति करनेवाले साथियों की हर चुनौती को भी चूर चूर करके उनकी संभावनाएं भी लगभग ध्वस्त सी कर दी हैं। राजकाज की कमान संभालने की कठिन चुनौती और पार्टी पर अकारण तननेवाले तीर झेलने वाले एक नेता के तौर पर भी गहलोत कांग्रेस में काफी मजबूत जाने जाते हैं। इसीलिए, अस्वस्थ होने और न बोलने की हालत के बावजूद सोनिया गांधी उस दिन गहलोत के बुलावे पर उनके प्रति अपना समर्थन व सम्मान प्रदर्शित करने सपरिवार जयपुर आईं। महंगाई के खिलाफ रैली में हिस्सा लिया और कांग्रेसियों को शांति व एकता का संदेश भी दिया ।संभवतया, इसीलिए प्रदेश में कांग्रेस की ताकत को बढ़ाने के लिए गहलोत ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और इस प्रयास में उन्हें सफलता भी मिलने लगी है।

राजस्थान की राजनीति में गहलोत अग्रणी तो शुरू से ही रहे हैं, लेकिन ताजा हालात में सबसे ताकतवर भी वे ही हैं, यह भी उन्होंने अपनी क्षमता से साबित कर दिया है। कांग्रेस की ताकत को साबित करने की कोशिश में बीजेपी के बहाने जनता के बीच सचिन पायलट की बगावत की बातें मुख्यमंत्री याद करते रहते हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने मंत्रिमंडल की बैठक में दो मंत्रियों रमेश मीणा व हेमाराम चौधरी को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री  ने कहा कि इन समेत कई लोग तो पायलट के साथ मानेसर चले गए थे, लेकिन अगर बसपा से आए और निर्दलीय विधायक साथ नहीं देते तो आज इस मंत्रिपरिषद की बैठक नहीं होती। इस पर मंत्री मुरारी मीणा ने सब भूल जाने की बात कहते हुए कहा कि साहब इस मुद्दे को और कब तक लेकर चलेंगे,  अब बार-बार इन बातों का कहने का कोई मतलब नहीं है, आगे बढ़ते हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)