Sunday, September 28, 2008

Media Expert


शैली और शिल्प के तेवर में निरंजन परिहार
साक्षी सिंह / इंडिया-वन

मीडिया में गरिमामय नाम और सरोकार वाली पत्रकारिता के प्रतीक के रूप जिन लोगों को देखा जारा है, निरंजन परिहार उन्हीं में से एक हैं। खबर लेखन की भाषा, शैली और शिल्प को नए तेवर देने वाले निरंजन परिहार की छवि अपने लिखे पर खड़े होकर किसी के आगे न झुकने वाले एक रीयल हीरो की तरह मानी जाती है। रेतीले राजस्थान के छोटे से जिले सिरोही से निकले इस प्रतिभाशाली नौजवान के नाम प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में कई रिकार्ड आज भी उन इलाकों में दर्ज है। जिंदगी को अपने सिद्धांतों पर जीने और उसको जीतने वाले परिहार को राजस्थान के अपने शुरुआती जीवन में ही परिपक्वता हासिल कर लेने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। इस देहाती नौजवान ने जब सपनों के शहर मुंबई में कदम रखा तो यहां हर पग पर आ खड़ी होतीं चुनौतियों को सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत, अपनी हिम्मत के दम पर परास्त किया और आगे बढ़ते रहने के रास्ते को जिया। पहले नवभारत टाइम्स में राजेन्द्र माथुर, फिर इंडियन एक्सप्रेस के जनसत्ता में प्रभाष जोशी , और बीच में कुछ वक्त के लिए एसपी सिंह के साथ काम करने वाले निरंजन परिहार की पहली पहचान उनकी विनम्रता है। प्रभाष जोशी और एसपी सिंह के प्रति बेहद कृतज्ञ निरंजन परिहार ने जनसत्ता के अपने दिनों में जिस तरह की खबरें लिखीं और बाद में सहारा समय पर टीवी की खबरों को जो धार बख्शी, वह आज भी पत्रकारिता के लिए एक मिसाल हैं। बेजान खबरें लिखे जाने की परंपरागत शैली को उलटकर रख देने वाले इस नौजवान ने खबरों में न सिर्फ आत्मा डाली बल्कि उसे पठनीय और ग्रहणीय बनाने के लिए बड़ी मेहनत से काम किया। मुंबई में ‘प्रात:काल’ दैनिक की आज की सफलता भी निरंजन परिहार की दो साल की शुरुआती मेहनत का ही कमाल कही जाती है।

आज के लाइजनिंग, पीआरबाजी, रीढ़विहीनता, बाजारोन्मुख और प्रबंधन प्रेमी पत्रकारीय दौर में निरंजन परिहार ने किसी मीडिया हाउस की चाकरी करने के बजाय मीडिया की मुख्य धारा से अलग रहकर पत्रकारिता और भाषा के सरोकार के लिए अपना मोर्चा खोले रखा । वे इन दिनों सहारा समय के अपने साथी मनोज सिंह के साथ मुंबई को एक नया और ऐसा न्यूज चैनल देने में जुटे है, जिसकी शक्ल आज के कचरा परोसने वाले चैनलों से एकदम अलग होगी। पहले प्रिंट और फिर टीवी, दोनों माध्यमों के जरिए अपने कलम को धार दिए हुए हैं। राजनीति तो उन्हें खैर विरासत में हासिल है, लेकिन व्यापार के साथ टीवी, फिल्म और सामाजिक सरोकारों से खबरों में उनका रचनात्मक योगदान सराहनीय हैं।

मुंबई में आज की पत्रकारिता की एक पूरी पीढ़ी के सवसे लोकप्रिय सहयोगी और वरिष्ठ पत्रकारों के चहेते निरंजन परिहार पत्रकारिता से वक्त चुराकर राजनीति में घुसते रहते है। रामनाथ गोयनका के इंडियन एक्सप्रेस की जो एक पूरी पीढ़ी ही पत्रकारिता और राजनीति में बराबर की हिस्सेदार रही है, उन अरुण शौरी, संजय निरुपम, राजीव शुक्ला जैसे सांसदों और राहुल देव और आलोक तोमर जैसे राजनीतिक सलाहकारों के साथ निरंजन परिहार का नाम भी पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। परिहार राजस्थान के हैं, जहां रेत है और इसके अलावा हैं जिंदगी के रंग। और हर रंग से कोई न कोई सबक मिलता है। उन्हीं में से एक सबक यह भी है कि - खुद पर भरोसा कर सपने देखने वालों के सामने दिक्कतें तो बहुत आती हैं, लेकिन वो उन दिक्कतों से मजबूत होकर न सिर्फ अपना मुकाम हासिल करते हैं बल्कि एक दिन अचानक भेड़चाल से निकल कर पूरी भीड़ का नेतृत्व करता दिखता है। निरंजन परिहार की जिंदगी की आज की असली तस्वीर तो यही है।