Sunday, May 29, 2011

बाल ठाकरे की बात को गंभीरता से मत लेना भाई


-निरंजन परिहार-
एक बाल ठाकरे हैं। शिवसेना के मुखिया। एक सचिन तेंडुलकर है। क्रिकेट के खिलाड़ी। दोनों ही मराठी। और दोनों लोगों के दिलों पर राज करनेवाले। लोगों को लगता है कि इसीलिए, ठाकरे अकसर तेंडुलकर की तारीफ में कसीदे कहते रहे हैं। लेकिन अबकी उन्होंने सचिन पर जोरदार वार किया है। इस बार ठाकरे ने सचिन के बारे में जो कुछ कहा है, उससे जो तस्वीर बनती है, उसमें सचिन सिर्फ और सिर्फ पैसाखोर, लालची और माल कमानेवाले के अलावा कुछ नहीं लगते।
सचिन तेंडुलकर सिर्फ पैसे के लिए खेलते हैं। ठाकरे ने यह हाल ही में एक बातचीत में कहा। हालांकि यह बिल्कुल सच भी है। सचिन को तो क्या किसी भी देश के, किसी भी खिलाड़ी को, किसी भी मैच में खेलने के बदले पैसे नहीं मिले, तो वह खेलेगा, इसकी संभावना कतई नहीं है। यानी कि बिना पैसे कोई नहीं खेलता। यह सभी जानते हैं। आप भी जानते हैं। हम भी। और ठाकरे भी जानते हैं। लेकिन ठाकरे राजनेता हैं। और नेता अकसर सच नहीं बोला करते। फिर यह तो बहुत कड़वा सच है। क्या जरूरत थी ठाकरे को ऐसा बोलने की। वे अगर ऐसा नहीं भी बोलते, तो भी चल सकता था। लेकिन वे बोले। खुलकर बोले। और पूरी ताकत से यहां तक बोले कि सचिन के लिए तो सिर्फ पैसा ही परमेश्वर है। इतना ही नहीं, जब उनसे यह कहा गया कि सचिन जैसे अच्छे खिलाड़ी के बारे में आप ऐसा नहीं कह सकते। तो अपने परिचित अंदाज में व्यंग्य करते हुए ठाकरे बोले, कि सचिन पर इतना भरोसा करने की जरूरत नहीं है। किसी दिन आजमाना हो तो उनसे किसी भले काम के लिए सहयोग मांग कर देख लीजिए। उसके पास इतना सारा पैसा होने के बावजूद वह आपको अपने घर के किसी कोने में पड़ा बैट उठाकर दे देगा। और कहेगा कि जाओ इसको नीलाम कर लो, अच्छा खासा पैसा आ जाएगा। उससे आप अपना काम चला लेना। ऐसा कहने के बाद ठाकरे के तिरछे तेवर के साथ पैदा हुई मतवाली मुस्कुराहट कुछ और भी बहुत कुछ कह रही थी। सचिन ने पिछले दिनों कहीं कहा था कि मुंबई तो पूरे देश की है। बाल ठाकरे उसी से बिदक गए। और यह भी बोले, यह हमारे लिए सहन करने की सीमा के बाहर की बात है। चाहे वह कितना भी बड़ा आदमी क्यों ना हो। मुंबई के लिए जब हमने लड़ाई शुरू की थी, तब सचिन पैदा भी नहीं हुआ था।
जो लोग सचिन को बहुत पसंद करते हैं, वे ठाकरे के ऐसे व्यवहार से लोग बहुत चौंक गए हैं। जिसको अपना बच्चा कहते हुए बाल ठाकरे थकते नहीं थे। वे अब उसी सचिन को लालची और लोभी कहेंगे, लोग सोच भी नहीं सकते थे। पर अब सोच रहे हैं। और जब सोच रहे हैं, तो कई पुरानी बातें भी लोगों को याद आने लगी हैं। हालांकि आजकल लोग ठाकरे की बातों को बहुत गंभीरता से कम ही लेते हैं। क्योंकि लोग मानते हैं कि बाल ठाकरे बूढ़े हो गए हैं। लेकिन ठाकरे की ठोकर की नोक के निशाने समझने वाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि वे जवान थे, तब भी और अब भी, उनके मुद्दे मतलब के मायाजाल के मुताबिक बदलते रहते हैं। और ऐसे लोग हर बार उनके निशाने पर रहे हैं, जिनका बहुत व्यापक प्रभाव है। वे कब किसके बारे में क्या कह दें, कोई नहीं जानता। लेकिन इतना हर कोई जानता है कि वे निहायत निजी मतलब की सुविधा के मुताबिक अपनी माया रचते हैं। और किसी को बख्शते हैं तो बिल्कुल बॉड़ीगार्ड़ की तरह। और उसी बख्से हुए की जब खाल खींचते हैं, तो बहुत ही खतरनाक भी हो जाते हैं। यह उनका इतिहास रहा है। इसी वजह से उनके बारे में कोई भी, तय कुछ नहीं कह सकता।
कई सालों तक लगातार कई तरह की अलग अलग किस्म की गजब गालियां देने के बाद इक दिन अचानक छगन भुजबल को वे सपरिवार अपने घर पर बुलाकर साथ में बैठकर सम्मान के साथ खाना खाते हैं। और अगले ही दिन से फिर भुजबल को बहुत बुरा कह सकते हैं। शरद पवार को खुलेआम कई तरह की बदनाम उपमाएं देने के बाद कभी अतानक वे उनकी तारीफ करते भी देखे जा सकते हैं। प्रतिभा पाटिल के महाराष्ट्रीयन होने के नाम पर राष्ट्रपति चुनाव में अपनी 25 साल की सहयोगी पार्टी भाजपा के उम्मीदवार भैंरोंसिंह शेखावत को हराने के लिए खुलेआम धोखा कर सकते हैं। और बाद में उन्हीं महाराष्ट्रीयन प्रतिभा पाटिल की जोरदार आलोचना भी कर सकते हैं। ऐसे उदाहरणों को लिखने जाएं, तो ठाकरे पर अलग से एक किताब लिखी जा सकती है। लेकिन उनकी यही फितरत है। जिसे दुनिया कई सालों से करीब से देखती रही है। क्या किया जाए...!
दरअसल, सचिन पर वार करने के मामले में ठाकरे की तकलीफ कुछ और है। मुंबई में अगले साल महानगर पालिका के चुनाव होने हैं। फिलहाल उनकी पार्टी के हाथ में मुंबई महानगर पालिका की कमान है। कहीं कांग्रेस जोर मारकर उसे भी हथिया ले गई, तो शिवसेना के हाथ में सिर्फ तंबूरा बचेगा। अगले पांच साल तक तंबूरा बजाते रहने के डर से ठाकरे अपने तेवर तेज कर रहे हैं। अपना मानना है कि सचिन उसी की भेंट चढ़ गए। आप भी यही मानते होंगे ! क्योंकि वे बाल ठाकरे हैं, शिवसेना के मुखिया। और वह सचिन तेंडुलकर है, क्रिकेट खिलाड़ी। दोनों मराठी। दोनों दिलों पर राज करनेवाले। लेकिन अब समझ में आ गया ना कि दोनों अलग अलग है। बहुत अलग अलग। राजनीति में खुद को खबरों में बनाए रखने की जुगत इतना अलगाव पैदा कर ही देती है। करती हैं कि नहीं ?
(लेखक जाने माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)