Saturday, August 21, 2010

दिमाग के दिवालिएपन की दास्तान


निरंजन परिहार
पता नहीं, राज ठाकरे को यह मालूम है कि नहीं, लेकिन अब पूरी दुनिया को पता चल गया है कि उन्हें अपने दिमाग का इलाज कराने की जरूरत है। मुंबई में फैल रहे मलेरिया के लिए राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार ठहराते हुए जो बयान दिया है, उसके बाद तो कम से कम यही लगता है। अब राज ठाकरे से एक यह सवाल भी पूछ लेने का मन करता है कि भैया... जरा यह भी बता दो कि मुंबई की सड़कों पर गड्ढे बहुत बढ़ गए हैं, इनके लिए कौन जिम्मेदार है ? अगर राज ने जवाब दिया, तो निश्चित तौर पर मलेरिया वाले बयान जैसा ही बेवकूफी भरा ही होगा। खैर, राज तो राज है। ईश्वर ने उनको जुबान दी है, वे कुछ भी बोलते रहे हैं, सो बोलें। उनको कुछ भी बोलने - कहने के लिए जनता माफ भी कर देगी। लेकिन पता नहीं उद्धव ठाकरे को कौन सा रोग लग गया है कि वे भी राज की होड़ करते दिखने लगे हैं। मुंबई की राजनीति में राज के मुकाबले उद्धव को गंभीर और इज्जतदार आदमी माना जाता है। लेकिन वे भी अपनी सारी गंभीरता छोड़कर मलेरिया के मैदान में उतर गए हैं। बिल्डरों को धमका रहे हैं। उद्धव का कहना है कि मुंबई में मलेरिया और स्वाइन फ्लू बिल्डरों की वजह से फैल रहा है। अपना मानना है कि दोनों ठाकरे बंधुओं के दिमाग की दाद दी जानी चाहिए।

अरे भाई, मान लिया कि महानगर पालिका का चुनाव सामने है, आप दोनों को अपनी – अपनी राजनीति चमकानी है। दोनों को एक – दूसरे के वोट बैंक में सैंध मारनी है। और दोनों को एक – दूसरे को नीचा दिखाना है। लेकिन उसका अगर यही तरीका है, तो फिर दोनों का हश्र क्या होगा, यह भी समझा जा सकता है। राज और उद्धव, दोनों भले ही मुंबई में फैल रहे मलेरिया को अपनी राजनीति का हिस्सा मान रहे हों, लेकिन असल बात यह है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे और शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मलेरिया राजनीति के चक्कर में अपने बयानों से मुंबई में मसखरे साबित हुए हैं।

सही मायने में देखें तो मुंबई जैसे देश के ही नहीं दुनिया के इस आधुनिक शहर में मलेरिया का फैलना राजनेताओं के लिए एक बहुत ही गंभीर मसला होना चाहिए। लेकिन राज ठाकरे ने अपने बयान के जरिये इस गंभीर विषय को मजाक का मामला बना दिया। राज ने कहा कि मुंबई में मलेरिया उत्तर भारतीयों के कारण फैल रहा है। लेकिन अब उनसे यह कौन पूछे कि मच्छर किसी को भी काटने पहले क्या यह पूछता है कि भैया, तुम मराठी हो या उत्तर भारतीय ? उत्तर भारतीय हो तो काटूंगा और मराठी हो तो छोड़ दूंगा। आप भी यहीं मानते होंगे और अपना भी यही मानना है कि ऐसा होता तो नहीं। लेकिन राज ठाकरे शायद यह मानने लग गए हैं कि अब मुंबई के मच्छर भी उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हैं, सो वे सिर्फ उत्तर भारतीयों को ही चुन चुन कर काटते हैं, ताकि उनमें खूब मलेरिया फैले और राज को मलेरिया के मामले में उत्तर भारतीयों को कोसने का मौका मिले। सचमुच, राज के इस बयान ने पूरे मुद्दे को मजाक बना दिया।
राज से वैसे भी मुंबई और देश को कोई बहुत उम्मीद नहीं है। लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस मामले में जो कुछ भी कहा – किया, उससे दुनिया के दिमाग में उनके नंबर कुछ कम ही हुए हैं। सही बात यह है कि मलेरिया की वजह से मुंबईवासियों की हालत खराब है। .ह भी सही है कि शिवसेना के कब्जेवाली बीएमसी के सरकारी अस्पताल इस संकट से निपटने के लिए पूरे प्रयास नहीं कर पा रहे हैं। यह वास्तव में एक गंभीर मामला है। इस समस्या के बढ़ने की असली वजह बीएमसी ही है। जिसे समस्या का समाधान निकालना चाहिए। लेकिन उद्वव ठाकरे को यह नहीं दिखता। बीएमसी में शिवसेना का शासन है। उनको अपने लोगों का नाकारापन नहीं दिखाई देता। इसलिए मुंबई में बीमारियों के मामले में उद्धव बिल्डरों को दोषी बता रहे हैं। मलेरिया का कारण बिल्डर हो सकते हैं, यह तो कोई बेवकूफ भी नहीं मानेगा। लेकिन उद्धव ठाकरे मानते हैं, इसका क्या किया जाए। दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ को भी उद्धव के इस तर्क में बिल्डरों को शामिल करने का मतलब पूछा जाए तो जवाब यही मिलेगा कि शिवसेना के इस नेता की निगाहें अगले मनपा चुनाव के लिए चंदे की वसूली पर है। मामला साफ है कि बिल्डरों को धमकाओ, तो अभी से लाइन लगनी शुरू होगी। इसके अलावा और क्या कारण हो सकता है ?
राज ठाकरे की राजनीति की धाराओं को जाननेवाले यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि बाल ठाकरे की 60 साल की मेहनत के मुकाबले खुद को मराठियों और महाराष्ट्र का मसीहा साबित करने की होड़ में उतरे राज ठाकरे की कड़वाहट भरी जुबान का जहर आगे और बढ़नेवाला है। इतिहास गवाह है कि बौखलाहट अकसर किसी को भी अधिक आक्रामक बनाती रही है। अपन जानते हैं कि आने वाले दिनों में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य के अचानक बहुत तेजी से सक्रिय होने के बाद राज की सेना के नौजवान रंगरूट फिर से शिवसेना की तरफ आनेवाले हैं। क्योंकि उधर अकेले राज हैं। लेकिन उनके मुकाबले शिवसेना में उद्धव और बाल ठाकरे के अलावा नया सितारा आदित्य भी है। अपनी सेना के नए लड़कों को खिसकता देखकर राज का रूप और विकराल भी हो सकता है। पर, राज कुछ भी करें, लोग उनको माफ भले ही ना करें, पर अनदेखा जरूर कर देंगे। लेकिन उद्धव से मुंबई को अब भी कुछ उम्मीदें हैं। क्योंकि अब भी उनकी छवि एक भले आदमी की है। आपसी होड़ में उतरना वंश के खून का असर हो सकता है, लेकिन उद्धव का भला इसी में है कि मुंबई में मलेरिया के मामले में वे राज ठाकरे से जिस तरह की होड़ में उतरे हैं, उसकी पुनरावृत्ति आगे नहीं होगी। आप भी ऐसा ही मानते ही होंगे...!