Sunday, November 11, 2012

राजनीति कीचड़ नहीं है हुजूर

-निरंजन परिहार-

राजनीति कीचड़ है। हमारे हिंदुस्तान में तो कम से कम यही कहा जाता है। पर, बाकी देशों में ऐसा नहीं है। वहां राजनीति देश चलाने का माध्यम है। समाज को संवारने का साधन है। और अर्थव्यवस्था के आधार का नाम है। है तो हमारे यहां भी ऐसा ही। फिर भी हमारे देश में राजनीति को कीचड़ क्यों कहा जाता है। यह अपनी समझ से परे है। अपन ने तो समझ संभाली तब से ही अपने इधर और उधर, दोनों तरफ के परिवार को राजनीति में ही पाया। बाबूजी मंत्री थे। जो पिताजी हैं, वे तो अपन जब जन्मे, तब भी गोरक्षा आंदोलन के लिए जेल में ही थे। मामा लोग भी कोई कांग्रेस तो कोई बीजेपी की सरकारों में मंत्री - संत्री रहे ही हैं और हैं भी। पर, राजनीति का दर्प और अहंकार अपने को छू भी नहीं पाया। पर, एक दिन समझ में आया कि कीचड़ तो असल में हमारे दिमाग में है। अचानक लगा कि दिमाग अगर ठीक ठाक है, तो कीचड़ को भी जिंदगी के सबसे चमकदार रास्ते में तब्दील किया जा सकता है। लेकिन गंदगी अगर दिमाग में ही है तो, बाहर भी आपको गंदगी के अलावा कुछ भी नहीं दिखेगा। अपनी तो खैर कोई औकात ही नहीं है। पर, सोनिया गांधी से बड़ा राजनीतिक परिवार तो इस देश में और कोई नहीं है।
सोनिया ने एक भरपूर गृहस्थी का जीवन जिया। जब तक घर में रही, सारे लोग उनकी तारीफ करते रहे। कहते रहे कि विदेशी होने के बावजूद एक बहू, पत्नी और मां होने के मामले में सोनिया गांधी ने भारतीय मूल्यों, संस्कारों और आदर्शों पर कभी कोई आंच नहीं आने दी। एक आज्ञाकारी बहू के तौर पर तो देवरानी मेनका गांधी के मुकाबले भारतीय समाज ने सोनिया को ज्यादा मान्यता दी। देश ने उनको एक बेहद आदर्श बहु का सम्मान दिया। लेकिन पति राजीव गांधी की हत्या के बाद बूढ़े कांग्रेसियों ने अनाथ बच्चों की तरह सोनिया के समक्ष विलाप किया। पूरी कांग्रेस ने मिन्नतें की। हाथ – पांव जोड़े। तो, आधे मन और अधूरी इच्छाओं के साथ जैसे ही वे जैसे ही राजनीति में आई, उन पर गो हत्या से लेकर दलाली तक में मददगार होने के आरोप लगने लगे। किसी के पास कोई प्रमाण नहीं, फिर भी उनको मांसाहारी बताकर देश के एक वर्ग से उनको काटने की कोशिशे की जाने लगीं। और सच तो यह है कि सोनिया गांधी को मांसाहारी बताकर अछूत साबित करने की कोशिश हमारे समाज का वह वर्ग कर रहा था, जो उन दिनों की घनघोर मांसाहारी बिपाषाओं, सुष्मिताओं, माधुरियों की जवानी को जीने के सपने दिन में भी देखता रहता था। सोनिया गांधी अगर सिर्फ एक विधवा बनी रहती। गूंगी गुड़िया बनकर चुपचाप घर में ही बैठी रहती। राजीव गांधी ट्रस्ट चलाकर करोड़ों का दान और चंदा लेती। तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। कोई इल्जाम नहीं लगता। लेकिन वे राजनीति में आईं। पुरुषों की कृपा से मिली कुर्सी की परंपरा को तोड़कर ताकतवर बनीं। तो सबको मिर्ची लगने लगी। सोनिया गांधी तो एक उदाहरण हैं। लेकिन राजनीति में ऐसा ही होता है। और यह इसलिए होता है, क्योंकि राजनीति में ताकत है। क्षमता है। ग्लैमर है। और इस सबके अलावा राजनीति देश की सत्ता पर आसीन होने के राजपथ का नाम है। जो लोग इस राजपथ पर चल नहीं पाते, वे जलते हैं। चिढ़ते हैं। कुढ़ते हैं। और राजनीति को कीचड़ कहते हैं। कहनेवाले कहते रहें। पर, यह तो आपको भी मानना ही पड़ेगा कि राजनीति को कीचड़ कहनेवाले लोगों के जीवन और दिमाग में कीचड़ है। है कि नहीं ?