Sunday, November 11, 2012

सियासत की सांसत का स्वामी


-निरंजन परिहार-

सुब्रमण्यम स्वामी एक बार फिर मुख्यधारा में हैं। भारतीय राजनीति में वे रह रहकर प्रकट होते रहे हैं। और जिन वजहों से प्रकट होते हैं, उन्ही वजहों से अचानक अंतर्धान भी हो जाते हैं। भारतीय राजनीति के पटल पर प्रकट हो-होकर अंतर्धान हो जाने के अनेक किस्से उनके खाते में दर्ज हैं। फिलहाल स्वामी ने कांग्रेस की नाक में दम कर रखा है। उनकी बातों में बहुत दम है। और दम तो उनमें भी को कम नहीं है। वैसे, बेदम वे कभी रहे नहीं। भारतीय राजनीति में उनने अच्छे अच्छों का दम निकाला है। और उनको देखते ही कईयों का दम निकल जाता है, यह भी सभी जानते हैं। दम देना और दम निकालना उनकी फितरत का हिस्सा है।
स्वामी जब किसी का दम निकाल रहे होते हैं, तो अकसर कई दूसरे उनके दम पर पहलवान बन रहे होते हैं। कांग्रेस पार्टी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बारे में स्वामी के ताजा विस्फोट से कांग्रेस भले ही बेदम हो रही हो। पर, इस माहौल ने दूसरे दलों के कई नेताओं के लिए ताकत का काम किया है। ऐसा असकर होता है, और दुनिया के सबसे सबल लोकतंत्र के अनेक दुर्बल नेता स्वामी की सांसों में अपनी संजीवनी की तलाश करते हैं। इस बार भी कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है। वैसे तो राजनीति में कौन किसका भरोसा करता है ! पर, सुब्रमण्यम स्वामी के जीवन के इतिहास के पन्ने उलटकर देखें, तो पूरे जनम में जिसने किसी पर भरोसा नहीं किया हो, स्वामी उसका भी भरोसा जीतने का माद्दा रखते हैं। भरोसा जीतने में उनका कोई सानी नहीं है। फिर उस मिले हुए भरोसे के साथ दगा करने में भी उनकी बराबरी का कोई आज तक पैदा नहीं हुआ। और ना ही होगा, यह अपना दावा हैं। दावा इसलिए, क्योंकि स्वामी की जन्म कुंडली अपन जानते हैं। लेकिन समय समय पर सियासत को सांसत में डालने वाले स्वामी के बारे यह सब जानने से पहले, आईए थोड़ा उनकी जिंदगी की जड़ों को जान लें। जन्म से तमिल ब्राह्मण और कर्म से राजनीतिक सुब्रमण्यम स्वामी के जैसा परम पढ़ा लिखा और चरम विद्वान भारतीय राजनीति में दूसरा है, यह अपन नहीं जानते। चेन्नई के पास मयलापुर में 1939 को जन्मे स्वामी हार्वर्ड में पढ़े हैं, और वहीं पढ़ाते भी रहे हैं। पता नहीं कितने विषयों पर पीएचडी करके डॉक्टरेट की उपाधीधारी यह स्वामी कुछ दिन पहले तक, जब भारत में खाली होता था, तो हार्वर्ड में पढ़ाते हुए पाया जाता था। बात अपन भरोसे की कर रहे थे। तो, राजनीति के इस स्वामी पर भरोसा किया भी जा सकता है और नहीं भी। वैसे भी राजनीति में लोग अपनी सुविधा, संभावना और सियासत के समीकरण देखकर ही भरोसा किया करते हैं। भारतीय राजनीति में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो सुब्रमण्यम स्वामी की जिंदगी का हिस्सा रहे। और बहुत सारे ऐसे भी हैं जिन्होंने स्वामी की जिंदगी से उधार ली हुई जमीन पर अपनी राजनीति के महल बनाए। इनमें से बहुत सारे लोग अब स्वर्ग सिधार चुके हैं। लेकिन जो जिंदा हैं, उनको स्वामी के सुलभ सियासी सन्मार्ग का दुर्लभ गवाह कहा जा सकता है। हमारी राजनीति में सुब्रमण्यम स्वामी क्या चीज है। यह स्वामी की सियासत से भी ज्यादा जटिल सवाल है। पर, फिर भी स्वामी को समझने के लिए उनके कुछ किस्सों और कहानियों के हिस्सों को जीना ज्यादा जरूरी हो जाता है।
कभी वे दीनदयाल शोध संस्थान के सबसे समर्पित पदाधिकारी थे। रोजाना संघ का शाखाओं में जाकर नियमित रूप से ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का राग आलापते थे। पर, आज डॉ. स्वामी से आप कोई सीधा सवाल कर लिजिए। सवाल के जवाब में आपको उल्टा सवाल सुनने को मिलेगा – क्या संघ परिवार से आए हो। बात कोई सन 75 के आसपास की है। यह वो जमाना था, जब अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के पर्यायवाची कहलाते थे। लेकिन पता नहीं क्या करके, डॉ. स्वामी ने संघ परिवार के मुखिया नानाजी देशमुख का भरोसा इस कदर जीत लिया कि उनको लगने लगा कि बिजली से भी तेज चमकदार दिमाग और विलक्षण बुद्धि वाला यह आदमी तब के सबसे लोकप्रिय नेता वाजपेयी का पर्याय सकता है। बाद में तो, वाजपेयी की सलाह के विपरीत नानाजी ने जनसंघ के टिकट पर स्वामी को राज्यसभा में भी भेजा। लेकिन बाद में रिश्तों के बदलने की कहानी जानने के लिए यह जानना सबसे जरूरी है कि जनता पार्टी की सरकार में जब स्वामी को जगह नहीं मिली, तो वे नानाजी देशमुख के पक्के दुश्मन बन गए। और उसके बाद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी उन नानाजी देशमुख को मनुष्य के तौर पर स्वीकारने के लिए कभी तैयार नहीं हुए, जिनकी कभी वे रोज सुबह चरण वंदना किया करते थे। जिन मोरारजी देसाई को स्वामी रोज सुबह गालियां देते थे, बाद में उनके कांति देसाई से दोस्ती करके स्वामी मोरारजी के संकटमोचक के रूप में भी उभरे। स्वामी कर्नाटक के सीएम बनना चाहते थे। पर, चंद्रशेखर ने अपने सखा रामकृष्ण हेगड़े को साएम बनवा दिया। इसके बाद के अखबारों में स्वामी ने चंद्रशेखर को द्वापर के कंस और त्रेतायुग के रावण जैसे राक्षस की पदवी से भी नवाजा। लेकिन बाद में पता नहीं कैसे अचानक वे चंद्रशेखर के दोस्त भी बने और उनकी सरकार में दमदार मंत्री भी रहे। पर, फिर रिश्तों ने पलटी खाई और स्वामी ने चंद्रशेखर की पूरी की पूरी जनता पार्टी को ही हड़पकर उसके चुनाव चिन्ह तक को अपने नाम करा डाला। मोरारजी देसाई की सरकार के डांवाडोल होने पर जगजीवनराम को पीएम बनवाने के लिए करामाती स्वामी तब के सबसे तगड़े दावेदार चौधरी चरणसिंह के विरोध में सक्रिय हुए। पर, राष्ट्रपति भवन से बुलावा चरणसिंह को ही आया। तो, प्रधानमंत्री चरणसिंह के बेटे अजितसिंह को साधकर पीएम हाउस को अपना घर बना लिया और राज्यसभा के लिए लोकदल का टिकट भी पा लिया। स्वामी से रिश्तों के बदलते रंगों की गवाह जयललिता भी रही हैं। एक जमाने में स्वामी उनके पक्के दोस्त हुआ करते थे। पर, रिश्तों की इस डोर में पता नहीं कैसै गांठ पड़ गई कि बाद के दिनों में काफी अर्से तक स्वामी चेन्नई में जयललिता के खिलाफ हर हफ्ते प्रेस कांफ्रेस करके उनकी पोल खोलते नजर आते रहे। लेकिन ताजा हालात यह है कि जयललिता से दुश्मनी जारी रखने से उनका मोहभंग हो चुका है और दुश्मनी के रास्तों के बीच से दोस्ती का दरिया बहाने में स्वामी माहिर हैं सो, अब वे फिर जयललिता के पाले में हैं। पर कब तक, यह तो भगवान भी नहीं बता सकता। स्वामी एक जमाने में कांग्रेस में ना होकर भी कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव का भरोसा जीतकर उनकी सरकार में केबीनेट मंत्री का दर्जा लेकर सरकार के अंग थे। उनकी असली ख्याति नरसिंह राव के संकट मोचक और राजीव गांधी के दोस्त की रही है। पर, अब उसी कांग्रेस पर निशाना साधने के साथ राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और बेटे राहुल गांधी को संकट में डालने में उनको बहुत मजा आ रहा है। सुब्रमण्यम स्वामी ऐसे ही है। हमारी राजनीति में स्वामी को भले ही आरोपों का आविष्कार करनेवाले राजनेता के रूप में जाना जाता हो। पर, सत्य को हर तरह के तथ्य के साथ पेश करने के उनके अंदाज भी बहुत अलग हुआ करते हैं। यही वजह है कि राजनेताओं पर भरोसे के इस भयंकर दावानल के बीच अब भी इस देश में सुब्रमण्यम स्वामी पर भरोसा करनेवालों की कमी नहीं है। भरोसा नहीं हो तो, कुछ दिन रुक जाइए। आप और हम सारे जिंदा रहेंगे। सुब्रमण्यम स्वामी भी रहेंगे। और, अपन फिर बताएंगे कि ये देखिए फिर पूरा देश स्वामी पर भरोसा कर रहा है। भले ही कांग्रेस, उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी अपने पर स्वामी द्वारा लगाए गए आरोपों पर कितनी भी सफाई दें। पर, भरोसा तो अब भी लोग राजनीति के भवसागर में कइयों का भव बिगाड़नेवाले स्वामी पर ही कर रहे हैं। अपना मानना है कि हमारी राजनीति में सुब्रमण्यम स्वामी उस अत्यंत दुर्लभ प्रजाति के प्राणी हैं। जिन पर भरोसा किए बिना छुटकारा नहीं है। यह सरकारों की मजबूरी है कि स्वामी की सियासत से कभी सरकार की सांसें फूलने लगती हैं, तो कभी सरकार उनकी सांसों में संजीवनी तलाशती भी नजर आती हैं। उनके ब्लॉग पर गीता में भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को दिया उपदेश लिखा है – ‘या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा। अथवा संग्राम में विजयी होकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा। इसलिए हे अर्जुन, तू युद्ध के लिए निश्चय करके खड़ा हो जा।’ स्वामी इसी से सीख लेकर एक योद्धा की तरह खड़े रहे हैं। पहले भी, आज भी, हमेशा। (लेखक जाने माने राजनीतिक विश्लेषक हैं)