Thursday, December 20, 2012

अब मोदी में ठौर तलाश रहे हैं ठिकाने लगे हुए कांग्रेसी

-निरंजन परिहार-

जैसा कि सबको पता था, आपको हमको, और पूरे हिंदुस्तान को। हुआ वही। गुजरात में मोदी मैदान मार गए। पता तो अशोक गहलोत को भी था। सोनिया गांधी को और राहुल गांधी को भी। लेकिन फिर भी सारे के सारे गुजरात गए। बहुत सारे नेताओं को भी साथ ले गए। पता था कि हारेंगे। बुरी तरह हारेंगे। फिर भी गए। जाना पड़ता है। नहीं जाते, तो लड़ने से पहले ही हार जाते। पर, अब जब नतीजे सामने हैं, तो जो बीत गया, उसकी रामायण बांचकर इतिहास में उतरने का कोई अर्थ नहीं है। ताजा हालात यह है कि मोदी ने सारे अर्थ निरर्थक कर दिए हैं। हिमाचल में कांग्रेस हिल रही थी। लग रहा था कि लुटिया डूब भी सकती है। पर कांग्रेस जीत गई।
मोदी के दिए मातम के मुकाबले हिमाचल को देखकर हंसने और खुश होने का कांग्रेस के पास मौका है। लेकिन अपनी राजनीतिक बेवकूफियों के लिए कुख्यात उन पी चिदंबरम का क्या किया जाए, जो अंग्रेजी में ज्ञान बघारते हुए कह रहे थे कि गुजरात में हमारी सीटें पहले से ज्यादा आ रही हैं, सो हम एक तरह से वहां भी जीत रहे हैं। अजीब बेवकूफी है। देश की सरकार में बैठा इतना बड़ा मंत्री ऐसी दर्दनाक दुर्गति पर भी खुशियां मनाए, तो कांग्रेस की हालत को समझा जा सकता है। चिदंबरम की राजनीतिक बेवकूफियों पर विस्तार से कभी और बात करेंगे। आज बात सिर्फ गुजरात के चुनाव परिणाम और मोदी के जलवे पर बहुत सारे कांग्रेसियों के हाल की। आपको लग रहा होगा, कि गुजरात के इस मामले में राहुल भैया और सोनिया माता तो ठीक, पर अशोक गहलोत के जिक्र का क्या मतलब। पर, मतलब है हुजूर। क्योंकि मोदी को उत्तर गुजरात में जो मुश्किलें आईं, और उनकी सीटें भी उम्मीद से कम आईं। इसके पीछे करिश्मा अशोक गहलोत का है। गहलोत वहां कई दिनों तक जमे रहे। अपने रतन देवासी भी वहां सीएम के साथ थे। रणनीति बनाई, बिसात बिछाई, धुंआधार प्रचार किया और कांग्रेस को जिताया। सीपी जोशी भी गुजरात गए थे, टिकट बांटने। पर, जिन जिन को कांग्रेस का टिकट दिया, सारे के सारे ठिकाने लग गए। मेवाड़ के तो ठिकाने नहीं, और सीपी जोशी गुजरात में चले थे राजनीति करने। पर, ठिकाने लग गए। पर, असल मामला मोदी का है।
सवाल यह है कि मोदी तो तीसरी बार गुजरात फतह कर गए हैं। पर, आगे क्या होगा ? क्या गुजरात से निकलकर दिल्ली आएंगे? क्या देश की राजनीति में छाएंगे? क्या बीजेपी के बाकी नेताओं को भाएंगे? और क्या वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में आगे लाए जाएंगे? पर, असल बात यह है कि मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर लाने की उतावली जितनी बीजेपी को नहीं है, उससे भी बहुत ज्यादा जल्दी कांग्रेसियों को है। कांग्रेस के बहुत सारे नेता चाहते हैं कि मोदी देश की राजनीति करें, ताकि उनकी दूकान चलती रहे। सीपी जोशी की तरह ही कांग्रेस के हमारे बहुत सारे नेता बड़े तो हो गए हैं, पर उनकी दुकान में कोई सामान नहीं है। कोई किसी का विरोध करके तो कोई समर्थन में खड़ा होकर दुकान में सजाने के लिए सामान जुटाने के जुगाड़ में है। भाई लोगों ने सोनिया गांधी के दिमाग में पहले ही भर दिया है कि मोदी के सामने अकेले राहुल भैया को भिड़ाना खतरे से खाली नहीं है। मोदी केंद्र में आएंगे, तो राहुल गांधी के इर्द गिर्द खड़े होने से उनकी दुकान भी चल निकलेगी। पर, व्यापार की सच्चाई यह है हुजूर, कि उधार के सामान पर धंधा करनेवालों की दुकानें जल्दी बंद भी हो जाती है। अपनी दुकान बंद हो जाने से आहत होकर भरी सभा में संयम खोनेवाले किसी बनिए से ज्यादा इस सच को और कौन समझ सकता है ! (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)