Friday, June 10, 2011

एक फिदा का दुनिया से विदा हो जाना



-निरंजन परिहार-

राज बब्बर के घर आप जाएंगे, तो मुंबई के जुहू में गुलमोहर रोड़ स्थित उनके बंगले ‘नेपथ्य’ के ड्रॉइंग रूम की दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग देखने को मिलेगी। बरसों पहले की बात है, ‘नेपथ्य’ के मुहुर्त पर नादिरा बब्बर ने बहुत सारे लोगों को बुलाया था। लोग आए भी। कार्यक्रम पूरा हुआ। घर के सारे लोग सो गए। आधी रात को अचानक दरवाजे की घंटी बजी, और खोला, तो सामने जो आदमी खड़ा था, उसका नाम मकबूल फिदा हुसैन था। हाथ में एक बैग भी था। बोले – ‘दिन भर नहीं आ पाया, इसीलिए अब वक्त मिला तो आ गया’। अंदर आकर बातचीत करने के साथ हुसैन की नजरें कुछ तलाश रही थी। एक दीवार खाली दिखी तो, उस पर पेंटिंग बनानी शुरू कर दी। फिर बोले – नए घर के मौके पर आप लोगों को यह मेरी ओर से गिफ्ट। पता नहीं, यही सच है, या सितारों के बारे में फैलाई जाती रही कई तरह की कथाओं में से एक कहानी। लेकिन ना तो राज बब्बर और ना ही नादिरा बब्बर, दोनों में से किसी ने भी आज तक इस कथा के बारे कुछ भी कहा। लेकिन राज बब्बर के घर अपन अकसर जाते रहते हैं, इसलिए दिल पर हाथ रखकर कह सकते है कि हुसैन का वह तोहफा सालों बाद आज भी नेपथ्य में सम्मान के साथ मौजूद है। संबंधों के सम्मान का यह श्रेष्ठ उदाहरण कहा जा सकता है। रिश्तों की रपटीली राहों के राज को जानकर संबंधों का सम्मान करनेवाले हुसैन जिस पर भी फिदा हुए, उस पर पूरी तरह फिदा हुए। बॉलीवुड में माधुरी की मुस्कान, तबू के तेवर और अनुष्का के अंगों पर तो बहुत बाद में फिदा हुए, नादिरा बब्बर पर फिदा होने की यह कहानी 30 साल से भी ज्यादा पुरानी है।
पर, अपनी यह यह बात 2004 की है। मुंबई में फोर्ट इलाके के फाउंटेन के पास उनकी पंडोल आर्ट आर्ट गैलरी में तय वक्त पर अपन जब पहुंचे, तो पहले से ही वहां बैठे हाथ में ढाई फीट का लंबा ब्रश थामे हुसैन जल्दी से उठकर तेज कदमों से चलकर दरवाजे तक आए, और बोले - ‘तुम ही हो, जो इंटरव्यू की बात कर रहे थे।’ अपन ने हां कही। तो, ऊपर से नीचे तक तीन बार हैरत से देखा, और तीखी भाषा में सवाल दागा – ‘पेंटिंग के बारे में जानते हो।’ अपन सन्न। क्या बोलते। इसी बीच तत्काल दूसरा सवाल – ‘चाय पियोगे।’ सवाल सुनते ही अपने चेहरे का खुशी का रंग देखकर इस जवाब का भी इंतजार नहीं किया और बोले – ‘बैठो’। अपन सामने की कुर्सी पर बैठने लगे। तो बाहर इशारा करके बोले – ‘यहां नहीं, वहां’। अपन सीधे बाहर। और कार में बिठाकर कफ परेड़ की तरफ घर लेकर चल दिए। रास्ते भर देश दुनिया की बहुत सारी गरमा गरम तेवर की बातें करते रहे। गेट तक पहुचते पहुंचते बात पूरी हो गई। फिर भी घर ले गए। फिर अपने से मोबाइल नंबर मांगा, और खुद ने ही मोबाइल में फीड करते हुए बोले – ‘जब जरूरत होगी, बुलाउंगा, तो आओगे ना।’ अपन खुशी से हां बोले। फिर, हरी पत्ती के बहुत ही बेहतरीन टेस्ट वाली चाय पिलाई। और सच यह है कि अपन चाय के बेहद शौकीन है, बहुत अच्छी चाय बनाते भी हैं। लेकिन उससे पहले और उसके बाद वैसा चाय कभी नहीं पी, जो हुसैन साहब के घर पर पी। उसके बाद तो कई बार उनने खुद ने ही बुलाया। आखरी बार 2006 में जब वे भारत से जा रहे थे, तो बोले जा रहा हूं। पता नहीं, फिर लौटूंगा या नहीं। इसीलिए बुला लिया। यह उनके किसी को अपना बना लेने और सामनेवाले को अपने पर फिदा कर देने का अलग अंदाज था। जो भी मिलता और पसंद आ जाता, मकबूल फिदा उसी पर फिदा हो जाते। यही वजह है कि माधुरी दीक्षित से लेकर अपने जैसे अनेक उनकी सूची में शामिल लोगों को अब, जब वे याद आ रहे होंगे, तो सभी भर्राए दिल से मकबूल पर फिदा हो रहे होंगे।
लेकिन इसे एक विकट और विराट किस्म की त्रासदी कहा जा सकता है कि भारत में रहते हुए ही हुसैन ने भारत माता की नंगी पेंटिंग बनाई। घनघोर हिंदुत्व के दमकते दिनों में भी सरस्वती माता को अर्धनग्नावस्था में चित्रित किया और घर घर में पूजी जानेवाली दुर्गा माता को अपने ही वाहन शेर के साथ शर्मसार करनेवाली स्थिति में पेंट किया। उसी भारत देश में हुसैन के हस्ताक्षर लाखों में खरीदनेवाले भी हमेशा मौजूद रहे। लोग उनके चित्रों पर मोहित होते रहे, करोड़ों में खरीदते रहे। और जो लोग नहीं जानते, उनके लिए खबर यह है कि हुसैन भारत के ही नहीं, दुनिया के सबसे महंगे कलाकार थे, जिनकी कूंची से निकली लकीरें रुपयों की तो बात छोड़िए, कई करोड़ डॉलरों में दुनिया भर में बिकीं। बिना जूतों के पैदल चलने के शौक वाली जिंदगी में ब्लू जींस की जेकेट को पसंद करनेवाले हुसैन की पेंटिंग में घोड़े, खूबसूरत लड़कियां और काला रंग पहली चाहत थे। इसी चाहत ने उन्हें नाम भी दिया तो कभी कभीर हदनामी के दरवाजे पर भी खड़ा किया।
महाराष्ट्र के पंढ़रपुर में 1915 में 17 सितंबर को जन्मे हुसैन ने 1952 से जिंदगी के रंगों को कैनवास पर उतारना शुरू किया था। और यह सिलसिला उनकी मौत तक जारी रहा। अपने जीवन के अनेक आयामों में एक एक करके इकट्ठा हो गए बहुत सारे विवादों की वजह से उम्र के आखरी पड़ाव पर उन्होंने अपना देश छोड़कर भले ही कतर की नागरिकता ले ली। पर दिल तो उनका हिंदुस्तान में ही बसा करता था। यही वजह रही कि भारत के जिस आखरी इन्सान ने हुसैन के रंगों में आकार लिया, उसका नाम ममता बनर्जी है। माधुरी दीक्षित, तबू, अनुष्का और ऐसी ही कई ग्लैमरस बालाओं पर फिदा होने वाले हुसैन ममता बनर्जी पर भी मरने लगे। पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतने के बाद ममता को एक नई शक्ति के रूप में उन्होंने कैनवास पर उतारा। हुसैन की यह ममता गजगामिनी शैली की है। जिसमें ममता को छरहरा व आकर्षक दिखाया गया है। सन 2006 तक वे भारत में रहे, और उसके बाद मन कुछ ज्यादा ही भर गया तो वे ब्रिटेन में बस गए। कतर वे वहीं से आए थे। और अब, वहां से भी सदा के लिए चले गए। तो, उर्दू के नामी शायर अकबर इलाहाबादी के शेर ‘हुए इस कदर मअज़्ज़ब, घर का मुंह नहीं देखा, कटी ऊम्र होटलों में, मरे हस्पताल जाकर’ को भी पूरी तरह सार्थक कर गए।
अब, जब मकबूल फिदा इस दुनिया से विदा हो गए तो धर्म के नाम पर रोटियां सेंकनेवालों के लिए उनके खिलाफ मुद्दों का मोल भी मर गया। लेकिन हजारों पेंटिंग पर किए गए उनके करोड़ों की कीमत के हस्ताक्षरों की कीमत कुछ और बढ़ गई है। उनकी पेंटिंग पहले से अब ज्यादा महंगी हो गई। क्योंकि विदा हो गए हुसैन पर फिदा होनेवालों का कुनबा बहत बड़ा है। एक कलाकार की कला का यही असली कमाल है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और जाने माने पत्रकार है)