Sunday, October 28, 2012

लोकतंत्र की लाज पर सुरेंद्र शर्मा का दर्द

-निरंजन परिहार-

सुरेंद्र शर्मा मिले थे। बहुत गंभीर थे। इतने गंभीर कि कोई भरोसा ही नहीं कर सकता। देश के हालात पर, लोकतंत्र की लाज पर, बुद्धिजीवियों की बात पर और राजनेताओं के राज पर, सुरेंद्र शर्मा काफी दुखी थे। बहुत गंभीरता से बहुत सारी बात कर रहे थे। जो शख्स बात बात में हंसाता हो, हजारों की भीड़ को एक साथ अपनी सिर्फ एक छोटी सी बात से गुदगुदाता हो वह शख्स अचानक बहुत गंभीर दिखे, तो आश्चर्य तो होता ही है। अपन भी आश्चर्यचकित थे। आश्चर्य इसलिए भी कुछ ज्यादा ही था, क्योंकि वे तो हंसी के लिए विख्यात हैं। मंच पर अभी अभी तो वे ढेर सारी हंसाने वाली बातें कह रहे थे। अपन अकेले ही नहीं अपने साथी कन्हैयालाल खंडेलवाल और नीरज दवे के साथ दिलीप माहेश्वरी भी सुरेंद्र शर्मा की हास्य के बजाय गंभीरता भरी बातों से दंग थे। सचमुच वे बहुत सही कह रहे थे। हास्य का दूसरा पहलू दर्द ही होता है, यह उस दिन ज्यादा शिद्दत से समझ आया।
सुरेंद्र शर्मा कह रहे थे कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारा भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इतने बड़े देश पर राज करनेवाले नेताओं में से कुछ में खामियां भी हो सकते हैं। कुछ चोर जीतकर आ सकते हैं तो कुछ भ्रष्ट लोग भी चुनकर संसद में पहुंच सकते हैं। लेकिन इस सबका यह मतलब नहीं है कि हमारी संसद खराब है। उन्होंने कहा कि संसद तो हमारे लोकतंत्र की मां है। उस पर लगे तिरंगे की शान निराली है। वे दुखी होकर कह रहे थे कि हमारे लोकतंत्र की शान के प्रतीक तिरंगे को उठानेवाले हाथ भले ही दागदार हो सकते हैं। तिरंगा लगी इमारत में बैठकर देश चलानेवाले लोग चोर हो सकते हैं। और तिरंगे को फहरानेवाले नेता भले ही भ्रष्ट हो सकते हैं। पर, हमारा तिरंगा खराब कैसे हो सकता है। तीन शेरों के प्रतीकवाला अशोक चिन्ह हमारे देश की शान कहा जाता है। हम सारे ही लोग उस पर नाज करते हैं। उसका उपयोग करनेवाले हमारे राजनेता भ्रष्ट हो सकते हैं। उस राजचिन्ह के हकदार कुछ अफसर गलत हो सकते हैं। लेकिन हमारे गौरव के प्रतीक उस अशोक चिन्ह को कैसे खराब कहा जा सकता है। सुरेंद्र शर्मा का दर्द यही है कि एक कोई असीम चक्रवर्ती जैसा नामालूम आदमी संसद को नेशनल टॉइलेट, अशोक चिन्ह को राक्षसी भेड़ियों के अवतार और तिरंगा पहनी भारत माता को नेताओं और अफसरों से करवाती महिला बलात्कार के रूप में पेश करने का अपराध करके जब जेल जाता है, तो देश का पूरा बुद्धिजीवी कहा जाने वाला वर्ग उसके साथ खड़ा हो जाता है। असीम और उसके साथ खड़े बुद्दिजीवियों की बुद्धि पर शर्म करते हुए आश्यर्यचकित सुरेंद्र शर्मा कह रहे थे कि आखिर यह हो क्या रहा है। एक चिंतक कहा जानेवाला पूरा का पूरा समाज समझदारी दिखाने के बजाय गलत आदमी के साथ खड़ा हो जाता है। अपन ने जब उनसे कहा कि ऐसा शायद इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों में हमारे देश पर राज करनेवालों और हमारी व्यवस्था के खिलाफ बहुत गुस्सा है। तो सुरेंद्र शर्मा बोले कि यही तो वह वक्त है, जब देश के बुद्दिजीवी वर्ग को अपनी बुद्दि का सही उपयोग करना चाहिए। लेकिन भेड़चाल है। कोई एक चल गया, तो सारे लोग पीछे हो लिए। यह गलत है।
अपनी विशिष्ट शैली में ‘चार लाइनां’ के जरिए विख्यात सुरेंद्र शर्मा जाने माने कवि हैं। देश और दुनिया में हास्य रस के कवि के रूप में विख्यात हैं। उनके हास्य में जीवन की सच्चाई होती है। और जीवन की सच्चाई सिर्फ यही है कि जीवन बहुत गंभीर होता है। यही वजह है कि सुरेंद्र शर्मा के हास्य में गहरी गंभीरता हुआ करती है। इतनी गहरी कि हर कोई उसमें डूब जाए। अपन भी डूब गए। वे कह रहे थे कि हमारे देश में राज करनेवालों में लाख बुराईयां हो सकता हैं। पर हम अपने राज को खराब नहीं कह सकते। सुरेंद्र शर्मा बता रहे थे कि कैसे हमारे देश के नेता एक एक करके भ्रष्ट साबित होते जा रहे हैं और कैसे हमारे नेताओं की कारगुजारियों की वजह से सामान्यजन अंदर ही अंदर आंदोलित हो रहा है। उनसे हुई बातचीत में लगा कि सुरेंद्र शर्मा का दर्द यह नहीं है कि नेता देश को लूट रहे हैं, हमारे देश की छवि घोटालों के देश की बनती जा रही है। बल्कि उनका दर्द यह है कि इस हालात से आम आदमी का लोकतंत्र के भरोसा उठ रहा है। यह सबसे खराब बात है। हास्य का कवि, गुदगुदानेवाली बातों के बजाय देश के दिल के दर्द की दास्तान का बयान करे, तो आम आदमी के मन में भी दर्द तो पैदा होता ही है। सुरेंद्र शर्मा देश के आम आदमी की इस दर्द भरी हालत से दुखी है। अपने दुख से तो आप और हम सब दुखी हैं। पर, हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा की तरह देश के हालात से कभी कभी तो आप भी दुखी होते ही होंगे। होते हैं ना...?