Monday, October 29, 2012

मोदी चाहे कुछ भी बोले, 'मौन' मोहन कुछ नहीं बोलेगा

-निरंजन परिहार-

नरेंद्र मोदी सोमवार को हिमाचल प्रदेश में थे। गए तो वहां बीजेपी के समर्थन में चुनाव प्रचार के लिए थे। पर, उनके निशाने पर थे मनमोहन सिंह। वैसे भी, यह संसार का नियम है कि जो कुर्सी अपने निशाने पर हो, उस पर बैठनेवाला तो निशाने पर होगा ही। यही वजह है कि मोदी मनमोहन पर पिल पड़े। हिमाचल गए, तो बोले - हमारे प्रधानमंत्री का नाम भले ही मनमोहन सिंह है। मगर असल में वे मौन मोहन सिंह हैं। बोलते ही नहीं। वहां भी नहीं बोलते, जहां बोलना जरूरी हो। मोदी के लिए अवसर था। क्योंकि उनसे एक दिन पहले ही रविवार को अपने सरदारजी वहां थे। दिल्ली में तो मनमोहन ही मौन रहते हैं। बेचारे दोपहर तक मंत्रिंडल का विस्तार करके फुरसत में हिमाचल गए। तो अपनी बेदम आवाज में सिर्फ इतना ही बोले कि बीजेपी की सरकार को बदलो, ताकि हिमाचल का विकास हो। पर अब बारी मोदी की थी। क्योंकि मजबूत मोदी सरदारजी के बाद वहां पहुंचे थे। मोदी ने बेचारे सीधे सादे सरदारजी की खूब खिंचाई की। यह भी कहा कि हिमाचल एक पवित्र स्थान हैं। यहां पापियों के लिए कोई जगह नहीं है। और यह भी कह डाला कि दिल्ली के पापियों के यहां आने मत देना। पवित्रता भंग हो जाएगी। दिल्ली में रहते हुए भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद करने से बचते हैं। पर, हिमाचल में आकर ही मौन मोहन सिंह ने अपना मौन तोड़ा। तो मोदी का उन पर बरसना भी वाजिब ही था। भले ही सरदारजी चुप रहकर अपना काम चला रहे हैं। वैसे, कभी कभी यह भी शक होता है कि मनमोहनसिंह को कुछ सुनाई भी देता है या नहीं। हालांकि अपना मानना है कि सरकारें अकसर किसी की नहीं सुनती। सरकारों पर आरोप लगते रहते हैं कि वे बहरी होती हैं। इसीलिए अपना यह पक्का विश्वास है कि मनमोहनसिंह बोलते तो हैं ही नहीं, सुनते भी नहीं हैं। पिछले दिनों सरकार से कई मामलों में जब टकराव हो रहा था, और संसद ठप थी। तब भी सरकार में बैठे लोग विपक्ष से कह रहे थे कि बहस कीजिए। रास्ता निकलेगा। पर, अपना तो तब भी मानना था और आज भी यही मानना है कि ऐसी सरकार से बहस का क्या मतलब, जिसका मुखिया मौन रहे। पर, अपना यह भी मानना है कि सरदारजी को बोलने की जरूरत क्या है। कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी ने बोलने के लिए तो एक भोंपू अलग से रखा ही है। दिग्गी राजा नामक एक प्राणी सत्ता से लेकर संगठन और राज से लेकर समाज तक हर मामले में कांग्रेस के भोंपू का रूप धारण किए हुए हैं। फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर मौनी बाबा को राजमाता ने बिठा ही इसलिए रखा है कि वह चुप ही रहें। पंजाबी में एक नाद बहुत विख्यात है। आप भी जानते हैं... जो बोले सो निहाल, सत श्रीअकाल। लेकिन अपने सरदारजी ने तो पंजाबी की इस परंपरागत श्रुति को भी उलटकर रख दिया है। वे तो न बोलकर भी निहाल हैं। सो अपना मानना है कि नरेंद्र मोदी भले ही अपने सरदारजी को मौन मोहन सिंह कहे, या कुछ और। मौनी बाबा पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला। वे मौन ही रहेंगे। बोल दे तो कहना...।