Sunday, August 4, 2013

इस दुर्गा की शक्ति को भी हम भूल जाएंगे भाई
-निरंजन परिहार-
इन दिनों वह दुर्गा है। शक्ति भी है और नाग पाल भी। यूपी की युवा आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल की बात है। ईमानदारी से देश की सेवा करने के एवज में दुर्गा को नौकरी से हटा दिया गया है। यूपी के सीएम से लेकर उनके मंत्री और पार्टी के विधायक से लेकर सांसद, सारे लोग सरकार के फैसले को सही बता रहे हैं। लेकिन मामला अब यूपी की सीमा के पार जाकर देश भर में दावानल की तरह फैल गया है। दिल्ली भी अछूती नहीं रही। लेकिन  मुलायम सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ-साफ कह दिया है कि वे आईएएस एसोसिएशन, मीडिया और विरोधियों के दबाव में जरा भी झुकने वाले नहीं हैं। शुरू शुरू में तो लगा था कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक नई जनहितैषी राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत करेंगे और यूपी को विकास के समृद्ध रास्ते पर ले जाएंगे, पर उनके अब तक के कार्यों और सरकार चलाने के तरीकों से इस उम्मीद पर पानी फिरा है। अखिलेश यादव ने कुल मिलाकर लोगों को निराशा ही किया है।

यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने पीएम मनमोहन सिंह को दुर्गा शक्ति के मामले की गंभीरता से अवगत कराया है और यह भी कहा है कि अगर कुछ किया जा सकता है, तो कर लीजिए। श्रीमती गांधी की चिट्ठी ने दुर्गा को भी थोड़ी शक्ति दी है और देश को भी। लेकिन कुछ हो तब न। अट्ठाइस साल की दुर्गा शक्ति नागपाल 2009 के बैच की आईएएस अधिकारी हैं। देश में 20वीं रैंक हासिल करने वाली नागपाल हैं तो छत्तीसगढ़ की रहनेवाली, लेकिन नौकरी के लिए उनको पंजाब कैडर मिला। लेकिन  यूपी के आईएएस अफसर अभिषेक सिंह से शादी हुई तो फिर व यूपी कैडर में आ गईं। गौतमबुद्ध नगर में एसडीएम थीं। जहां उन्हें सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने के आरोप में 27 जुलाई को यूपी सरकार ने निलंबित कर दिया। वैसे, विपक्ष के मुताबिक उन्हें रेत माफ़िया के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की वजह से निलंबित किया गया। दरअसल, दुर्गा ने ग्रेटर नोएड़ा के एक गांव में बन रही मसजिद का काम रुकवाया था और फिर बनानेवाले लोगों से कहा कि वे उस नई बनी दीवार को गिरा दें। क्योंकि वह बिना परमीशन के बन रही थी। मतलब, मामला अवैध निर्माण का था। लेकिन इस बहाने असल मामला मुसलमानों को खुश करने का है। और खनन माफिया के हितों को सहेजने का भी। लेकिन पूरे देश में विरोध हो रहा है। दुर्गा शक्ति ने जो किया उसके लिए उन्हें सरकार को धन्यवाद देना चाहिए था। लेकिन राजनीति में ऐसा अक्सर नहीं होता जिसकी उम्मीद हुआ करती है। अब दुर्गा सस्पेंड हैं और लोग गुत्थमगुत्था।

आम तौर पर तो देखा यही गया है कि जनभावनाओं को देखते हुए बहुत सारी सरकारें अपने फैसले को बदल भी देती है। लेकिन अखिलेश यादव अड़े हुए हैं। मामला वोट बैंक का है और राजनीति भी इस मामले में अपने अजब-गजब खेल खेलने लग गई है। इसी खेल की वजह से अखिलेश यादव और उनकी सरकार दुर्गा के मामले पर एकदम अड़ गई है। उम्मीद की जा रही है कि अखिलेश यादव हो सकता है निलंबन वापस ले लें। क्योंकि आम तौर पर माना तो यही जाता है कि लोकतंत्र में हमारी सरकारों को देश की सामान्य लोक लाज की तो परवाह करनी ही चाहिए। लेकिन असल बात है कि लोक और लाज दोनों की परवाह कोई करता नहीं है। क्योंकि सरकार में रहने, सरकार चलाने और आगे फिर सरकार बनाने के लिए जो बहुत सारी बातें काम करती हैं, उनमें लोक लाज का कोई बहुत बड़ा वजूद नहीं होता। इसलिए भाड़ में जाए लोक और गड्ढे में जाए लाज, नेताओं, उनकी पार्टियों और सरकारों को तो सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक और सत्ता में बने रहने की सबसे बड़ी चिंता होती है। सो कुछ होनेवाला नहीं है।  
बहुत सारे लोग, अनेक सामाजिक संगठन, कई राजनीतिक दल और यूपी का आईएएस एसोसिएशन दुर्गा के निलंबन का विरोध कर रहे हैं। देश भर के लोग जाग गए हैं। लेकिन हमारे हिंदुस्तान की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि यहां कोई भी मुद्दा बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता। आप जब तक ये पंक्तियां पढ़ रहे होंगे, दुर्गा शक्ति नागपाल का मामला ठंडा हो चुका होगा। नहीं पड़ा होगा, तो दो चार दिन में ठंडा हो जाएगा, यह अपना दावा है। दावा इसलिए, क्योंकि पिछले साल अन्ना हजारे ने दिल्ली में जाकर जो आंदोलन किया था, उस समय लगा था कि हमारे देश में एक नया गांधी पैदा हो गया है। हर जगह लोग मैं अन्ना हूं कि टोपी पहनकर दिख रहे थे। लेकिन कुछ वक्त बाद ही उस बेचारे गांधी की हवा निकल गई। लगातार बीस सुपर हिट फिल्में देने के बाद सिर्फ एक फ्लॉप फिल्म देने पर ही बेचारे शाहरुख खान को भी हमारी पब्लिक भी अंधेरे में धकेल देती है, तो फिर बाकियों की तो क्या बिसात। आपको भी लग ही रहा होगा कि अन्ना हजारे और उनके आंदोलन में इस देश के लोगों की अब कोई बहुत रुचि नहीं रही। यकीन मानिए, कुछ दिन बाद आप और हम सब, दुर्गा को, उनकी शक्ति को और नाग की तरह उनके जहरीले मुद्दे को, सबको भूल जाएंगे। अगर आपको यह अपना अनर्गल प्रलाप लगता है, तो जरा बताइए अशोक खेमका याद हैं आपको ? अभी कुछ दिन पहले ही जिन्होंने हरियाणा में सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की जमीनों के जाल को जाहिर किया था, उन खेमका को निलंबित होना पड़ा था। अब वे कहां हैं, किसी को पता भी है ? भूलना हमारी आदत में नहीं है। लेकिन हम सब  सामान्य लोग हैं और हमारी जिंदगी की जरूरतें ऐसी हैं कि उन  जरूरतों को किसी हजारे का अन्न, या किसी दुर्गा की शक्ति नहीं, हमें खुद को ही पूरा करना पड़ता है। हम सबको सिर्फ अपनी पड़ी है। इसीलिए कुछ ही दिन में आप और हम सब इस दुर्गा को भी न भूल जाएं तो बताना। 

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)