Thursday, August 15, 2013

दलों के दलदल में आरटीआई भी नपुंसक
-निरंजन परिहार-
आरटीआई ने भले ही बहुत बवाल मचा रखा है। लेकिन अंततः सरकार इसे नपंसक बना देगी। सारी तैयारियां हो गई हैं। वैसे, सरकार में बैठे लोगों ने जब इस कानून को लागू किया था, तब सोचा नहीं था कि आरटीआई एक दिन राज करनेवाली पार्टियों के गले की घंटे बन जाएगा। लेकिन आरटीआई एक्ट इन दिनों खबरों में है। खबर में इसलिए क्योंकि सरकार, उसके संस्थानों और सरकारी टुकड़ों पर पलनेवाली संस्थाओं के कामकाज की सूचना पाने का जो अधिकार हमारा हथियार बन गया है, वह राजनीतिक दलों के लिए आफत का सबब बन गया है। वे तैयार ही नहीं है कि आरटीआई के जरिए उनके दफ्तरों की भी जानकारी कोई ले सके। मामला कमाई का है। राजनीतिक दलों की ससबसे बड़ी तकलीफ यह है कि इससे उनको मिलनेवाला चंदा बंद हो जाएगा। चंदे के धंधे में बहुत बड़ा गोलमाल होता है, उसकी पोल खुल जाएगी। इसीलिए न तो कांग्रेस, न दूसरी पार्टियां और न ही आदर्शों की ठेकेदार बनी घूमनेवाली बीजेपी इसके लिए तैयार है। सबके सब अब ही सुर में राग आलाप रहे हैं।

हमारे सारे के सारे राजनीतिक दल कुछ दिन पहले बीसीसीआई यानी बोर्ड ऑफ कंट्रोल फोट क्रिकेट इन इंडिया को आरटीआई के दायरे में लोने की वकालात कर रहे थे, वे खुद अब उससे बाहर रहने की सारी कोशिशें कर रहे हैं। सरकार ने अपने स्तर पर इसके लिए सारी तैयारी कर ली है, साथ ही कानून में संशोधन की भी तैयारी करीब करीब हो ही गई है। कोई एक काम जल्दी होगा। देश की राजनीति में भ्रष्टाचार के बहुत बढ़ने की रोज आ रही खबरों के बाद लोगों की निगाहें प्रभावशाली पार्टियों की ओर अकसर चली ही जाती हैं। आखिर सवाल यह है कि इनके पास इतना सारा पैसा आता कहां से हैं। इस स्थिति में यदि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में राजनीतिक पार्टियां आती हैं तो थोड़ी शुचिता की संभावना बनेगी। औद्योगिक घरानों से मिलनेवाले चंदे, उस पर आरटीआई के फंदे और सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में आए फैसले से बचने के लिए सरकार और सभी पार्टियां एकमत हो गई हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आरटीआई कानून जिसे सरकार और हमारे राजनेता जनता के लिए वरदान बताते रहे हैं, वह राजनीतिक दलों के लिए तकलीफ का कारण कैसे हो सकता है?

अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसके अमल में आने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा, पर इतना जरूर है कि भ्रष्ट राजनेताओं और उनकी पार्टियों में डर जरूर पैदा हो गया है। यही वजह है कि राजनीतिक दलों के पेट में मरोड़ पड़ने लगे हैं। देश की बड़ी पार्टियों, कांग्रेस और बीजेपी समेत कई दलों ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस फैसले का खुलकर विरोध शुरू कर दिया है, जिसमें सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में आने की बात कही गई है। राजनीतिक दलों को अब अपने चंदे और खर्च की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी, क्योंकि सूचना आयोग के मुताबिक राजनीतिक दल सरकार से वित्तीय मदद प्राप्त करते हैं, इसलिए वे जनता के प्रति जवाबदेह हैं।  

इस विवाद के बाद अब केंद्र सरकार इस फैसले के विरोध में अध्यादेश लाने की तैयारी में हैं। सरकार की योजना प्रस्तावित अध्यादेश के जरिए पार्टियों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने की है। इस अध्यादेश से जुड़ा एक प्रस्ताव हाल ही में कानून मंत्रालय ने कार्मिक मामलों के मंत्रालय को भेजा है। सरकार सार्वजनिक संस्थाओं की परिभाषा में बदलाव कर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे से बाहर करने की तैयारी कर चुकी है। सूत्रों का कहना है कि सरकार जल्द ही यह अध्यादेश ला सकती है। अध्यादेश के जरिए सूचना आयोग के तीन जून के आदेश को पलट दिया जाएगा। राजनीतिक पार्टियों का तर्क हैं कि वे चुनाव आयोग तथा आयकर विभाग के सामने अपनी वित्तीय पारदर्शिता साबित करते ही हैं।  बात भी सही हैं कि वे यह सब करते तो हैं, तो फिर उन्हें अरनी यही पारदर्शिता देश के आम नागरिक या जनता को बताने से क्यों डरना चाहिए। अपना मानना है कि  राजनीतिक पार्टियों का सबसे बड़ा डर यह है कि उनको मिलननेवाले धन के स्रोत की असलियत हमारे देश की जनता अच्छी तरह से जानती है। राजेश खन्ना के फिल्म रोटी का एक बहुत ही सुपर हिट गीत था -  ये पब्लिक है, ये सब जानती है, पब्लिक है। लेकिन अब सब कुछ जाननेवाली इस पब्लिक का सामना करना हमारे राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। आरटीआई हथियार बन गया है, यही उनके लिए सबसे बड़ी तकलीफ साबित हो रहा है। किसी को नहीं सुहा रहा है।
पुराने किस्से कहानियों में सुनते थे कि स्वर्ग दिखाने के लिए किसी को आंखें उपलब्ध कराना और किसी को स्वर्ग भेजने के लिए सीढ़ी उपलब्ध कराने में बहुत बड़ा पुण्य मिलता है। लेकिन अपनी उपलब्ध कराई उन्हीं आंखों से स्वर्ग देखने के लिए उस सीढ़ी पर चढ़ने का पुण्य अवसर जब खुद हमें उपलब्ध होता है, तो वह किसी आफत से कम नहीं होता। हमारी राजनीतिक पार्टियों की हालत भी बिल्कुल वैसी ही है। इसीलिए सरकार इस मसले पर आगे बढ़ने से पहले सभी पार्टियों को अपने साथ लेने और सहमति बनाने की तैयारी में है। वैसे इसके लिए कोई बहुत कोशिश करनी नहीं पड़ी। सब के सब पहले से ही मानसिक रूप से तैयार थे।  तैयार इसलिए थे, क्योंकि हमाम में सब नंगे हैं। सारी पार्टियां एक जैसी हैं। सारे के सारे देश के बड़े बड़े औद्योगित घरानों से चंदे लेते हैं। एक नहीं हुए तो और कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि सबकी पोल खुलेगी। किसने किसको कितना दिया, और किसने किससे कितना लिया। सब सामने आ जाएगा। यही वजह है कि बीजेपी भी तैयार है। कांग्रेस ने बीजेपी और एसपी की सलाह के बाद ही इस मुद्दे पर ऑर्डिनेंस के बजाए बिल में संशोधन का रास्ता भी चुन लिया है। सरकार ने प्रस्तावित संशोधन को तैयार कर कानून मंत्रालय की भी सहमति ले ली है। मतलब, सारे रास्ते तैयार हैं, इसलिए आरटीआई से राजनीतिक दल बाहर ही रहेंगे। अपन तो पहले से ही कहते रहे हैं, कि सरकारें बहुत ताकतवर हुआ करती हैं। सिर्फ एक कागज के टुकड़े पर दो लकीरें लिखकर बहुत धारदार हथियार को भी सरकार एक झटके में भौथरा कर सकती है। आरटीआई से अब आप और हम सबकी पोल खोल सकेंगे। लेकिन राजनीतिक दलों को हाथ नहीं लगा पाएंगे। मतलब, सरकार ने हमारे राजनीतिक दलों के सामने आरटीआई को भी नपुंसक बना दिया। जय हो...।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)