Wednesday, August 7, 2013

बहुत सख्त गुरू हैं कांग्रेस के कामत
-निरंजन परिहार-
गुरुदास कामत अब अपने सबसे असली अंदाज में हैं। इन दिनों वे गुटबाजों पर गुर्रा रहे हैं, नेताओं के नखरों पर नाराजगी दिखा रहे हैं और मंत्रियों की मस्ती उतार रहे हैं। राजनीति के खिलाड़ी तो वे हैं ही, पर अपने नाम को सार्थक करते हुए कामत कांग्रेस के दास हैं, पर राजस्थान में राजनीति के गुरू साबित हो रहे हैं। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व मानता है कि गुरूदास कामत राजनीतिक रूप से समझदार हैं, मजबूत भी है और सख्त भी। होंगे भी क्यों नहीं। श्रीमती इंदिरा गांधी के जमाने में इमरजेंसी के दौरान ही जिसने राजनीति का ककहरा सीख लिया हो, वह सख्त और मजबूत नहीं तो और क्या हो सकता है। कामत आजकल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यानी एआईसीसी के महासचिव हैं और राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी भी। वैसे तो कांग्रेस को शंकरजी की बारात कहा जाता है, लेकिन राजस्थान कांग्रेस में इन दिनों बिखराव कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा है। सोनिया गांधी का कामत को विश्वास हासिल है और राहुल गांधी उनकी ताकत को जानते हैं। सही मायने में कहा जाए तो इसीलिए कामत को राजनीतिक रूप से अस्वस्थ कांग्रेस का इलाज करने के लिए राजस्थान भेजा गया है।  
Gurudas Kamat, General Secretary AICC, feliciteted by
Praveen Shah and Niranjan Parihar
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का एक बहुत बड़ा वर्ग मान रहा है कि अपनी अतृप्त राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सीपी जोशी ने राजस्थान के कुछेक इलाकों में जिला और तहसील स्तर पर भी भले ही बहुत कबाड़ा करके रखा है। लेकिन सीएम अशोक गहलोत की कोशिशों से राजस्थान में कांग्रेस के दिन एक बार फिर से चमक सकते हैं। गुरूदास कामत भी यह मानते भी हैं और जानते भी हैं। इसीलिए वे इन दिनों बहुत सख्त हैं। कामत के सख्त स्वरूप के किस्से और कहानियां राजस्थान में हर किसी की जुबान पर हैं। लेकिन यह सबसे बड़ी सच्चाई है कि राजस्थान कांग्रेस में अंतरकलह चरम पर पहुंच गई है। जिसे सम्हालना और कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाना कामत के लिए भी सबसे बड़ा चैलेंज है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आला नेताओं के बीच बढ़े मतभेदों से परेशानी बढ़ रही है। कांग्रेस आलाकमान भी परेशान हैं और इसीलिए 10 जनपथ के निर्देशों पर एआईसीसी महासचिव कामत ने बहुत सख्त रवैया अपना लिया है। पीसीसी की बैठकों में नकचढ़े मंत्रियों और आजाद खयाल नेताओं को, सभी के सामने कामत ने जो खरी खरी सुनाई, उसके बाद कईयों को पसीने छूट रहे हैं। कामत के सामने जब लोग दूसरे की शिकायत करते लगते हैं, तो अगले की आंख में आंख डालकर जब वे यह कहते है कि आप अपनी बात कीजिए, तो सामनेवाला गैं-गैं-फैं-फैं करने लगता है। केबीनेट मंत्री भरतसिंह को पीसीसी की बैठक में उन्होंने सार्वजनिक रूप से जो घुड़की दी, वह बाकी सबके लिए भी एक साफ संदेश था।
प्रभारी महासचिव के नाते राजस्थान कांग्रेस के अंतरकलह और आपसी खींचतान को निपटाने के लिए कामत ने जो प्रयास शुरू किए हैं, उनमें वे कुछ हद तक सफल भी हो रहे है। कामत जानते हैं कि वे तलवार की धार पर चल रहे हैं। इसीलिए उनकी सबसे पहली कोशिश है कि उनके हर काम को निर्विवाद और निर्विकल्प तरीके से देखा जाए। वे इसके या उसके समर्थक के रूप में सामने नहीं आना चाहते। सीपी जोशी गुट के लोगों ने कामत से पहले वाले राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी मुकुल वासनिक को अशोक गहलोत समर्थक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कामत की कोशिश हैं कि उनके बारे में ऐसी कोई धारणा न बने। कामत को यह भी पता है कि राजस्थान कांग्रेस पूरी तरह से दो खेमों में बंट गई। वे यह भी जानते हैं कि सीएम गहलोत के मुकाबले सीएम बनने का सपना पाले घूमने वाले सीपी जोशी का खेमा बहुत ही छोटा सा है, और जो सीपी जोशी के साथ है, उनमें से बहुतों की कोई बड़ी राजनीतिक हैसियत नहीं है। फिर भी चुनाव जब सर पर हों, तो छोटी सी आफत भी बहुत तकलीफदेह होती है। कामत इसीलिए कुछ सख्त हैं। लेकिन समझदारी के साथ काम कर रहे हैं।
राजनीति में कोई भले ही लाख तुर्रमखां हो, लेकिन गुरूदास कामत को गच्चा देना उसके लिए आसान नहीं है। वजह यही है कि कामत ने कांग्रेस में बहुत काम किया है। 1976 से 1980 तक एनएसयूआई के अध्यक्ष थे। 1984 में पहली बार सांसद बने और उसके बाद 1987 में युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। कुल मिलाकर इस बार वे पांचवी बार संसद में हैं। कामत केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। वैसे तो, मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनना कोई बहुत तीर मारने जैसा काम नहीं था, लेकिन लगातार 22 साल से मुंबई कांग्रेस पर कब्जा किए बैठे धुरंधर नेता मुरली देवड़ा का तख्ता पलट करके गुरूदास कामत का मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनना सचमुच सबसे बड़ा पराक्रम था। उससे भी बड़ा पराक्रम कामत ने तब दिखाया, जब मुरली देवड़ा के बेटे और उनसे बहुत जूनियर मिलिंद देवड़ा को केंद्र में उनके विभाग में बराबरी पर लाकर बैठा दिया। इस पर सार्वजनिक नाराजगी जाहिर करते हुए पार्टी निर्देशों के बावजूद कामत ने मंत्री पद से ही इस्तीफा दे डाला। मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति में कामत को बहुत दमदार नेता के रूप में जाना जाता है। सीधी, सपाट और साफ बात करने के मामले में वे कुख्यात होने की हद तक विख्यात हैं और समझौते करना उनकी आदत में नहीं है।
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान का सरल और सहज होना उनका अच्छापन है, लेकिन राजनीति में यह कमजोरी माना जाता है। फिर गहलोत की बराबरी में खड़े होने की सीपी जोशी की इच्छाओं की वजह से भी कुनबे में बिखराव को बढ़ा दिया है। डॉ. चंद्रभान इस गुटबाजी की वजह से ही कोई बहुत खास काम नहीं कर पाए हैं। लेकिन कामत जानते हैं कि इस सबसे कैसे निपटा जाता है। मुंबई की राजनीति में चरम की गुटबाजी बरसों तक वे देखते और झेलते रहे हैं। सो, बिना समझौते किए समझदारी के साथ गुटबाजी से निकलकर फिर से सत्ता में कैसे आया जाता है और उसके बाद हर हाल में खुद को कैसे महत्वपूर्ण बनाए रखा जाता है, कामत को यह बहुत अच्छी तरह से आता है। इसलिए राजस्थान कांग्रेस की गुटबाजी से निपटने और गुटबाजों को निपटाने के लिए कामत को कोई बहुत दिक्कत नहीं आएगी। भरोसा नहीं हो तो, देखते रहिए, कुछ ही दिन की तो बात है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)