Friday, September 13, 2013

आत्मा के उत्सर्ग का महापर्व है क्षमापना

-राष्ट्रसंत आचार्य श्री चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज-
मानव जीवन सबसे अनमोल है। इसे व्यर्थ में जाने देना सबसे बड़ी भूल है। इसलिए हर पल हमें जीवन को सार्थक बनाने के प्रयास में लगे रहना चाहिए। यह प्रयास अगर जीवन के शुद्धिकरण से हो, तो जीवन की सार्थकता शीग्र फलित होती है। लेकिन यह सब तभी होगा, जब हमारे जीवन में शुद्धता, शुचिता और शुभ्र आचरण का स्थान सर्वोपरि होगा। क्योंकि ये ही हमारे जीवन धर्म के सबसे आवश्यक अंग हैं। इनके बिना जीवन निरर्थक है। जीवन में अनेक अवसर ऐसे आते हैं, जो हमें अकसर भटकाव की तरफ बहा ले जाते हैं। ऐसे अवसरों पर सिर्फ सांसारिक लोग ही नहीं साधु संत भी शुद्धता, शुचिता और शुभ्र आचरण की तलाश में देखे जा सकते हैं। क्योंकि इनके बिना जीवन को संयमित रखना, मन को नियंत्रित रखना और व्यवहार में सदाचार को स्थान देना आसान नहीं होता। लेकिन जीवन तभी शुद्ध होगा, जब हमारा मन शुद्ध होगा। हमारी भावना शुद्ध होगी तभी हमारी आत्मा शुद्ध होगी। आत्मा की शुद्दि का पर्व है  - पर्यूषण महापर्व।
Media Expert and Political analyst Niranjan Parihar and Praveen Shah 
presenting their Book to President Smt. Pratibha Patil at Raj Bhawan,  
Mumbai. Book was on RashtraSant ShriChandranan Sagar  
यह महापर्व है मन, भावना और आत्मा के उत्सर्ग का। जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, हमारा जीवन कभी शुद्धता को प्राप्त नहीं हो सकता। हमारे धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि क्षमा मांगना बहुत बड़ा काम है। लेकिन उससे भी बड़ा काम है क्षमा करना। हालांकि क्षमा मांगने और क्षमा करने दोनों ही के लिए मन बहुत बड़ा होना चाहिए। क्योंकि मन अगर बड़ा है, तभी हम दूसरों की भूलों को भूल सकते हैं। मानवीय जीवन का यह सबसे महान कार्य माना गया है। दूसरों की भूलों को भूल जाना जीवन की सबसे बड़ी सार्थक है, इसी में  पर्यूषण पर्व की सार्थकता है। पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर आनेवाला क्षमापना दिवस इस महापर्व की आत्मा कहा जा सकता है।
यह मैत्री पर्व मानव धर्म की दुर्लभ विशेषताओं में से एक है। क्योंकि यह पर्व हमारी ग्रंथियों को खोलने की सीख देता है।  क्षमा मांगने वाला अपनी भूलों को स्वीकृति देता है और भविष्य में पुनः न दुहराने का संकल्प लेता है। जबकि क्षमा करने वाला बिना किसी पूर्वाग्रह या निमित्तों को सह लेता है। यह सहना भी एक तरह का तप कहा जाता है। मेरा मानना है कि क्षमा मानव जीवन का एक ऐसा ऐसा विलक्षण आधार है जो किसी को मिटाता नहीं, बल्कि स्वयं मिटकर हमारे संबंधों को सुधरने का अवसर प्रदान करता है। जो स्वयं अपना अस्तित्व समाप्त करके संबंधों को संवारे, उससे बड़ा अवसर और कोई नहीं होता। इसीलिए क्षमापना को हमारे जीवन का सबसे बड़ा पर्व यानी महापर्व माना गया है। यह दूसरों की भूल को भूलने और अपनी भूल को सुधारने का पर्व है। पर्यूषण के दौरान एक दूसरे के निकच।
महापर्व इसलिए, क्योंकि क्षमा के महत्व को हमारे जीवन के संदर्भ में परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि क्षमा घने अंधेरों के बीच जुगनू की तरह चमकता एक प्रेरक जीवन मूल्य हैं। चमक उसी को प्राप्त होती जो महान होता है। लेकिन क्षमा के अभाव में मनुष्य दानव बन जाता है। हम न किसी से क्षमा मांगे, न किसी को क्षमा करें, तो क्या होगा। बैर भाव बढ़ता ही जाएगा। भीतर बी भीतर हम हमेशा आक्रोश में ही रहेंगे। तो फिर दम मनुष्य होकर भी किसी दानव से कम नहीं होंगे, क्योंकि दानव यानी राक्षसों के भीतर आक्रोष ही तो भरा रहता है। हमें अपने भीतर की दानवता का शमन करने के लिए पूरे मन और संपूर्ण समर्पण भाव से अपनी हर भूल की क्षमा मांगने और दूसरों को क्षमा करने का संकल्प करना चाहिए। क्योंकि क्षमा ही हमारे जीवन धर्म की प्रतिष्ठा का प्राण है।
धर्म की प्रतिष्ठा का यह प्राण अवस्थित है पर्यूषण महापर्व की अवधारणा में। पर्यूषण महापर्व आत्मा को शुद्ध करने का पर्व है। दरअसल, मन जब शुद्ध होता है तभी वह प्रसन्न होता है। हम जब किसी से क्षमा मांगते हैं, मिच्छामि दुक्कड़म कहते हुए विनम्रता से हाथ जोड़कर सिर झुकाते हैं, तो सामनेवाले का मन तो प्रसन्न होता ही है, हमारा भी मन खिल उठता है। मन जब खिलता है, वही पल है जब हम स्व. के सबसे ज्यादा निकट होते हैं। पर्यूषण की व्याख्या करते हुए कहा जा सकता है कि पर्यूषण का मतलब स्वयं के निकट होना है। स्वयं के निकट यानि अपने असली केंद्र की ओर लौटना। पर्यूषण दो शब्दों का मेल है। परि एवं उषण। परि का मतलब है चारों ओर सेतथा उषण का अर्थ है दाह। जिस पर्व में चारों तरफ से कर्मों का दाह यानी विनाश होता है, वह पर्यूषण है। जब हमारे हर तरह के कर्मों का शमन होता है, तभी हम स्वयं के सर्वाधिक निकट जा सकते हैं। यह आत्मा में अवस्थित होने का पर्व है।
पर्यूषण महापर्व के दौरान हमारा सारा ध्यान जीवन के सुखों के संयम पर होता है। कहा जाता है कि यह संयम जिसके जीवन में है और जो धार्मिक आचरण में रहता है, उनका देवी-देवता भी अभिनंदन करते हैं। पर्यूषण महापर्व के दौरान धार्मिक कार्यों एवं धार्मिक आचरण का ज्यादा महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यह मानव जीवन के उत्सर्ग का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। जिस प्रकार वर्षा के मौसम में बरसात का पानी जमीन में प्रवेश कर भूमि को उपजाऊ व ऊर्जावान बनाता है। ठीक उसी तरह पर्यूषण महापर्व के दौरान किया गया धर्माचरण मनुष्य को पवित्रता एवं शांति का परम सुख प्रदान करता है।
इसी परम सुख प्रदान करनेवाले महापर्व के समापन का पर्व है क्षमापना। दरअसल, क्षमा में बहुत बड़ी ताकत होती है। वह सब बराबर कर देती है। हम जब क्षमा मांगते हैं, तो हमारे मन के भाव बदलने के साथ ही सामने वाले के भाव भी बदल जाते हैं। वे बदवे हुए बाव ही क्षमा मांगनेवाले को क्षमा प्रप्त करने की पात्रता से भर देते हैं। इसीलिए सामनेवाले को भी क्षमादान के लिए प्रेरित होना पड़ता है। यही प्रेरणा क्षमा मांगने वाले को तपस्वी बनाती है और क्षमा प्रदान करनेवाले को दानवीर। यही वजह है कि हमारे ग्रेंथों में बी कहा गय़ा है कि क्षमा प्रदान करने से दान बड़ा कोई दान है ही नहीं। क्योंकि वह दो मनों के बोझ को हल्का करता है। और मन जब हल्का होता है तो जीवन में भी सुकून के फूल खिलने लगते हैं। पर्यूषण महापर्व और क्षमापना के इस पावन अवसर पर, आप सबके जीवन की बगिया में भी सुख, शांति और समृद्धि के फूलों की बहार हमेशा खिली रहे, यही शुभाशीष। मिच्छामि दुक्कड़म। 
(मीडिया विशेषज्ञ निरंजन परिहार से हुई बातचीत के अंश)