Monday, November 4, 2013

टीवी के परदे पर बाल कलाकार


छोटी उमर में बड़ी कमाई
-निरंजन परिहार-

रात में अक्सर देर तक जागना, और डायलॉग याद करते रहना पिछले कुछ महीनों से फैजल की आदत में आ गया है। सुबह जल्दी उठकर तेज भागते घोड़े की लगाम थामकर उस पर कूद कर चढ़ जाना और फिर भी उसके चेहरे पर न कोई थकान और न कोई परेशानी। यह सब वह बहुत आसानी से कर लेता है। क्योंकि वह धरती का वीर पुत्र महाराणा प्रताप है। सुबह छह बजे नींद से उठकर घर से कॉलेज, दोपहर में वहां से सीधे गोकुलधाम, पूरे दिन शूटिंग और फिर शाम को ट्यूशन के बाद घर पर आकर बहुत सारा होमवर्क, उसके साथ अगली सुबह की शूटिंग के लिए डायलॉग की तैयारी भी। भव्य गांधी भी यह सब बहुत भव्यता से इसलिए कर लेता है, क्योंकि वह तारक मेहता का उल्टा चश्मा का टपू है। हर्षिता ओझा सिर्फ छह साल की है, लेकिन उसे भी रोज सुबह उठकर वह तो सब कुछ करना ही होता है, जो उसकी ऊम्र से बहुत बड़े किसी कलाकार को करना होता है, लेकिन हर्षिता को तो उसके अलावा स्कूल भी जाना होता है। क्योंकि हर्षिता ओझा वीरा है। सीरियल हो या विज्ञापन, या कोई और शूट, फिर परदा भी भले छोटा हो, पर ये छोटे कलाकार बड़ी मेहनत कर रहे हैं। बड़ा नाम कर रहे हैं। बड़ा काम कर रहे हैं और कमाई भी बड़ी कर रहे हैं। छोटी ऊमर में बड़ी कमाई का यह जलवा पिछले कुछ सालों में अचानक कुछ ज्यादा ही जोर मारता दिखने लगा है।
Niranjan Parihar at Bhopal Airport on Diwali - 2013
बच्चे हमारी जिंदगी का हिस्सा होते है। या फिर यह भी कहा जा सकता है कि बच्चे हमारी जिंदगी है। इसे आसानी से समझना हो तो जरा यूं समझिये, कि हम भी किसी के बच्चे हैं। इसलिए हमारे बिना हमारे परिजनों को उनकी जिंदगी कैसी लगेगी, यह जरा उन्हीं से पूछकर देख लीजिए। मतलब साफ है कि बच्चे जब जिंदगी के हर पहलू के सबसे अहम रोल में हैं तो फिर हमारे टीवी के सीरियल और हमारे विज्ञापन उनके बिना कैसे पूरे हो सकते हैं। टीवी पर बच्चे इन दिनों मुख्य धारा में हैं। पिछले कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि हमारे बाल कलाकार टीवी के परदे से पर ही नहीं, बड़ी बड़ी फिल्मों तक में भी जो करिश्मा करके दिखा रहे है, वह अपने आप में बहुत गजब की बात है। टीवी सीरियल में बच्चे बड़े कलाकारों जितने अहम रोल निभा रहे हैं। वे बाल कलाकार नहीं, कलाकार हैं। हमारा सिनेमा आज भले ही हर दूसरी - तीसरी फिल्म से सौ-दो सौ करोड़ रुपए कमा रहा हो, लेकिन हमारे देश में सिनेमा से कई गुना ज्यादा दर्शक टीवी के हैं। टीवी की इसी ताकत को पहचानते हुए पिछले कुछ समय से बच्चों को केंद्र में रखकर उनके लिए रोल लिखे जा रहे हैं, किरदार गढ़े जा रहे हैं, कहानियां तलाशी जा रही हैं और बच्चों की केंद्रीय भूमिका वाले सीरियल आ रहे हैं। बहुत सारे सीरियल में उनको मुख्य किरदार के रूप में रखा जा रहा है। सीरियल तो सीरियल, रियलिटी शो भी बच्चों पर बन रहे हैं।  साफ लग रहा है कि वे दिन चले गए, जब छोटे बच्चों को सीरियल में बड़ों का साथ निभानेवाले छोटे-मोटे रोल दिए जाते थे। वक्त बदल गया है। बच्चे अब बड़े कलाकार हैं, बड़ों से भी बड़े। बच्चे लीड रोल में आ रहे हैं।
तारक मेहता का उल्टा चश्मा का टपू यानी भव्य गांधी सीरियल की बच्चा पार्टी का मुखिया है। उसकी बच्चा पार्टी को टपू सेना के नाम से ही जाना जाता है।  ‘धरती का वीर पुत्र महाराणा प्रताप पहले दिन से ही बहुत सारे बच्चों वाला सीरियल बना हुआ है। महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह और अकबर के बाल्यकाल को जब तक यह सीरियल दिखाएगा, उनके साथियों के रोल में भी इस सीरियल में बहुत सारे बच्चे भी खूब छाते रहेंगे।  ‘’  ‘बालिका वधू की अविका गोर ने तो 10 साल की छोटी उम्र में ही सीरियल में काम करना शुरू कर दिया था। उतरनकी इच्छा (स्पर्श), और तपस्या (इशिता) ने पूरे सीरियल को रहां से कहां पहुंचा दिया। झांसी की रानीका किरदार ठीक से निभाने के लिए उलका गुप्ता ने तो घुड़सवारी से लेकर तलवारबाजी जैसे मुश्किल काम भी सीखे। आपकी अन्तरामें सिर्फ सात साल की जायना वासतानी ने जो किरदार निभाया है, वह उसकी ऊम्र किसी भी बच्चे के लिए करना बड़ा ही मुश्किल है, लेकिन इस बच्ची ने अन्तरा के किरदार को बड़े रोमांचक तरीके से निभाया। सारेगामा, लिटिल चैंप जैसे रियलिटी शो और कॉमेडी शो आदि में भी बाल कलाकार अपने अभिनय का जलवा दिखाने में जबरदस्त कामयाब हुए हैं।
इन बच्चों की अगर कमाई की बात करें, तो हर मुख्य कलाकार को 20 से 30 हजार रुपए हर शिफ्ट के हिसाब से मिलते हैं। छह घंटे की शिफ्ट के लिए इन बाल कलाकारों को कमसे कम 5 हजार रुपए और ज्यादा देखें तो 15 हजार रुपए के आसपास तो मिल ही जाते हैं। सहयोगी बाल कलाकारों भी रोज कमसे कम दो से पांच हजार रुपए के बीच कमाई हो जाती है। काम अगर दो शिफ्ट को हो तो बच्चों की यह कमाई एक दिन में दुगने से भी ज्यादा हो जाती है। इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के जाने माने पीआर हिमांशु झुनझुनवाला कहते हैं कि बाल कलाकारों की यह फीस उनके किरदार, रोल की लंबाई और भूमिका की महत्ता के हिसाब से तय होती है। लेकिन यह सब प्रोडक्शन हाउस, चैनल और कंपनी के व्यावसायिक स्तर पर भी निर्भर करता है कि उनका लेवल क्या है। हिमाशु के मुताबिक  - फीस के मामले में यह भी देखा जाता है कि सीरियल की टीआरपी क्या है और अगर बाल कलाकार सीरियल का अनुभवी है, तो भी उसे काम के बदले अच्छे पैसे मिलने की संभावना ज्यादा होती है। वैसे, ज्यादातर टीवी सीरियल की शूटिंग रोज कमसे कम दो शिफ्ट से ज्यादा लंबी हो ही जाती है। सो, कमाई अकसर दुगने से ज्यादा हो जाती है।
कुछ वक्त पहले महाराष्ट्र सरकार ने टीवी सीरियल में बाल कलाकारों से काम लेने वाले निर्माताओं और उनके माता पिता पर कार्रवाई करने का ऐलान किया था। सरकार को लग रहा था कि वे लोग बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लेते हैं। जो बालश्रम कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। बाल श्रम (रोकथाम और नियमन) कानून 1986 के अनुसार इनके काम की अवधि 6 घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। काम की जानकारी भी सरकार को देनी होती है। वह इसलिए, क्योंकि कानून अपनी जगह है और कमाई की अपनी जगह और काम अपनी जगह। बच्चों और उनके परिजनों को सीरियल में काम करना सुहा रहा है। बच्चों की बढ़िया कमाई से परिजन निहाल हो रहे हैं। और प्रेडक्शन हाउस के सीरियल भी मजे से चल रहे हैं, तो कानून की किसको पड़ी है। इसीलिए, बच्चे कहां, कितना और कैसा काम कर रहे हैं, और कितना कमा रहे हैं, सरकार को इसकी जानकारी कोई नहीं देता। और अगर कोई देता भी है, तो उसमें सच कम ही होता है। लोढ़ा फाउंडेशन की निदेशक मंजू लोढ़ा के मुताबिक – टीवी सीरियल में काम करने वाले बच्चों के आराम, वैयक्तिक विकास, पढ़ाई, और बचपन पर असर हो रहा है। इसलिए इन बच्चों के माता पिता को बच्चों की कमाई पर ज्यादा ध्यान न देकर इनकी समस्यों पर ध्यान देने चाहिए।लेकिन तारक मेहता... के टपू यानी भव्य गांधी के मामा विपिन शाह कहते हैं कि यह सब जीवन का हिस्सा है। बच्चों का बचपन खिलसर सामने आ रहा है। विपिन के मुताबिक – कमियां तलाशने के बजाय, बच्चे जिस तरह से टीवी इंडस्ट्री को चला रहे हैं, उसे उनकी सफलता के नजरिये से देखा जाना चाहिए।’  निर्देशक तनूजा शंकर के मुताबिक – टीवी में बच्चों के लिए स्कोप बहुत बढ़ गया है। और बच्चों के सपने भी बड़े हो गए हैं। लेकिन कई टैलेंट शो में जज की भूमिका निभा चुके संगीत निर्देशक विशाल भारद्वाज के अनुसार  - बड़े सपने इन कलाकार बच्चों के नहीं होते, ये उनके मां-बाप अपने दिमाग में लेकर चलते हैं। बच्चे टीवी में प्रसिद्धी के लिए या एक्टर बनने नहीं आते, वो तो इसलिए आते हैं क्योंकि परिजन उनको प्रेरित करते है।

बहस चाहे कोई कितनी भी करे, लेकिन सच यही है कि छोटे परदे की ज्यादातर कहानियां इन बच्चों पर ही आधारित होने लगी है। और छोटे परदे पर छोटे बच्चों के बड़े हुनर को देख कर ऐसा लगता है कि आज का दौर फिलहाल तो इन बच्चों का ही होकर रह गया है। इसीलिए छोड़ी उमर में ये बड़ी कमाई कर रहे हैं। और मंजर जैसा है, उसे देखकर यह भी कहा जा सकता है कि फिलहाल तो छोटे परदे पर इन्हें कोई आसानी से पछाड़ नहीं सकता। बड़े कलाकारों के मुकाबले काम, कमाई और कोशिश में ये छोटे कलाकार काफी आगे निकल चुके हैं। आगे भले ही तस्वीर बदल जाए, पर काम और कमाई के हिसाब से आज तो इन बाल कलाकारों का है।