Sunday, July 21, 2013

हिनहिना रही हैं हिना
-निरंजन परिहार-
हिना रब्बानी खार हिनहिना रही हैं। उन्होंने कहा है कि भारत युद्ध भड़काने पर तुला है। गुस्साते हुए हिना ने हमारे सेनाध्यक्ष पर आरोप लगाया है कि जनरल विक्रम सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ बहुत आक्रामक बयान दिया है। झूठ बोनते हुए हिना ने यह भी कहा है कि भारतीय सैनिकों के सिर काटने में पाकिस्तान को कोई हाथ नहीं है। और राजनीति के तहत यह भी बोली पाकिस्तान तो भारत से दोस्ती के संबंध बनाए रखना चाहता है, लेकिन भारत खुद ही नहीं चाहता कि संबंध सामान्य बने रहें। फिर कूटनीतिक अंदाज में अंत में हिना ने यह भी कहा है इस मसले पर सूझबूझ से काम लेना चाहिए। हालांकि वे विदेश मंत्री पाकिस्तान की हैं, पर यह सब उन्होंने पाकिस्तान में नहीं बल्कि अमरीका में जाकर बोला है। दुनिया भर में वे कहीं भी जाएं, भाड़ में भी। अपनी तरफ से कोई एतराज नहीं। पर, ये पाकिस्तानी नेता अमरीका जाकर ही भारत के खिलाफ बयानबाजी क्यों करते हैं, यह अपनी समझ से परे है।
हिना रब्बानी के नयन नक्श बहुत तीखे हैं, अदाएं कंटीली और मुद्राएं मारक हैं

हिना रब्बानी के मामले में आइए, थोड़ी मन की बात कर ली जाए। अपना मानना है कि राजनीति में बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो हमेशा पोस्टरों में बहुत छाए रहकर भी स्थायी रूप से नेपथ्य  में ही रहने को अभिशप्त होते हैं। और बहुत सारे ऐसे लोग भी होते हैं, जो सिर्फ नेपथ्य की राजनीति करते हुए भी पोस्टरवाले लोगों पर बहुत पराक्रमी साबित होते हैं। अपने अहमद पटेल की तरह। लेकिन एक तीसरी जमात और है, जो वैसे तो जगमगाते जग में जीने के लायक जलजले की तरह होते हैं, पर स्थायी रूप वे नेपथ्य में रहकर सिर्फ पोस्टरों पर ही रहें, तो उनकी सेहत के लिए ठीक रहता है। लेकिन राजनीति है कि यह सब होने नहीं देती। हिना रब्बानी खार इसीलिए राजनीति में भी है, पोस्टरों पर भी और पोस्ट पर भी। वे पाकिस्तान की विदेश मंत्री भी है। और हुस्न की मल्लिका होने की वजह से कनखियों से झांकने लायक भी हैं। नयन नक्श बहुत तीखे हैं। अदाएं कंटीली और मुद्राएं मारक हैं। हमारे देश की दुल्हनों के हाथों में सजी बेजान हिना भी इतनी खूबसूरत लगती है, तो यह जीती जीगती हिना तो दुनिया के दसियों देशो की राजनीति के बीचों - बीच मंच पर मौजूद हैं। इसीलिए वह न तो नेपथ्य में रह पाती है, न ही सिर्फ पोस्टरों में समा सकती हैं और खूबसूरती के किस्से कहानियों को तो वैसे भी रोके रोकना कहां इंसान के बस की बात है।

हमारे हिंदुस्तान में 16 अक्टूबर, 1998 को एक फिल्म रिलीज हुई थी। नाम था कुछ कुछ होता है। शाहरुख खान, रानी मुखर्जी और काजोल इसके मुख्य किरदार थे। फिल्म खूब चली। इतनी चली कि करण जौहर की झोली भर गई। बेहद खूबसूरत बोल और  बिंदास बंदगी वाला, ...क्या करूं हाय, कुछ कुछ होता है, इसका जबरदस्त किस्म का सुपर हिट गीत था। हर किसी की जुबान पर यही गीत था उन दिनों। फिल्म का मामला तो पुराना पड़ गया। लेकिन संगीत हमेशा दिलों की दिल्लगी और दिल की लगी के दौरान दर्द देता रहता है। कभी हंसाता है, कभी रुलाता है तो कभी किसी को देख कर उन पंक्तियों को गुनगुना कर दिल को सुकून देने की प्रेरणा भी देता है। यही वजह है कि दिल की बात तो कूटनीति के कुटिल कंगूरों, राजनीति की रेखाओं और सार्वभौमिक संबंधों की सीमाओं के पार जाकर भी पसर जाती है। वह दिल देखती है, दीवारें नहीं। इसीलिए हमारे खिलाफ हजार बकवास के बावजूद पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को माफ करने का देने मन करता है। माफ इसलिए, क्योंकि उनको देखकर अपना मन तो करण जौहर की कुछ कुछ होता है, फिल्म का गीत गुनगुनाने का मन करता है।

कहने को भले ही हिना हमारे सबसे कट्टर दुश्मन और कमीने पड़ोसी पाकिस्तान की हैं। उस पाकिस्तान की, जिससे हम शर्म आने की हद तक नफरत करते हैं। पर, हिना रब्बानी खार की खूबसूरत अदाओं का असर ही ऐसा है कि उनकी शर्त पर बहुत भले और भोले लोग तो पाकिस्तान जैसे दुश्मन को भी गले लगाने को तैयार हो जाएंगे। और यही नहीं अपने जैसे औसत दर्जे के करोड़ों बेचारे तो उनकी सिर्फ एक झलक पर पूरी जिंदगी कुर्बान कर डालने को बेताब हो सकते हैं। पर, यह दिलों का नहीं देशों का मामला है हूजूर, जहां जिंदगी जीने के मामले वतन की आन बान और शान से जुड़े होते हैं। ऐसे मामलों में हजार हिनाओं की कंटिली अदाओं और मुस्कान बिखेरती मुद्राओं पर कोई थूकने को भी तैयार नहीं होगा। हिना रब्बानी जहर उगल रही हैं, और हमारे सैनिकों की हत्या का दोष भी हमारे ही मत्थे मढ़ रही है। कोई और मामला होता, तो हिना की मनमोहिनी अदाओं पर मरनेवाले मोहित हो जाते। पर, मामला देश की अस्मत और अस्मिता का है जनाब। इसीलिए, हिना की खूबसूरत अदाओं का सम्मान करते हुए उनको सलाह देने का मन करता है कि वे तय कर लें कि उन्हें अपनी खूबसूरती से ज्यादा प्यार है या राजनीति से। अगर खूबसूरती से है, तब तो ठीक। क्योंकि हम हिंदुस्तानी तो सारा सम्मान करते हुए सीमा पार के सौंदर्य को भी सस्नेह सह लेंगे। अतिथि को देवता मानना हमारी संस्कृति है। वरना, हमारे यहां तो परवेज मुशर्रफ जैसे बात बात पर सेल्यूट मारनेवाले आपके राष्ट्रपति भी आये थे, और हमने उन्हें मुहब्बत की नगरी आगरा में ताजमहल के साए में हमारे अटलजी से हाथ मिलाए बिना ही खाली हाथ वापस पाकिस्तान लौटा दिया। बेचारे, अजमेर जाना चाहते थे। सोचा था, ख्वाजा साहब की मजार पर मत्था टेकूंगा। पर, जसवंत सिंह ने तब लगभग कूटनीतिक व्यंग्य में एक शेर कहा था कि - वही अजमेर जाते हैं, जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं।

हिंदुस्तान तो हिना रब्बानी, आप भी आई थीं, हमने तो आपको भी देवता माना था। सन 1971 में रिलीज हुई फिल्म अलबेला’  के देवता माना और पूजा तेरी तस्वीर को... गीत को हमारे देश के लोगों ने आपके मामले में साकार किया। लेकिन भारत को गाली देना ही आपकी राजनीति है तो फिर हमारी राजनीति ने तो बला की खूबसूरत बालाएं भी जेसिका लाल की तरह गोलियों से छलनी होते और नैना  साहनी की तरह तंदूरों में सिंकते देखा हैं। हमारे लिए राष्ट्र की से  बढ़कर आपकी खूबसूरती का मोल नहीं है। हिना रब्बानी किसी लाजवंती नायिका की तरह राजनीति में हैं, और इसीलिए अपनी उनको सलाह है कि कम से कम भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का अभिनय ना करे। हमारे हिंदुस्तान ने अब पाकिस्तानी नेताओं की नौटंकी ना देखने का मन बना लिया है। हिना रब्बानी नेपथ्य में ही रहे, तो उनकी सेहत और सौंदर्य दोनों के लिए ठीक रहेगा। क्योंकि उनको देखकर दुनिया भर अपने जैसे लोगों के मन में कुछ कुछ तो होता ही है, बहुत कुछ भी होता है। जिन लोगों ने उनको नहीं देखा है, तो उनकी तस्वीर ही देख लीजिए, अपना दावा है, आपके दिल में भी कुछ कुछ नहीं हो तो कहना...!

(जनवरी 2013 में पाकिस्तान की विदेशमंत्री हिना रब्बानी के भारत दौरे पर लिख गया लेख)