Tuesday, June 4, 2013

...तो पत्ते गिनती नजर आएगी बीजेपी !
-निरंजन परिहार-
बीजेपी में अंदरुनी कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कलह के कलेवर का केंद्र अंतिम रूप से बीजेपी के लौहपुरुष ही हैं। आडवाणी कभी देश के नेता थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता तो वे अब भी हैं। लेकिन जब पार्टी ही रसातल में चली जाएगी, तो आडवाणी नेता किसके होंगे, उनको यह चिंता नहीं है। लौहपुरुषजी आजकल कुछ ज्यादा ही बदले बदले से सरकार नजर आ रहे हैं। सब कुछ यूं ही चलता रहेगा, तो न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली कहावत बीजेपी पर बिल्कुल फिट बैठती नजर आएगी। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर नरेंद्र मोदी से आडवाणी की कहां बिगड़ गई है कि वे उनको घेरने में ही लगे रहते हैं। एमपी के शिवराज सिंह को मोदी से बेहतर सीएम बताने का मामला अभी ठंडा नहीं पडा था कि बीजेपी के लौहपुरुषजी ने एक पुराना राग फिर से आलाप दिया है। अब वे इस फिराक में है कि कैसे भी कर के 2014 के आम चुनाव में बीजेपी के प्रचार अभियान की कमान मोदी को न मिले।  

Media Expert Niranjan Parihar with Renowned Poet
 Mr. Surendra Sharma at Mumbai.
लालकृष्ण आडवाणी ने नितिन गड़करी को एक बार फिर से ढाल बनाने की कोशिश की है। वे चाहते हैं कि 2014 में होने वाले देश के आम चुनाव में बीजेपी के चुनाव अभियान के संयोजक के रूप में गडकरी काम करें। वैसे इस मामले में बहुत दिनों से देश भर में खुले आम जिस सिर्फ एक आदमी का नाम इस पद के लिए सबसे योग्य माना जा रहा है, वह नरेंद्र मोदी ही हैं। पार्टी से लेकर आम जनता तक जान रही है। लेकिन आडवाणी पता नहीं क्यूं अनजान होने का अभिनय कर रहे हैं। वैसे वे अभिनय कर सकते है। क्योंकि आडवाणी फिल्में देखने के शौकीन रहे हैं और बहुत सारे नए पुराने अभिनेताओं से उनके आत्मीय रिश्चते भी हैं ही, सो इतना तो अभिनय वे कर ही सकते हैं कि मोदी की आंधी का उन्हें पता तक नहीं है।
कुछ दिन पहले भी आडवाणी ने इस मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। लेकिन बात बनी नहीं।  इस सिलसिले में आडवाणी ने गड़करी को अपने घर भी बुलाया। खाना भी खिलाया। पटाने की कोशिश भी की। लेकिन मामला जमा नहीं। गडकरी पता नहीं मोदी से डर रहे हैं या सीबीआई से। लेकिन आडवाणी के इस प्रस्ताव पर उनने बहाना यह बताया कि वे नागपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। और तर्क यह दिया कि अपने चुनाव के कारण देश भर का काम कैसे संभालेंगे। अपना मानना है कि मौके बार बार नहीं आते। गड़करी के पास वैसे भी अब खोने को बचा क्या है। और रही बात चुनाव लड़ने की, तो गड़करी को अपनी सलाह है कि वे इस मामले में राजस्थान के सीएम और कांग्रेस के धुरंधर नेता अशोक गहलोत को अपना गुरू बना लें। गहलोत जोधपुर में चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरने के बाद प्रदेश के दोरे पर निकल जाते हैं। एक सभा करते हैं, और लोगों से कहते हैं कि आज जा रहा हूं, अब सीधा वोट डालने ही आउंगा। उनका पूरा चुनाव जोधपुर के कार्यकर्ता लड़ते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि गहलोत तो पूरे राजस्थान से उनके लिए लड़ रहे है।    
दरअसल, बीजेपी में एक बहुत बड़ा तबका चाहता हैं कि चुनाव अभियान के नेतृत्व को लेकर जल्द फैसला हो जाए तो ठीक। वरना, पार्टी पिछड़ जाएगी। कांग्रेस ने तो तैयारी भी शुरू कर दी है। अपना मानना है कि मोदी भले ही कितने भी तेजतर्रार नेता हैं, पर उनको भी तैयारी के लिए वक्त तो चाहिए। वैसे, गडकरी जब अध्यक्ष थे तो चुनाव अभियान मोदी को सौंपने की बात थी। ऐसे में आडवाणी का गडकरी को यह प्रस्ताव देना उनकी मोदी से बढ़ती दूरियों के राज खोलने के लिए काफी हैं। दरअसल बात यह है कि आडवाणी की मंशा यह हैं कि चुनाव अभियान समिति के मुखिया के रूप में मोदी का पत्ता साफ हो जाए। लेकिन मोदी का पत्ता अगर साफ हो गया तो बीजेपी देश भर में वोट तो नहीं, पर पत्ते गिनती जरूर नजर आएगी। न आए तो कहना।  
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)