Tuesday, June 4, 2013

आडवाणी की असलियत  और बीजेपी में बवाल
-निरंजन परिहार-
लालकृष्ण आडवाणी। जिनने अपनी कोशिश से बीजेपी को भारतीय राजनीति में बहुत अचानक प्रमुख पार्टी बना दिया। बीजेपी आज जिस मुकाम पर है, वहां पहुंचाने में आडवाणी का ही सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। बात बिल्कुल सही है। लेकिन आडवाणी द्वारा शिवराज सिंह की तारीफ के बाद पैदा हुई स्थिति की समीक्षा करेंगे, तो भी जवाब यही मिलेगा कि बीजेपी आज जिस मुकाम पर है, वहां पहुंचाने में आडवाणी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। जिसने बीजेपी को बनाया, वही आडवाणी बीजेपी को बवाल बना रहे हैं। आज अटल बिहारी वाजपेयी की आधी अधूरी उपस्थिति की वजह से लालकृष्ण आडवाणी ही बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं। लेकिन बीजेपी के इन लौहपुरुषजी को यह सलाह देने का मन करता है कि आडवाणी को बड़े नेता होने के आचरण को एक बार फिर से सीखने की जरूरत है।
Media Expert Niranjan Parihar presented his newest book
to the President of India HE Mrs. Pratibha Patil.
The Book is a life scatch of Jain Saint Acharya
Chandranan Sagar Maharaj.  
ग्वालियर में आडवाणी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी से शिवराज सिंह चौहान की तुलना करते हुए कहा कि दोनों विनम्र हैं और दोनों अहंकार से परे हैं। लगे हाथ आडवाणी ने विकास के लिये शिवराज सिंह की तुलना नरेन्द्र मोदी से कर डाली। और बवाल खड़ा करके दिल्ली आ गए। अब बेचारे राजनाथ सिंह सफाई देते घूम रहे हैं। वैसे यह कोई पहली बार नहीं है। अपने कहे से बवाल पैदा करना आडवाणी का पुराना शगल रहा है।
कुछ साल पहले आडवाणी ने एक किताब लिखी थी - 'माई कंट्री माई लाइफ' इसके विमोचन समारोह में देश के तब के उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत भी थे। संयोग से उनके साथ अपन भी थे। और खुश भी हो गए थे। अपन तो खैर इसलिए खुश थे कि आडवाणी की इस किताब में अपने माऊंट आबू का भी जिक्र है। 'माई कंट्री माई लाइफ'  में आडवाणी ने लिखा है कि माउंट आबू में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। उसमें पार्टी नेता और ज्योतिषी डॉ. वसंत कुमार पंडित भी आये हुए थे। जिनसे आडवाणी ने अपने राजनीतिक कैरियर के बारे पूछा तो जवाब मिला कि जनसंघ के सारे लोग दो साल के वनवास की तरफ बढ़ रहे हैं। यह सुनकर आडवाणी सन्न रह गए। बाद में आपातकाल की जेल ने इस बात को सही साबित भी किया। अपन छोटे आदमी थे, सो माऊंट आबू के जिक्र जैसी छोटी सी बात में ही खुश हो गए। पर, 'माई कंट्री माई लाइफ' के विमोचन में यूं तो बीजेपी के सारे बड़े नेता मौजूद थे। लेकिन इस कार्यक्रम में आडवाणी के लिए सबसे खास नरेन्द्र मोदी थे। समारोह में आए सारे लोगों को तब साफ लग रहा था कि अगर आज देश में आडवाणी के कोई सबसे करीबी है, तो वह नरेंद्र मोदी ही हैं। जैसा कि होता है, मोदी और आडवाणी की ये नजदीकियां बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं को कभी खुशी, कभी गम देती रहीं, पर आज खुद आडवाणी लगता है गम में हैं। शिवराज की तुलना मोदी से करके शायद ने यही कहना चाह रहे हैं। 
 कंधार की घटना अभी इतनी पुरानी नहीं हुई है कि आप भूल गए हों। आडवाणी ने तब साफ झूठ बोल दिया था। आतंकवादियों को छोडने और जसवंत सिंह के आतंकवादियों के साथ कंधार जाने के फैसले को जसवंत सिह पर थोपकर साफ बच निकलने की कोसिश में थे। जबकि फैसला मंत्रिमंडल की बैठक में हुआ था।  और आडवाणी देश के गृह मंत्री की हैसियत से उस बैठक और फैसले, दोनों में शामिल थे। जसवंत सिंह ने बाद में एक किताब लिखी, जिसमें उनने जिन्ना की तारीफ की, तो कहते हैं कि वह आडवाणी ही थे, जिन्होंने जसवंत सिंह को पार्टी से निकालने की बात सबसे पहले की। जबकि उनसे भी पहले आडवाणी तो जिन्ना की मजार पर फूल चढाने भी गए थे और यह कहकर भी आए कि जिन्ना से ज्यादा धर्मनिरपेक्ष नेता भारत में कोई नहीं हुआ। कथाएं, दंतकथाएं और अंतर्कथाएं और भी बहुस हैं, पर बात सिर्फ आडवाणी की नहीं, समूची बीजेपी के बदलते चरित्र की है। और बीजेपी में जो हो रहा है, वह सिर्फ एक पार्टी के लिए ही नहीं,  समूचे देश के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है। आखिर बीजेपी दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र का सबसे बड़ा विपक्षी दल है। एक ऐसा प्रतिपक्ष, जिसका सबसे बड़ा नेता ऐसे बयान देता है जो पार्टी के लिए आफत बनकर उभरते हैं।                  (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)