Saturday, June 1, 2013

ब्राहमण, बनियों और राजपूतों की बीजेपी  में ब्राह्मण कहां?
-निरंजन परिहार-
बामन, बनिया और राजपूत। राजस्थान में ये तीनों ही बीजेपी की रीढ़ की हड्डी माने जाते रहे हैं। पर, बामन नाराज। कतई खुश नहीं। बीजेपी में अपने नेताओं के अपमान से सारे बामन आहत। वैसे अब तक बीजेपी उन्हीं के बूते पर फुंफकारती रही है। लेकिन अब बामन महाराज की तस्वीर बिल्कुल साफ है। बनिये भी बेरुख। हर बार की तरह इस बार कोई बहुत ज्यादा अपनत्व नहीं दिखा रहे हैं। पांच साल पहले और आज के परिदृश्य में बहुत बड़ा फर्क है। और राजपूतों का तो कहना ही क्या। वे इधर हैं उधर हैं या किधर हैं, कोई गारंटी नहीं दे सकता। फिर बीजेपी राजस्थान में जीतैगी कैसे। वह तो पार्टी ही बामन, बनियों और राजपूतों की कही जाती है। बीजेपी में बनियों और राजपूतों की रणनीति पर विस्तार से बात कभी और करेंगे। आज बात सिर्फ ब्राह्मणों की। 
Arun Chaturvedi, President of Rajasthan BJP, Ex union Minister
Dr. Sanjay Singh Amethi and Congress MP Raj Babbar launching
new Book of Media Expert Niranjan Parihar in Mumbai.
बीजेपी जिस विचारधारा पर चलने की बात कहती है, वह धारा ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने शुरू की थी। वे ब्राह्मण थे। बीजेपी के सबसे श्रद्धेय नेता अटल वाजपेयी भी ब्राह्मण हैं। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी ब्राह्मण और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली भी ब्राह्मण। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से लेकर संसदीय बोर्ड तक में भी बहुत सारे ब्राह्मण ही बिराजमान हैं। मुरली मनोहर जोशी से लेकर कई बड़े बड़े आदरणीय नेता भी ब्राह्मण। दिल्ली से बाहर जाकर देश भर में देखें, तो ज्यादातर राज्यों में पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी ब्राह्मण हैं। कुछ दिन पहले श्रीमती वसुंधरा राजे बीजेपी का बामन पुराण बांचते हुए यह सब गिना रही थी। कह रही थीं कि बीजेपी में जब सारे बड़े नेता ब्राह्मण ही हैं, सो, हम तो पंडितों के आशीर्वाद के बिना आगे बढ़ ही नहीं सकते। लेकिन उस वक्त शायद वे यह भूल रही थीं कि वे राजस्थान बीजेपी के एक ब्राह्मण अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को धकियाकर वे अध्यक्ष पद पर काबिज हुई हैं। प्रदेश में ब्राह्मणों के सबसे आदरणीय नेता हरिशंकर भाभड़ा को वे वास्तव में कुछ नहीं मानती। दूसरे बहुत पराक्रमी नेता ललित किशोर चतुर्वेदी को पता नहीं कहां धकेल दिया है। परम सम्माननीय किस्म के भंवरलाल शर्मा जैसे वरिष्ठतम ब्राह्मण नेता को तो अपने पिछले कार्यकाल में ही ठिकाने लगा चुकी थी, यह किसी से छुपा नहीं है। और अब जो सबसे सक्रिय, समर्थ, सिद्ध और प्रसिद्ध ब्राह्मण नेता घनश्याम तिवाड़ी हैं, वे रूठे हुए हैं, बीजेपी फिर भी जीत के सपने देख रही है।

राजस्थान की राजनीति के ऊबड़ खाबड़ रास्तों के पता नहीं किस मोड़ पर श्रीमती राजे को यह समझ तो आ गई थी कि ब्राह्मण समुदाय को साधे बिना बीजेपी को बहुमत में लाना और सरकार में आने की कल्पना करना कोई बहुत समझदारी का काम नहीं है। इसीलिए वसुंघरा राजे ने इसीलिए कुर्सी संभालते ही सबसे पहले राजस्थान ब्राह्मण महासभा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह को अपने सरकारी घर में आयोजित करके प्रदेश के ब्राह्मण वोटों को आकर्षित करने के की कोशिश की। लेकिन ब्राह्मणों के प्रति अपने मन में इतना मान रखती है, इस पर शक करने का मन करता है। श्रीमती राजे वास्तव में ब्राह्मणों का इतना ही सम्मान करती हैं और उनका यह मानना है कि ब्राह्मणों के आशीर्वाद के बिना बीजेपी आगे बढ़ ही नहीं सकतीं तो क्या इस बात का जवाब उनके पास है कि राजस्थान बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी को नाराज करके एक तरफ क्यूं धकेल दिया है। जो लोग तिवाड़ी के बारे में जानते हैं, वे यह भी मानते हैं कि भैरोंसिंह शेखावत जैसे बहुत दिग्ग्ज नेता के सामने भी वे कभी झुके नहीं। स्वाभिमान से समझौता करना तिवाड़ी को नहीं आता। श्रीमती राजे ने उनको मनाने की अब तक कोई गंभीर कोशिश नहीं की। वसुधरा राजे को यह समझना पड़ेगा कि राजनीति में जब किसी को खुश करके भी हम आगे नहीं बढ़ सकते, तो समाज के सबसे प्रबुद्ध वर्ग को नाराज करके सत्ता में कैसे आ सकते है। फिर ब्राह्मण तो ब्राह्मण हैं। शंकरजी ने तीसरा नेत्र खोल दिया तो भस्म होते भी देर नहीं लगती। और अशोक गहलोत तो चाहते भी यही हैं।        (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)