Thursday, June 6, 2013

गहलोत के सामने बौने
साबित होते बाकी नेता
-निरंजन परिहार-
राजस्थान में अशोक गहलोत ने बाकी सबको बौना बना दिया है। राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि विधानसभा चुनाव खुले आम आठ महीने पहले से ही शुरू हो गया। इतने लंबे चुनाव प्रचार में लोग तो क्या पार्टियां तक थक जाती हैं। पर यह कांग्रेस के धुरंधर नेता राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की खुद को केंग्र में रखकर फिर से सरकार बनाने की दूरदृष्टि और वसुंधरा राजे की सरकार में आने की बेताबी ही इस माहौल की मजबूती कही जा सकती है। दोनों सुसज्ज हैं, दोनों पूरी क्षमता से मैदान में है। लेकिन इस बात का क्या किया जाए कि समूचे राजस्थान में बहुत तेजी से यह माहोल बनता जा है कि गहलोत ने बढ़िया काम किया है। भले ही सरकार लंगड़ी थी और कोई मंत्री राजनीतिक रूप से बहुत ताकतवर भी नहीं था। फिर भी उधार के बहुमत को मजबूत आधार में तब्दील करने का करिश्मा गहलोत ने किया और सरकार चलाई। काम भी किया। सो राजस्थान में सरकार के विरोध की धारणा तो खत्म हो ही गई, अब गहलोत के फिर से सरकार बनाने की बात पुख्त होती जा रही है।
बीजेपी इसीलिए बेचैन है। वैसे, बेचैनी कांग्रेस के नेताओं में भी है। उनको डर है कि इस बार अगर फिर से कांग्रेस ने सरकार बना ली तो सेहरा सिर्फ अशोक गहलोत के सिर पर ही बंधेगा। सारी फूमालाएं भी उन्हीं को मिलेंगी। दूसरे किसी को भी माला छोड़कर फूल तो क्या, पंखुड़ी भी नहीं मिलेगी। मंच भी गहलोत का, काम भी उनका, लोग भी उनके और यात्रा में भी वे ही वे। हर तरफ तेरा जलवा की तर्ज पर गहलोत ही गहलोत। दूसरे किसी के लिए कोई जगह ही नहीं है। दरअसल, गहलोत की सरकारी योजनाओं की जनता को जानकारी देने की इस .कांग्रेस संदेश.यात्रा ने कब उनके निजी रोड़ शो का रूप धर लिया किसी को समझ में ही नहीं आया। पर निश्चित रूप से गहलोत शुरू से ही समझ रहे होंगे। सो, शुरू से ही सबको अलग रखा। जिसको आना हो, अपने अपने इलाके में आओ। गहलोत पूरे प्रदेश में, बाकी लोग सिर्फ अपने इलाके में। राजनीति में कद इसी तरह से तय होते है।
 दरअसल, गहलोत यह सब इसलिए कर लेते हैं, क्योंकि उनको कोई चिंता नहीं है। भविष्य सुरक्षित है। राजनीति के सारे भंवर, प्रपात और प्रवाह वे पार कर ही चुके हैं। अब, अपनी योजनाओं को जनता के दिलों में बिठाने के लिए निकल रही गहलोत की यात्रा ने जो प्रदेशव्यापी माहौल बनाया है, उससे राजस्थान में ही नहीं देश में भी उनकी भविष्य की राजनीति को सुरक्षित कर दिया है। उनके पास अपनी योजनाओं का अंबार है। वे उनका बखान नहीं, प्रचार कर रहे हैं। और निशाने पर बीजेपी को रखे हुए है। लेकिन बीजेपी की ताकत देखें, तो उसकी मजबूरी यह है कि वह जिन हथियारों के सहारे लड़ रही है, उनकी धार के निर्माता भी गहलोत ही है। बीजेपी सरकार की योजनाओं के खिलाफ खूब बोल रही है, जो गहलोत की ही बनाई हुई हैं। मतलब कांग्रेस में तो गहलोत है ही, बीजेपी में भी गहलोत। इसके अलावा बीजेपी के पास कुछ है ही नहीं। बीजेपी का गहलोत की योजनाओं का विरोध करना जनता को सुहा नहीं रहा है।  
कुछेक कांग्रेसियों को इस बात पर पता नहीं क्यूं हैरत है कि गहलोत के संबोधन में प्रदेश की योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचार ज्यादा और केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का जिक्र कम होता है। लेकिन गहलोत सही है क्योंकि चुनाव प्रदेश का है, दिल्ली का नहीं। दिल्ली में सोनिया गांधी से लेकर राहुल भैया और सारे केंद्रीय नेताओं को पता है कि राजस्थान में कांग्रेस की नैया के खिवैया सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत ही हैं। और अपना तो यहां तक मानना है कि राजस्थान में एक अशोक गहलोत को छोड़ दें, तो सीपी जोशियों, चंद्रभानों और बाकी बहुत सारे अल्लू – पल्लुओं के भरोसे तो कांग्रेस पच्चीस सीटें भी जीत नहीं सकती। श्रीमती वसुंधरा राजे ऐसे बहुत सारे नेताओं को एकसाथ चट करने का माद्दा रखती हैं। 

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)