Thursday, May 30, 2013

गहलोत पर हर वार
को तैयार संघ परिवार
-निरंजन परिहार-
राजस्थान में अशोक गहलोत को हटाकर बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए संघ परिवार ने मोर्चा संभाल लिया है। खबर है कि संघ परिवार को यह एहसास हो गया है कि राजस्थान में इस बार बीजेपी नहीं जीत पाई, तो फिर आनेवाले कई सालों तक प्रदेश में तो बीजेपी सत्ता से दूर ही रहेगी। पार्टी के बहुत सारे बड़े नेता बहुत बूढ़े हो गए हैं। नाम गिनने जाएंगे, तो सूची बहुत लंबी हो जाएगी। पांच साल बाद के चुनाव में वे किसी काम के नहीं रहेंगे। आज की तारीख में वसुंधरा राजे के अलावा ऐसा कोई नहीं है जो बीजेपी की नैया को पार लगा सके। कद्दावर कटारिया का गुलाब सीबीआई की धूप से मुरझा सकता है। और यह भी समझ में आ गया है कि बीजेपी इस बार भी सिर्फ अपनी कोशिशों से तो सत्ता में आने से रही। क्योंकि प्रदेश भर में आम आदमी के मन में यह धारणा बहुत तेजी से मजबूत होती जा रही है कि अशोक गहलोत लगातार  मजबूत होते जा रहे हैं।

अशोक गहलोत की तैयारी है कि कैसे भी करके एक बार कांग्रेस फिर से सत्ता में आ जाए, प्रदेश में बीजेपी का कैडर ही खत्म हो जाए। गहलोत मानते हैं कि राजनीति में कार्यकर्ता का जिंदा रहना जरूरी है। वही नहीं रहा, तो पार्टी कैसे चलेगी। गहलोत की कोशिश है कि बीजेपी दस साल लगातार सत्ता से अलग रही तो उसका कार्यकर्ता वैसे भी खत्म हो जाएगा। संघ परिवार ने गहलोत की इस मंशा को भांपकर कमान कमर कस ली है। गहलोत की काट में संघ परिवार की कोशिश है कि कैसे भी करके इस बार राजस्थान में बीजेपी की नैया को पार लगाया जाए और कार्यकर्ता को मजबूत किया जाए। वैसे, सच सिर्फ यही है कि प्रदेश में बीजेपी में स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत और कांग्रेस में अशोक गहलोत के मुकाबले अब तक कोई और नेता नहीं जन्मा, जिसने कार्यकर्ता को भरपूर पनपाया हो। शेखावत जब सरकार में थे, तो कुछेक मंत्रियों को छोड़कर सारे के सारे मंत्री कार्यकर्ता की नजर में नाकारा थे। कार्यकर्ता का काम ही नहीं होता था। पिछली बार वसुंधरा राजे की सरकार आई, तो यह खाई और बढ़ गई। सेठों, दलालों और ठेकेदारों के सारे काम हुए लेकिन कार्यकर्ता के लिए नीतियां आड़े आती हैं। अभी गहलोत की सरकार में भी खुद उनके अलावा कार्यकर्ता के लिए सारे मंत्री नाकारा ही हैं। वैसे तो सारे मंत्री इन बातों को खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि कार्यकर्ता तो हमेशा रोता ही रहता है। पर, दिल पर हाथ रखकर वसुंधरा राजे सोचेंगी, याद करेंगी, यादों में डूबेंगी तो उनको ये पंक्तियां सच लगेंगी। कार्यकर्ता के हक में संघ परिवार इसीलिए कदम आगे बढ़ा रहा है।
हालात से लगता है कि बीजेपी के मुकाबले संघ परिवार ज्यादा गंभीर है। देश में कांग्रेस की घटती साख के बावजूद हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में हाल ही में कांग्रेस की सत्ता में वापसी से संघ परिवार को समझ में आ रहा है कि हमारे हिंदुस्तान के लिए भ्रष्टाचार, महंगाई, वादाखिलाफी और बेईमानी अब कोई बहुत बड़े मुद्दे नहीं है। संघ परिवार का मानना है कि बीजेपी के लिए बहुत अनुकूल माहौल के बाद भी प्रमुख राज्यों में सत्ता गंवाने का मूल कारण गहरे तक घुस गए भाई - भतीजावाद, भ्रष्टाचार, और चहेतों को टिकट देना सबसे बड़ा कारण है। विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में नेताओं की मनमानी रोकने के लिए संघ परिवार ने उम्मीदवार चयन के मापदंड बना रहा है। विधायक की चुनाव क्षेत्र में उपलब्धता, क्षेत्रीय विकास में सक्रिय भूमिका, विधानसभा में सक्रियता एवं निजी और सार्वजनिक आचरण की शुचिता के अलावा जातिगत जनाधार तो है ही, लोकप्रियता और अपराध से दूर रहना सबसे पहली जरूरत होंगे। इन पर खरे उतरने वाले विधायकों को सबसे पहले क्लीयर किया जाएगा। आला नेताओं में विचार विमर्श हो गया है। बीते महीने भर से राष्ट्रीय नेता सौदान सिंह इसी मिशन पर प्रदेश के बहगुत सारे जिलों का दौरा कर चुके है। संघ परिवार ने हर जिले से बीजेपी की हालत की रिपोर्ट भी जुटा ली है। कुल मिलाकर अशोक गहलोत की हर कोशिश की काट का मंत्र संघ परिवार तैयार कर रहा है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)