Thursday, May 16, 2013


सरदारजी की आफत अश्विनी और बंसल बने बवाल

-निरंजन परिहार-

इसे कांग्रेस की बदकिस्मती कहा जाए या मनमोहन सिंह की खराब किस्मत का कमाल कि सत्ता की सियासत में तीसरी बार पीएम का सपना देखनेवाले सरदारजी के दिन कोई बहुत ठीक नहीं चल रहे हैं। पवन कुमार बंसल नई आफत का नाम है। इसे संयोग कहा जा सकता है और सियासत का कलंकित अध्याय भी। लेकिन हकीकत यही है कि कोलगेट में सीबीआई की रिपोर्ट में हेर-फेर से लेकर रेलवे प्रमोशन घूसकांड के नए राजनीतिक उफानों में पीएम के खासमखास लोग ही धराशायी हो रहे हैं। अश्विनी कुमार अभी उलझे हुए ही थे कि पवन बंसल के भांजे ने कांड कर दिया। जिस देश में दो - दो लाख करोड़ के घोटाले हो रहे हों, वहां वैसे तो नब्बे लाख रुपए की रिश्वत लेना कोई बहुत बड़ी बात नहीं मानी जानी चाहिए। लेकिन कांड तो कांड है, कोलगेट भी एक कांड है। उसके लफड़े से घुसे कानून मंत्री अश्विनी कुमार की कुर्सी का खतरा अभी टला भी नहीं कि रेलमंत्री पवन बंसल आफत बनकर उभरे हैं।

अपनी सरकार के दोनों ताकतवर मंत्रियों को के मामले में कांग्रेस पर तो तोहमत लग ही रही है, व्यक्तिगत रूप से पीएम तकलीफ में हैं। लेकिन न चतो कांग्रेस को फर्क पड़ता है और न ही सरदारजी ऐसे मामलों से डरते हैं। मंत्री जेल भी जाते हैं, तो सरदारजी मेजे में ही दिखते हैं। लेकिन अपना मानना है कि किसी से भी इस्तीफा नहीं लिया जाएगा। यह कांग्रेस है। यहां की राजनीति में तब तक इस्तीफा नहीं लिया जाता, जब तक कि पानी सर से ऊपर न चला जाए। फट से इस्तीफा ले लो, तो बहुत किरकिरी होती है। लेकिन इतना जरूर है कि पीएम परेशान हैं कि उनके पहरेदार ही पतित होते चले जा रहे हैं। हमारे सरदारजी के सबसे चहेते और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया लगातार कई बड़े विवादों को लेकर निशाने पर हैं तो पूर्व खेल मंत्री एमएस गिल का कई आरोपों में पहले ही पत्ता साफ हो गया है। अब रेल मंत्री तकलीफ में हैं। बंसल पीएम के पसंदीदा चेहरों में से एक हैं। चंडीगढ़ के हैं और कभी लूना चलाते थे, पर अब देश की रेलों को चलाने के जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कांग्रेस के झरोखों से आती खबरों की आहट को सुनें, तो यह मनमोहन सिंह की मर्जी ही थी कि बहुत ही लो प्रोफाइल बंसल को कांग्रेस के खाते में 17 साल बाद आए हाई प्रोफाइल रेल मंत्रालय का भार सौंप दिया गया। मगर प्रमोशन के लिए दस करोड़ रुपए की रिश्वत डील में रंगे हाथ गिरफ्तार अपने भांजे की वजह से न केवल मामा बंसल मुसीबत में हैं बल्कि पीएम के लिए बंसल के नाम पर आए इस तूफान को थामना बड़ी चुनौती बन गया है।

मामला सरकार और पीएम की साख का है। उंगली दोनों पर उठ रही है। वैसे, पवन कुमार बंसल ही अकेले मुसीबत नहीं हैं। कानून मंत्री अश्विनी कुमार को बचाने की जद्दोजहद सरदारजी कर रहे हैं। क्योंकि कानून मंत्री की कुर्सी अगर इस मामले में चली गई तो फिर इस तूफान के भंवर में खुद पीएम भी घिर जाएंगे। सो, इतना तो पक्का है कि किसी की भी कुर्सी नहीं जाएगी। पवन कुमार बंसल की सरदारजी की नजदीकियां कोई व्यक्तिगत नहीं बल्कि सिर्फ राजनीतिक है लेकिन अश्विनी कुमार से तो उनके मधुर संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है। यही वजह थी कि सरदारजी ने बहुत सारी कमजोरियों और कांग्रेस के कई दिग्गजों की अनदेखी करके राज्यसभा की राजनीति करने वाले अश्विनी कुमार को कानून मंत्रालय का हाई प्रोफाइल विभाग दे दिया। सरदारजी की साख को बट्टा तो वैसे ही बहुत लग चुका है. पर इस बार तो दोनों मंत्री उनके खासमखास हैं। सियासी गलियारों में कई तरह की अटकलें हैं। कांग्रेस के बहुत सारे सांसद बंसल और अश्विनी कुमार के जाने और खुद के मंत्री बनने की आस पाल रहे हैं। पर सबसे बड़ी बात यह है कि अकसर खुद के बाय एक्सीटेंड राजनीति में आने की बात कहने वाले सरदार मनमोहन सिंह एक एक करके लगातार नए राजनीतिक एक्सीडेंट के शिकार हो रहे हैं। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)