Friday, May 24, 2013

फिर तो आधा जोधपुर गहलोत का रिश्तेदार है




-निरंजन परिहार-
राजनीति में आरोपों का सिलसिला कोई नया नहीं है। लेकिन आरोप जब रिश्तेदारी निभाने को लेकर उछाले जाने लगें, और सामने आदमी का नाम जब अशोक गहलोत हो तो मामला कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता है। वैसे, रिश्तेदारी का भी अपना अलग ही मायाजाल है। रिश्तों के बिना जिंदगी आसान नहीं होती। लेकिन लोग रिश्तेदारी को जी का जंजाल भी बना देते हैं। खासकर राजनीति में तो बहुत दूर की रिश्तेदारी भी आफत बनकर उभरती है। हमारे सीएम अशोक गहलोत इस तथ्य को और तथ्य में छुपे सत्य को पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर बहुत अच्छी तरह समझ गए थे। इसीलिए रिश्तेदारी और रिश्तेदारों से शुरू से ही वे थोड़ी दूरी पर ही मिलते रहे।
Media Expert Niranjan Parihar , Singer Ganga Kalawant, Musician Kamal
Kalawant  Langa Group of Rajasthani Folk Singers Barkat Khan & Party
at Grand Holi event at Mumbai on 29th March, 2013.

अशोक गहलोत सन 1980 से लगातार किसी न किसी बड़े पद पर हैं। वे 33 साल से कभी सांसद, तो कभी केंद्र सरकार में मंत्री, कभी एआईसीसी के महासचिव तो कभी विपक्ष के नेता, और कभी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तो कभी सीएम रहे हैं। लेकिन कभी किसी रिश्तेदार को पास आने तो दूर राजनीति तक में कहीं पसरने नहीं दिया। फिर रिश्तेदार भी जानते हैं कि राजनेता अपनी रिश्तेदारियों को आम तौर बहुत कम ही निभा पाते हैं। खासकर गहलोत जैसे राजनेता अपने रिश्तेदारों से कितनी रिश्तेदारी निभाते हैं, और कितने काम आते हैं, यह अपने से ज्यादा कौन जानता होगा। बीते तीस साल से, जब से अपन ने समझ संभाली है, तब से लगातार अपन देख भी रहे हैं, और भुगत भी रहे हैं। अपन साए की तरह उनके साथ रहे, बरसों तक उनके काम किए, और अब बहुत दूर रहकर भी उनके साथ रहने जैसे ही हैं। पर, उनके अपने होने के बावजूद कभी उनसे किसी फायदे की आस नहीं पाली। वैसे, हर व्यक्ति का अपना स्वभाव होता है, हमारे सीएम गहलोत का यही स्वभाव है, और उसे अपन बदल तो नहीं सकते।
विरोधी होने का धर्म निभाने के लिए गहलोत के विरोधी भले ही उनके खान आवंटन में रिश्तेदारी निभाने की बात कहते हों, पर यह तो उनके विरोधी भी जानते हैं कि गहलोत कभी किसी रिश्तेदार को अपने पास फटकने भी नहीं देते हैं। गहलोत ने कब, कहां, किससे, कैसी रिश्तेदारी निभाई है, यह तो रिश्तेदारों का जी जानता है। और ज्यादा सच जानना हो तो यह भ4 जन लीजिए कि दूर के रिश्तेदार तो बेचारे सीएम से अपनी रिश्तेदारी सार्वजनिक रूप से जाहिर करने से भी बचते हैं। वजह यही है कि वे सीएम गहलोत का स्वभाव जानते हैं। अब जब, गहलोत को रिश्तेदारों को खान बांटने के बवाल को बहुत बढ़ाया जा रहा है तो अपना भी आपसे कुछ सवाल करने का हक बनता हैं। सवाल यह है कि आपके भांजे के साले का भतीजा कौन है ? जरा बताइए तो? आपके भांजे के साले का समधी कौन है ? या फिर आपके भांजे के साले के समधी का साला कौन है? या फिर भांजे के साले के समधी का भाई कौन है? आप नहीं बता सकते। क्योंकि दूर के रिश्तेदारों के भी बहुत दूर के रिश्तेदारों को रिश्तेदार तो बेचारे कहने भर के रिश्तेदार होते है।
फिर ऐसी ही रिश्तेदारी तलाशनी है और ऐसी ही पत्थर की खदानों से जुड़े नाम गहलोत के माथे पर चिपकाने हैं, तो फिर करीब आधे से भी ज्यादा जोधपुर की गहलोत से रिश्तेदारी है और उनमें से सारे का सारे या तो पत्थर की खदानों को मालिक हैं या फिर ठेकेदार। कोई पांच साल पहले कोटा में जब अपन ने भी सरकार से पत्थर की खदान ली थी, तब भी भाई लोगों ने खूब कोहराम मचाया। लेकिन कुछ नहीं बिगाड़ पाए। अब चुनाव का मौसम शुरू हो गया है। विरोधियों को अपने भविष्य की चिंता है। ऐसे में कलंक की काजल लेकर गहलोत के पीछे पड़ने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। लेकिन आप ही बताइए कि राजनेताओं के रिश्तेदार और रिश्तेदारों के रिश्तेदार और उनके भी दूर रिश्तेदार होने की वजह से सारे रिश्तेदार लोग अपना धंधा पानी समेटकर भीख मांगना तो नहीं शुरू कर सकते।
     (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्छ पत्रकार हैं)