Thursday, May 16, 2013


मोदी से नहीं अब वरुण से होगी राहुल गांधी की तुलना

-निरंजन परिहार-

कांग्रेस में राहुल गांधी, बीजेपी में वरुण गांधी। कांग्रेस में सोनिया गांधी, बीजेपी में मेनका गांधी। राजनाथ सिंह ने हिसाब बराबर करने की कोशिश की है। अपनी टीम में राजनाथ सिंह ने जिस तरह से वरुण गांधी को अचानक बहुत भाव दिया है, उससे तो कमसे कम यही लगता है। राजनीति में किसी को भी वजन यूं ही नहीं मिलता। उसके पीछे बहुत सारे मकसद एक साथ काम करते हैं। वरुण गांधी भी मकसद के मोहरे हैं। इसीलिए महासचिव पद पर आ गए हैं। हालांकि वरुण गांधी पहले भी सचिव पद पर थे। लेकिन अब उससे बहुत ऊपर के पद पर हैं। माना जा कहा है कि उनको इस पद पर लाकर बीजेपी ने यूपी में युवा चेहरे के रूप में उन्हें राहुल गांधी से भिड़ाने का मंच तैयार कर दिया है। कोई कुछ भी कहे, पर इस मामले को राहुल गांधी के मुकाबले के रूप में ही देखा जा रहा है।

वैसे माना जा रहा है कि राजनाथ सिंह ने वरुण गांधी के जरिए एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है। राजनीति में कई बार तो तीसरा निशाना फोकट में भी लग जाता है। सो, वरुण गांधी को लाकर बीजेपी ने यह संदेश तो दिया ही है कि वह यूपी को ज्यादा अहमियत देने जा रही हैं। साथ ही, यह भी बताने की कोशिश की है कि बीजेपी अब युवा चेहरों को आगे बढ़ा रही है। वैसे, एक बहुत साफ संदेश यह भी है कि बीजेपी में युवाओं के लिए बहुत सारा स्पेस है। यूपी में कांग्रेस के पास अकेले राहुल गांधी हैं। उन्हीं ने वहां सका सारा दारोमदमार अपने ऊपर ले रखा है। उनकी काट में वरुण गांधी को खड़ा करके चुनावी मुकाबले को राहुल बनाम वरुण गांधी करने की तैयारी की गई है। जिस तरह से राहुल गांधी में कांग्रेस अपना फायदा देख रही है, उसी तरह से वरुण में बीजेपी अपना फायदा तलाश रही है।

वैसे भी, राजनीति में फायदे के अलावा कुछ नहीं देखा जाता। राहुल भैया का ज्यादा ध्यान यूपी पर ही है। उनका ज्यादातर वक्त भी वहीं कटता है। वे सहीं से सफल होना चाहते हैं। वैसे, यह बहुत मुश्किल काम है। दो दो बार वे भद्द पिटवा चुके हैं, फिर भी राहुल गांधी को लगता है कि यूपी से ही कांग्रेस को फिर से देश के नक्शे पर सबसे बड़ा सेंटर बनाया जा सकता है। तो, लो भैया, बीजेपी ने आपके इस लगने में रोड़ा खड़ा कर दिय़ा है। वरुण गांधी यूपी में लगातार सिमटती जा रही कांग्रेस के लिए एक और आफत के रूप में आ गए हैं। लोग तुलना तो करेंगे ही। सो, अब राहुल गांधी की तुलना यूपी में तो कमसे कम सिर्फ और सिर्फ वरुण गांधी से ही होगी। नरेंद्र मोदी से नहीं होगी। इसके अलावा बीजेपी का यह भी मानना है कि राहुल के मुकाबले वरुण ज्यादा अग्रेसिव है। राहुल गांधी ठंडे हैं। उनमें स्पार्क नहीं है। थ्रिल भी नहीं है। वे बोलते हैं, तो बचकाने लगते हैं। वाणी में ओज नहीं है। वरुण गांधी में अग्रेशन है। अग्रेसिव लीडर लोगों को लुभाता है। फिर भी यूपी में राहुल सक्रिय हैं। सो, राहुल को रोकना जरूरी है।

बीजेपी इतनी सारी मान्यताएं एक साथ लेकर चल रही है। इसीलिए, वरुण को यूपी से महासचिव बनाकर कांग्रेस को ही नहीं पूरे देश को संदेश दिया गया है कि कांग्रेस अगर यूपी को अहमियत दे रही है तो बीजेपी के लिए भी यूपी की कीमत कोई कम नहीं है। लेकिन लग रहा है कि यूपी में राहुल गांधी की तरह गली गली घुमाने के लिए वरुण गांधी को आने वाले दिनों में कोई और भूमिका भी दी जा सकती है। तख्त सज चुका है और तस्वीर साफ है कि आने वाले दिनों में अब राहुल गांधी की तुलना वरुण गांधी से ही होगी, नरेंद्र मोदी से नहीं।