Tuesday, May 28, 2013

इस जंग में अकेली क्यूं हैं वसुंधरा !
-निरंजन परिहार-
श्रीमती वसुंधरा राजे को या तो दिख नहीं रहा हैं या फिर वे देखना नहीं चाहतीं। राजनीति में ज्यादातर समझदार लोग अकसर ऐसा करते हैं। पर, सभी को दिख रहा है कि राजस्थान बीजेपी की दीवारों की दरारें और खतरनाक होती जा रही हैं। और इसके उलट अशोक गहलोत रोके रुक नहीं रहे हैं। वे दिन ब दिन मजबूत होने की तरफ बढ़ते ही जा रहे हैं। लेकिन बीजेपी की मजबूरी यह है कि उसके पास गहलोत की रफ्तार को रोकने लायक कोई और है ही नहीं। श्रीमती राजे अपनी सुराज संकल्प यात्रा में मगन है। जिसके कोई बहुत अच्छे परिणाम फिलहाल तो दिख नहीं रहे हैं।

              राजस्थान बीजेपी के सबसे बड़े नेता गुलाब चंद को सीबीआई ने अटका दिया है। विपक्ष के नेता कटारिया बहुत दिनों तक श्रीमती राजे की सुराज संकल्प यात्रा में हर जगह साथ थे। बढ़िया माहौल बन रहा था। पर, जब से सीबीआई ने उन पर शिकंजा कसा है, कटारिया शांत हैं। सीबीआई उनको फांस कर जेल भेजने पर तुली हुई है और वे इससे बचने के लिए राजस्थान से बहुत दूर मुंबई में बैठकर कोर्ट में सीबीआई से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की धमक और शुचिता के लिए अपनी अलग किस्म की चमचमाती चमक रखनेवाले कटारिया वसुंधरा राजे की यात्रा में न जाने को मजबूर है। वैसे भी जीवन भर की कमाई और पीढ़ियों की पूंजी जब अपनी नजरों के सामने छिनती नजर आ रही हों, तो काहे का सुराज, काहे का संकल्प और काहे की यात्रा। मुसीबत के मारे मुनष्य को कुछ भी याद नहीं आता, सिवाय अपनी इज्जत के। इज्ज्त बच जाए तो बहुत बड़ी बात। कटारिया जैन हैं और बीजेपी में दूसरे दिग्गज जैन नेता महावीर प्रसाद जैन भी आजकल कहीं दिखाई नहीं देते।
Gulab Chand Kataria, then Home Minister of Rajasthan at a event in Mumbai
with Mr. Niranjan Parihar

 कटारिया जैसी ही हाल राजेंद्र सिंह राठौड़ का है। जेल से आने के बाद वे भी आजकल ठंडे ठंडे से है। दारिया हत्या कांड में सीबीआई के साए में अटक जाने के बाद से ही श्रीमती राजे के खास सिपहसालार राजेंद्र सिंह राठौड की रफ्तार धीमी पड़ गई है। नरपत सिंह राजवी कहां हैं, क्या कर रहे हैं, और क्यूं कर रहे हैं, यह कोई नहीं जानता। राजवी और राठौड़ दोनों राजपूत हैं और भरपूर प्रभावशाली भी। प्रदेश में सामंत वर्ग के वोटों को कांग्रेस से छिटका कर बीजेपी को साथ जोड़े रखने में ये दोनों बहुत आसानी से कामयाब हो सकते हैं। हाल ही में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से निवृत्त हुए अरुण चतुर्वेदी का बीजेपी कोई बहुत कायदे से उपयोग कर नहीं पा रही है। धुरंधर नेता ललित किशोर चतुर्वेदी क्षमतावान होने के बावजूद सक्रिय नहीं हैं। घनश्याम तिवाड़ी अलग राग आलाप रहे हैं। सारे के सारे बड़े ब्राह्मण नेता पार्टी में दरकिनार है।
               हालात मुश्किल हैं और रास्ता कठिन। फिर श्रीमती राजे का राजस्थान बीजेपी मैं आज बिल्कुल अकेला पड़ते जाना भी नई मुश्किल है। उनकी सुराज संकल्प यात्रा में उनके मंच पर या साथ में जो लोग दिखाई देते हैं, उनका अपनी गली में भी कितना प्रभाव है, यह खुद उनको भी नहीं पता। और जो बड़े नेता हैं, वे प्रभावशाली तरीके से कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिर भी वसुंधरा राजे मस्त हैं। लेकिन खतरा यह है कि श्रीमती राजे जिस संगठन को अभेद्य किला मानकर चल रही है, वह कहीं भरभरा कर गिर न जाए। दीवारें तो वैसे भी दरक रही हैं। बामन, बनिया और राजपूतों की पार्टी कही जानेवाली बीजेपी में इन तीनों के बड़े नेता ही नदारद हैं।
आप जब किसी से सीधे टकराव में हों, तो बचाव के लिए अपने साथियों को दूसरे मोर्चों पर खड़ा करना होता है, ताकि दुश्मन जब आप पर सीधे प्रहार करने की मुद्रा में आए, तो आपके बाकी साथी उसे घेर कर धावा बोल दे। जंग की परंपरा तो कम से कम यही कहती है। पर, इस जंग में श्रीमती राजे अकेली हैं। बिल्कुल अकेली। फिर भी उनको लग रहा है कि यह यात्रा प्रदेश का माहौल बदल देगी। ईश्वर करे, उनकी यह कामना सफल हो, लेकिन अपना मानना है कि ईश्वर भी सिर्फ उन्हीं का साथ देता है, जिसके साथ उसके घरवाले साथ होते हैं। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)