Friday, May 17, 2013


सोहराबुद्दीन कोई संत नहीं था भाई, उसे तो ऐसे ही मरना था

-निरंजन परिहार-

सोहराबुद्दीन को एक दिन इसी तरह मरना था। पुलिस उसे नहीं उड़ाती, तो कोई महात्मा या धर्मात्मा किस्म का सामान्य व्यक्ति उसे गोली से भूनने को मजबूर हो जाता। राजस्थान में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया के मामले में सबसे ज्यादा गौर करने लायक बात यह है कि सीबीआई नामक सरकारी तोता आखिर किसके लिए उनको अपराधी साबित करने पर तुला हुआ है। एक दुर्दांत और कमीने किस्म का कुख्यात, अपराधी सोहराबुद्दीन शेख। तो एक तरफ राजनीति में मानवीय मूल्यों, आदर्श एवं नैतिकता की सर्वश्रेष्ठ मिसाल गुलाब चंद कटारिया। दोनों में कोई तुलना ही नहीं। हमारी कांग्रेस के नेता अकसर अपने भाषणों में मुसलमानों के अपराध को कम साबित करने की कोशिश में अकसर कहते रहते हैं कि अपराधी का कोई धरम नहीं होता। लेकिन होता है। नहीं होता, तो गुलाब चंद कटारिया जैसे निष्पाप, निष्कलंक और निरपराध व्यक्ति को फांसने से पहले सोहराबुद्दीन जैसे दुर्दांत अपराधी के पाप भी सार्वजनिक किए जाने चाहिए।

देश भर में इस तरह का माहौल बन गया है जैसे, सोहराबुद्दीन कोई आपकी हमारी तरह सामान्य आदमी था। देश की सरकार ने भले ही छुपाया है, पर आइए, अपन बताते हैं। सोहराबुदीन शेख हमारे देश के बहुत सारे कांग्रेसी नेताओं की याददाश्त में बहुत ही मासूम और एक छोटे मोटे चोर के रूप में दर्ज है। 26 नवंबर 2005 को गुजरात और राजस्थान पुलिस के एक जॉइंट ऑपरेशन में सोहराबुद्दीन को गोलियों से उड़ा दिया गया। उसने राजस्थान और गुजरात के मार्बल व्यवसायियों से बहुत बड़ी बड़ी फिरौती वसूली का धंधा जोर शोर से शुरू कर दिया था। असल में सोहराबुदीन एक आतंकवादी था और जिसके खिलाफ खतरनाक हथियारों की तस्करी व रखने के केस चल रहे थे। उसके अलावा विभिन्न आतंकवादी गतिविधियां चलाने तथा क़त्ल करने तथा करवाने के भी मुक़दमे थे। उस पर कुल 56 मामले दर्ज हैं। इसके अलावा गुजरात के सीएम को मारने की साजिश भी रच रहा था।

सोहराबुदीन मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के एक गाँव का रहने वाला था। वहां वो एक ट्रक ड्राईवर था। इस दौरान वह छोटा दाऊद और बाबू पठान नाम के दो दूसरे ड्राइवरों के संपर्क में आया। ये दोनों अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहीम के लिए हथियारों की तस्करी करते थे। उनके साथ सोहराबुद्दीन ने भी हथियारों की तस्करी शुरू कर दी। और तस्करी का पैमाना इतना बड़ा था कि सोहराबुद्दीन ने अपने गांव में हथियारों का गोदाम बना डाला। उसके इस गोदाम से पुलिस छापे के दौरान दो एके - 56 राइफलें और कुल 24 एके - 47 रायफलें बरामद हुई। मुठभेड़ के बाद सोहराबुद्दीन के कपड़ों से मिले दो सिम कार्ड पाकिस्तान के कराची निकले। दोनों की कॉल डिटेल साबित करती है कि सोहराबुद्दीन उन दोनों का इस्तेमाल काफी लंबे समय से कर रहा था। इस सिम कार्ड के जरिए सोहराबुद्दीन पाकिस्तान में दाऊद के करीबियों एवं लश्कर के लोगों से बात किया करता था। कॉल डीटेल्स से साबित होता है कि पुलिस से जिस मुठभंड़ में सोहराबुद्दीन मारा गया, उससे कुछ वक्त पहले ही उसकी कई बार कराची बात हुई थी। देश में हुए विभिन्न विस्फोटो तथा आतंकवादी हमलों में इसका हाथ था। 14 फरवरी 1998 को हुए कोयम्बटूर ब्लास्ट में विस्फोटक पहुंचाने में सोहराबुद्दीन की भूमिका जांच में साबित भी हो चुकी है।

पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद जब सोहराबुदीन की लाश उसके गांव पहुंची तो लोगों ने भारत विरोधी नारे लगाये, और पाकिस्तान की भरपूर जय जय कार हुई। लोगों ने सोहराबुद्दीन की लाश का एक जेहादी की तरह स्वागत किया। यही नहीं, हथियारों की स्मगलिंग के दौरान सोहराबुद्दीन ने जो बहुत सारे तोप-तमंचे अपने गांव वालों को तोहफे में दिए थे, उनसे लोगों ने गोलियां भी चलाई। सोहराबुद्दीन की यह असलियत सरकार के साए में छुप गई है। सरकारी तोता हमारे निष्कलंक राजनेताओं को लपेटने की कोशिश में कितनी भी साजिशें रचे। पर, सबसे पहले यह भी जान लेना जरूरी है कि सोहराबुद्दीन शेख कोई धर्मात्मा नहीं था। सोहराबुद्दीन जैसे कमीनों के लिए आदर्श पुरुषों को फंसाने से कोई मतलब नहीं निकलेगा। सोहराबुद्दीन को तो एक दिन इसी तरह मरना था।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)