Wednesday, May 22, 2013

एक जमूरे की सरकार के नौ साल
-निरंजन परिहार-
कोई और होता, तो नौ साल तक हमारे देश का पीएम रहने के दौरान देश को कहां से कहां पहुंचा देता। पहुंचाया तो मनमोहन सिंह ने भी है। लेकिन रसातल शब्द का क्या अर्थ होता है, यह शायद उन्हें समझ नहीं आ रहा है। कायदे से अगर कहा जाए तो, मनमोहन सिंह भारतीय इतिहास के अब तक के सबसे लाचार, बेबस और दीन – हीन पीएम हैं। एक ऐसा आदमी, जो होने को तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का पीएम है, लेकिन अपने वर्तमान के हर छोटे से छोटे फैसले के लिए श्रीमती सोनिया गांधी के आदेशों का इंतजार करता है, और भविष्य के लिए राहुल गांधी की ओर ताकता है। वाह क्या सीन है। जो आदमी अपने वर्तमान को लेकर हर पल लाचार और भविष्य को लेकर हर बार बहुत बेबस हो, फिर भी वह किसी देश के पीएम के पद पर हो, तो इसे उस आदमी की खुशकिस्मती ज्यादा और उससे भी ज्यादा देश की बदकिस्मती कही जा सकती है।  

मनमोहन सिंह पीएम के रूप में अपने नौ साल पूरे करने का मना रहे हैं। अब तक तो हमारे देश में सिर्फ राष्ट्रपति के पद को ही खुले आम रबर स्टैंप कहा जाता रहा है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व और व्यवहार ने हमारे देश पीएम के पद को भी रबर स्टैंप के असल अवतार में लाकर खड़ा कर दिया है। अपना मानना है कि नौ साल पीएम रहने के बावजूद हमारे सरदारजी भारतीय इतिहास में इज्ज्त के साथ तो खड़े करने लायक नहीं हैं। जब जब उनके कार्यकाल को याद किया जाएगा, तब तब निश्चित रूप से एक घनघोर कलंकित सरकार का चेहरा सामने आएगा। एक ऐसा पीएम, जिसके कार्यकाल में सबसे ज्यादा घोटाले हुए और सबसे ज्यादा मंत्रियों को इस्तीफे भी देने पड़े, सीबीआई भी झेलनी पड़ी और जेल भी जाना पड़ा। एक ऐसा पीएम, जिसके कार्यकाल में हमारे देश के अनेक राज्यों के सालाना बजट से भी कई गुना ज्यादा करोड़ रूपयों के घोटाले हो गए।


टूजी, कोलगेट, कॉमनवेल्थ, रेल रिश्वत आदि बहुत बड़े घोटालों के अलावा कई घपले तो ऐसे हैं, जो इन महाघपलों के साये में समा गए हैं। एलआईसी हाउसिंग घोटाले को बाकी घोटालों की तुलना में बहुत छोटा बताया गया। छोटा, यानी मात्र एक हजार करोड़ रुपए की लूट का। लेकिन ईमानदारी से अपने कलेजे पर हाथ रखिए और कहिए कि एक हजार करोड़ तो छोड़िए, आप में से एक करोड़ रुपए भी किसी ने एक साथ कितनी बार देखे हैं?  यह सब तो तब है, जब यह सारा का सारा पैसा आपका और हमारा है। जिसके साथ सरदार मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी का जमूरा होने का अभिनय करके खेल रहे हैं। संचार मंत्रालय में विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हुआ। पूरे एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपए का, तो संचार मंत्री ए राजा को अपराधी बनाकर जेल भेज दिया। फिर अपनी बदनामी बचाने के लिए प्रचंड प्रतिभाशाली वकील कपिल सिब्बल को ए राजा की जगह संचार मंत्रालय में लाकर बैठा दिया गया। जिनकी कोशिशें हमारे देश के वकील के रूप में कम और कलंकित राजा के राजा के वकील के रूप में ज्यादा साफ नजर आती हैं।

इस सबके बावजूद पूरी की पूरी कांग्रेस और हमारे अशोक गहलोत भी जब सरदारजी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए, यह कहते हैं कि मनमोहन सिंह एक लंबे अनुभव वाले अंतरराष्ट्रीय ख़्याति प्राप्त अर्थशास्त्री हैं। तो तरस तो आता ही है, गुस्सा भी आता है और दया भी। क्या, आखिर इस देश के आम आदमी की पारिवारिक अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर देना ही किसी के अर्थशास्त्री हो जाने की पर्याप्त योग्यता है? फिर तत्काल दूसरा सवाल भी मन में उछाल  मारता है कि कांग्रेस जैसी महान पार्टी आखिर किस मजबूरी में मनमोहन सिंह को ढोए जा रही है। क्या और उनसे ज़्यादा स्वच्छ छवि वाला ईमानदार आदमी कांग्रेस के पास और कोई नहीं है। मनमोहन सिंह अपने आपको महात्मा गांधी साबित करने में जुटे हुए हैं, पर इस देश के इतिहास में उनका नाम एक लाचार, बेबस और अब तक के सबसे कलंकित पीएम के रूप में दर्ज होगा।                                                                (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)