Thursday, May 16, 2013


आप मजे करिए सरदारजी, देश तो ऐसे ही चलता रहेगा

-निरंजन परिहार-

हमारी वर्तमान सरकार दुनिया के लोकतंत्र के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा और सबसे बड़े घोटालों वाली सरकार रही है। इसे सबसे बदनाम और सबसे खराब छवि वाली सरकार कहा जाता है। फिर भी हमारे सरदारजीपर कोई उंगली नहीं उठा सकता। वे भले ही कांग्रेस के हैं, पर सरकार कांग्रेस की नहीं है। मनमोहन सिंह गठबंधन के पीएम हैं और ऐसी करकारों को बचाने के लिए जो मजबूत किस्म की मजबूरियां होती हैं, उनमें से एक साथी दलों को सबसे पहले सहेज कर रखना भी है। भले ही वे भ्रष्ट और बदनाम है। पर पहली प्राथमिकता सरकार बचाना होती है।

नैतिकता चाहे कुछ भी कहती हो, पर असल बात यही है कि जैसे तैसे तो सरकार में आते हैं, और सिर्फ ईमानदारी के नाम पर सरकार को स्वाहा कैसे कर दें हूजूर। सरदारजी की इमेज साफ-सुथरी और ईमानदार इंसान की रही है। क्योंकि वे भले ही ईमानदार हैं या नहीं पर ईमानदार होने का अभिनय जरूर बहुत अच्छा कर लेते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सोनिया गांधी के वफादार के रूप में वे कर रहे हैं। यह बात जब आप और हम जैसे साधारण लोग भी जब जानते ही हैं कि चीजें जब विवादास्पद होती हैं तो लोग देश के सबसे ऊंचे पद पर बैठे शख्स की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं और किसी मुद्दे विशेष पर उसके विचार जानना चाहते हैं, तो फिर मनमोहन सिंह तो सबसे बड़े पद पर बैठे भी हैं और जानते भी हैं। पिर भी नहीं बोलते तो इसे उनकी समझदारी मानना चाहिए।

वैसे अपन इस बात से कतई सहमत नहीं कि हर इंसान को अच्छा वक्ता होना चाहिए या कोई अच्छा वक्ता नहीं तो वह देश नहीं चला सकता। हमारे सिरोही के लोग कई अच्छे वक्ताओं को धूल चाटते देख ही रहे है। आप भी जानते ही हैं कि वाकपटुता ही इंसान का कोई सबसे बड़ा गुण नहीं हो सकता, व्यवहार भी कोई चीज होता है। फिर भी हमारे सरदारजी ज्यादातर मौन रहते हैं तो इसके पीछे भी कोई वजह जरूर है। हमारे बचपन के एक दोस्त हैं राजेंद्र पुरी गोस्वामी, वे पेशे से एटवोकेट हैं, और उनका खासा नाम भी है। उनका तब का एक तकियाकलाम मनमोहन सिंह की आज की हालत पर बिल्कुल फिट बैठता है। पुरीजी बचपन में कहा करते थे – ‘उस्ताद, मजबूरियों की बात अलग है, वरना जनम से गुनाहगार कोई नहीं होता।’

मनमोहन सिंह मजबूर हैं, यह आप भी जानते हैं और हम भी। अकसर अपन हमारे सरदारजी को राजपथ पर खड़े होकर बहुत बुरा भला कहते रहे हैं, आगे भी कहते रहेंगे। क्योंकि हमारे देश को एक मजबूत पीएम की जरूरत है। पर, वह बहुत कम बोलते हैं। खासकर तब तो बिल्कुल ही नहीं बोलते, जब बोलना जरूरी होता है। फाइनैंस मिनिस्टर थे, तब तो बहुत बोलते थे। लेकिन मनमोहन सिंह के लगातार चुप रहने का लंबा अध्ययन करने के बाद अपने को यह समझ में आ गया है कि चुप रहना भी बहुत मजबूती का काम है। कोई आपको गालियां दे, तो क्य़ा आप चुपचाप सुन सकते हैं। नहीं न। पर, हमारे सरदारजी को तो अकेले अपन ही नहीं आप और सारा देश गालियां देता है। फिर भी वे चुप रहते हैं। शांत रहना अगर आपका मूल चरित्र है तो इसे बदलना भी नहीं चाहिए। आप तो ऐसे ही वफादार होने का स्वांग रचते हुए मम्मू महाराज बनकर साल भर और मजे से गुजार लीजिए सरदारजी। ईश्वर ने चाहा और कांग्रेस पीएम बनाने की हालत में आ गई तो फिर आपको ही बनाएगी। क्योंकि जिस देश में 21 साल के छोरे – छोरी शादी भी कर लेते हैं, मां - बाप भी बनते हैं और साथ के साथ बड़े बड़े उद्योंग धंधे भी सफलतै के साथ चलाते हैं, उस देश के राजकुमार हमारे राहुल भैया 44 साल के हो गए फिर भी अब तक भाभीजी लाने जैसे छोटे से काम को भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी मानते हैं, तो फिर देश तो संभाल लिया उन्होंने।