Monday, May 27, 2013

चुनौतियां बहुत हैं सीपी जोशी के सामने
-निरंजन परिहार-
सीपी जोशी को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। छोटी सी बात पर भी भड़क जाते हैं और किसी को भी खूब सुना भी देते हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ एक ही है कि उनको किसी का डर नहीं है। यह डर कि कोई उनका कुछ बिगाड़ लेगा। राजनीति में चोर लोग हर किसी से डरते हैं। भ्रष्ट लोग किसी को भी कुछ कहने से बचते हैं। और, बेईमान लोग अपने कारनामों के खुल जाने की वजह से हर कहीं टांग अड़ाने से दूर रहते हैं। लेकिन सीपी जोशी को किसका डर। दाग उन पर कोई है नहीं, कभी बदनाम रहे नहीं और बदनाम उनको कोई कर नहीं सका। लेकिन अब रेल मंत्रालय में उनको थोड़ा संभलकर चलना होगा, क्योंकि यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है। दिलीप कुमार की बहुत पुरानी फिल्म गोपी के एक गीत के बोल काजल की कोठरी में कैसे भी जतन करो, काजल का दाग भाई लागे ही लागे रे भाई लागे ही लागे हमारे रेल मंत्रालय पर बहुत सटीक साबित होते हैं। सीपी जोशी के लिए यह सबसे बड़ा चैलेंज है।   

वैसे सीपी जोशी की निजी जिंदगी के बारे में अपन बहुत कुछ नहीं जानते, सो ज्यादा कुछ कह नहीं सकते। पर, बात अगर राजनीति की की जाए, तो सीपी की राजनीतिक जिंदगी मैं चैलेंज शुरू से ही कभी कम नहीं रहे। नाथद्वारा से लेकर उदयपुर और राजस्थान से लेकर दिल्ली तक चैसेंज ही चैलेंज। और सीपी जोशी हर बार हर चैलेंज को फतह करके आगे बढ़े हैं। लेकिन रेल मंत्रालय उनके लिए वक्त के हिसाब से, राजनीतिक कद के हिसाब से और छवि के हिसाब से बहुत बड़े चैलेंज के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। ऊपर से मेवाड़ जैसे पहाड़ी इलाके के लोगों की रेल विकास अपेक्षाओं के हिसाब तो रेल मंत्रालय उनके लिए और भी बड़ा चैलेंज है। जोशी रेल मंत्री तो बन गए हैं, पर लगता है अभी वे उसके सुर, ताल और लय को समझने की कोशिश कर रहे, जो कि किसी के लिए भी बहुत आसान नहीं है। खासकर, सीपी जैसे कड़क आदमी के लिए तो यह और भी मुश्किल है। क्योंकि खाऊ आदमी के लिए तो हर तरह के हजार रास्ते खुल जाते हैं, बहुत सारे बेईमान लोगों के कुनबे के बीच किसी ईमानदार के लिए अपना आशियाना बनाना कांटों भरे रास्ते से कमनहीं होता। 
Union Minister Gurudas Kamat felicitating Mr. Praveen Shah
and Media Expert Niranjan Parihar at Mumbai

राजनीतिक उठापटक और प्रशासनिक कामकाज के लंबे चौड़े हिसाब किताब को कुछ देर के लिए एक तरफ रख दें, तो भी रेल मंत्रालय में सीपी जोशी के सामने एक सबसे बड़ा चैलेंज यह भी है कि रेलवे बोर्ड में नियुक्ति के चक्कर में घनचक्कर बनकर मंत्री पद से हाथ धो बैठे पवन बंसल की जगह वे मंत्री बने हैं। इसलिए अब सिर्फ ईमानदार होने भर से काम नहीं चलेगा। जोशी को अपनी ईमानदारी साबित भी करनी होगी। रेल मंत्रालय हमारे देश में भ्रष्टाचार, बेईमानी और दलाली का सबसे बड़ा गढ़ है। विकास के नाम पर बेतरतीब किस्म के खूब काम होते हैं, रोज अनेक ठेके निकलते हैं और सुबह से शाम तक कई करोड़ के वारे न्यारे होते हैं। और ऐसी जगहों का रिवाज रहा है कि यहां रहकर अगर आप किसी को भी काम नहीं भी करें, तो भी4 बहुत सारी मलाई खुद चलकर आपके घर पहुंच जाती है। ऐसे में जोशी के लिए अपनी ईमानदारी को साबित करना सबसे टेढ़ी खीर साबित होगा।   
ईश्वर करे, श्रीमती सोनिया गांधी ने सीपी जोशी को रेल मंत्रालय का यह जो अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है, यही उन्हें स्थायी रूप से भी मिल जाए। ताकि और कुछ भले ही हो नहीं हो, रेल विकास के मामले में राजस्थान का तो कल्याण हो जाए। वैसे, सीपी जोशी किसी पर भी आसानी से मेहरबानियां न करने के लिए भी काफी कुख्यात रहे हैं। लेकिन यह रेल मंत्रालय का इतिहास है कि हर रेल मंत्री की मातृभूमि अपने सपूत से इतनी आस करती रही है कि विकास की गंगा को वह थोड़ा सा अपने प्रदेश की तरफ भी मोड़ दे। सीपी जोशी मेवाड़ के इतिहास की परंपरा के प्राणी हैं। सो, रेल मंत्रियों के विकास की धारा को अपने प्रदेश की तरफ मोड़ने की परंपरा का तो निर्वहन करेंगे। लेकिन चैलेंज इस काम में भी कोई कम नहीं हैं। अगर रेल मंत्रालय उन्हीं के पास रह गया तो चुनाव में भले ही एक साल हो, पर उनके पास काम करने के लिए सिर्फ छह महीने ही बचे हैं। और इन्हीं छह महीनों में राजस्थान में चुनाव हैं। फिर रेल विकास राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का भी हमेशा से ही सबसे प्रिय विषय रहा है। वे भी चाहेंगे कि राजस्थान में अब तो कम से कम रेलों का विकास हो। सीपी को राजस्थान में रेल का विकास करना है, तो विधानसभा चुनाव से पहले करना होगा। और फायदा गहलोत को होगा। सीएम बनने का सपना संजोनेवाले सीपी के लिए गहलोत को फायदा देना भी कोई कम तकलीफदेह नहीं है। पर, जो कुछ भी करना है, सिर्फ छह महीने में ही करना होगा। राजनीति की राह में रोड़े बहुत हैं और फिसलन भी कोई कम नहीं। पर, अब तक सारी भवबाधाओं को सहज पार कर लेनेवाले सीपी जोशी छह महीने में क्या कर गुजरते हैं, यह अपन सब मिलकर देखेंगे। ठीक है ? 
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)