Thursday, May 16, 2013


दलाली के लिए सत्ता में बैठकर देश की हलाली

-निरंजन परिहार-

हमारे पीएम सरदार मनमोहन सिंह के काल में देश को लूटने के इतिहास के अब तक के सबसे बड़े टूजी घोटाले में बहुत सारी बातें हैं। पहली तो यह कि टूजी के मामले में बनी जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी यानी जेपीसी की रिपोर्ट तैयार हो गई। दूसरी यह कि रिपोर्ट आने से पहले ही लीक हो गई। तीसरी बात यह कि लीकेज में यह सार्वजनिक हो गया है कि जेपीसी ने सरदार होते हुए भी कतई असरदार न लगनेवाले पीएम श्री मनमोहन सिंह और उनके वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दे दी है। चौथी बात यह कि टूजी घोटाले का सारा दोष एक अकेले आदमी ए राजा के माथे मढ़ दिया है। पांचवी यह कि इस मामले में पीएम के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं चल सकता। छठी बात यह कि राजा का कहना है कि टूजी मामले के हर पहलू से वाकिफ थे प्रणब मुखर्जी और मनमोहन सिंह। सातवी बात यह कि संतार मंत्री रहे माननीय सांसद ए राजा जेपीसी के मामले में अपनी बात कहने के लिए पेश होना चाहते हैं। और आठवी बात यह कि जेपीसी इस पूरे मामले में ए राजा की गवाही को ही जरूरी नहीं मानती, इसलिए ए राजा अब इस रिपोर्ट पर संसद में बहस की मांग कर रहे हैं।

लेकिन सरकार है कि सुन ही नहीं रही। दरअसल, यह पूरा मामला राजनीति, कॉरपोरेट और दलाली के अलग अलग रास्तों के तालमेल से पैदा होनेवाले उस घालमेल का है, जो सियासत में बैठे सत्ताधीशों को कोठे की किसी रंडी की शक्ल में देश के सामने खड़ा करता है। मनमोहन सिंह से लेकर प्रणब मखर्जी, चिदंबरम से लेकर ए राजा और मुरली देवड़ा से लेकर हमारे राजीव शुक्ला की सूरत इसीलिए बदसूरत ज्यादा नजर आती हैं। अब भले ही हमारे देश के राष्ट्रपति बन गए हों, पर प्रणव मुखर्जी जब तक सरकारों में रहे, वे सत्ता और कॉरपोरेट के बीच की कड़ी बनकर रहे। खुद प्रणव मुखर्जी ने कई बार कहा है कि वह अंबानी बंधुओं को आज से नहीं बचपन से जानते हैं। यानी राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में जब धीरुभाई अंबानी और उनकी रिलायंस, दोनों बहुत मुश्किल में थे तब धीरुभाई से प्रणव मुखर्जी की कितनी करीबी थी, और इस करीबी की वजह से ही अंबानी की तत्कालीन गरीबी दूर हुई, यह कांग्रेस की राजनीति का तो खुला पन्ना है ही, देश भी अच्छी तरह से जानता है। लेकिन बाद के दिनों में देश के पेट्रोलियम मंत्री बने मुरली देवडा मुकेश अंबानी की कितनी हाजरी बजाते रहे और इसी की वजह से ही देवड़ा ने कांग्रेस की, अपनी और बाकी भी कईयों की गरीबी दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है। देश के गृहमंत्री पी. चिदंबरम भी अनिल अंबानी से कितने करीबी हैं यह भी राजनीतिक गलियारे में सभी जानते है। 10 जनपथ से अनिल अंबानी की दूरी भी किसी से छुपी नहीं है और अनिल अंबानी के मुनाफे के लिये मुलायम सिंह ने समाजवादी राजनीति को कैसे हाशिये पर ढकेल दिया, यह भी जगजाहिर है।

हमारे जनसत्ता के साथी राजीव शुक्ला ने तो जनसत्ता छोड़कर अंबानी की नौकरी भी की और मनमोहन सिंह की सरकार में कांग्रेस के कोटे से अआंबानी के हितों की पूर्ति के लिए अब मंत्री भी हैं। अंबानियों से उनकी करीबी कांग्रेस की गरीबी दूर करने के बहुत काम आती है। लेकिन अर्थशास्त्री रहे मनमोहन सिंह के राज करने के अर्थशास्त्र में जब संसदीय राजनीति ही हाशिये पर है तो फिर सरकार से ऊपर कॉरपोरेट हो, इससे इंकार कैसे किया जा सकता है। इसलिए सार यही है कि राजा तो मोहरा है, जिसे फंसा दिया गया। ताकि बाकी के सर बचे रहें। राजनीति में बलि के बकरा इंसान ही हुआ करते है। लेकिन ए राजा नामक यह बकरा बक बक करके सारी पोल न खोल दे, इसीलिए जेपीसी के सामने गवाही से सरकार रोक रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पहले मुरली देवड़ा, फिर उनके बेटे मिलिंद देवड़ा, पी चिदंबरम, राजीव शुक्ला और उनसे भी बहुत पहले प्रणब मखर्जी जैसे लोग जब तक सरकारों में रहेंगे, दलाली के लिए दलाल लोकतंत्र को हलाल करते रहेंगे। लेकिन आपके और हमको क्या फर्क पड़ता है। करने दीजिए, देश तो ऐसे ही चला करते हैं।