Thursday, May 16, 2013


राजनाथ सिंह की नई टीम का नया चेहरा

-निरंजन परिहार-

राजनाथ सिंह की नई टीम मैदान में आ गई। ज्यादातर महिलाएं हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि इतनी सारी महिलाएं एक साथ बीजेपी की केंद्रीय पदाधिकारी बनाई गई है। उमा भारती से लेकर स्मृति मल्होत्रा - इरानी और मिर्मला सीतारामन से लेकर मिनाक्षी लेखी भी, पूनम महाजन से लेकर रेणू कुशवाहा, आरती मेहरा, सुधा यादव, सुधा मालवीय, वाणी त्रिपाठी जैसी बहुत सारी महिलाएं बीजेपी के आकाश पर अचानक छाने लगी हैं। इन बहुत सारी महिलाओं को बहुत सारे पद देने की बहुत सारी बातें कभी और करेंगे। हो सकता है इसके पीछे सोनिया गांधी को पटखनी देने की कोई लंबी रणनीति हो, पर फिलहाल तो माजरा यह है कि बहुत सारे काबिल पुरुषों को दरकिनार कर दिया गया हैं। नई टीम में अधिकांश चेहरे वही हैं, जिनके बारे में अटकलें लगाई जा रही थीं।

अगर कोई नहीं है, तो वह है ओम प्रकाश माथुर और शिवराज सिंह चौहान। बहुत उम्मीद थी। सभी को थी। वैसे तो लंबे समय से चर्चा थी, पर शनिवार को तो करीब करीब सभी को पक्का हो गया था कि राज्यसभा सांसद ओम प्रकाश माथुर राष्ट्रीय महासचिव और अमपी को सीएम शिवराज सिंह संसदीय बोर्ड में होंगे। पर नहीं दोनों ही बने। अपन नहीं जानते कि क्या हुआ, क्यों हुआ और कैसे हुआ। जो हुआ, इसके आगे और पीछे की खबर बाद में बाहर आएंगी। शिवराज सिंह के वहां चुनाव है, उसका फायदा बीजेपी को मिलता। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि राजस्थान बीजेपी की किस्मत खराब है कि माथुर को जगह नहीं मिली। या यूं भी कहा जा सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस की किस्मत अच्छी है कि माथुर को कुर्सी नहीं मिली। सब कुछ तय था, फिर भी नहीं मिली।

राजनाथ की नई टीम में मोदी का दबदबा साफ दिख रहा है। मोदी संसदीय बोर्ड में शामिल होने वाले अकेले मुख्यमंत्री बनने के साथ केंद्रीय चुनाव समिति में भी शामिल हो गए हैं। अपने खासमखास अमित शाह को महासचिव बनवा दिया। लेकिन दूसरे खासमखास माथुर को नहीं बनवा पाए। जबकि किरण माहेश्वरी जैसी कोई खास रिजल्ट न देनेवाली जिला स्तर की नेता बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गई। वसुंधरा राजे की मेहरबानी से किरण पहले महासचिव थी। वह राजस्थान की हैं और उनकी आका वसुंधरा राजे भी जानती है कि किरण का राजस्थान में कोई बड़ा वजूद नही है। फिर भी वह पद पा गई। अपना मानना है कि माथुर को राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका न देकर राजनाथ सिंह ने राजस्थान में आफत मोल ले ली है। माथुर वजनदार नेता है। पहले भी महासचिव रह चुके हैं। माना जा रहा है कि माथुर को केंद्र में कोई बड़ा पद न देकर बीजेपी ने एक जनाधार वाले नेता का अपमान किया है। यह भी माना जा रहा है कि उनको राजनाथ ने अपनी टीम में शामिल नहीं किया, इसका खामियाजा राजस्थान में आनेवाले चुनाव में बीजेपी को जरूर भुगतना पड़ सकता है। समूचे राजस्थान में वसुंधरा राजे के मुकाबले का जनाधार वाला कोई नेता अगर बीजेपी में है, तो वह ओमप्रकाश माथुर को ही माना जाता ही है। हालांकि माथुर फिलहाल राज्यसभा में हैं और होने को वसुंधरा राजे के साथ ही है। पर, राजनीति में कब, कौन, कैसे, किसके साथ चल देता है, यह कौन जानता है।

बीजेपी की राजनीति में कोई नहीं जानता कि इस टीम को बनाना राजनाथ सिंह के लिए कितना मुश्किल भरा था। सारी प्रादेशिक संतुलनीय समस्याओं का समाधान निकाल लेने के बाद भी कुछ पेंच ऐसे फंसे रहे कि लाख कोसिश करने का बावजूद शनिवार की शाम तक उनका समाधान नहीं निकल पाया। कौन महासचिव होगा और कौन उपाध्यक्ष इसको लेकर भी खींचतान खूब चली। बीजेपी इस जंमग को अगर मुगले आजम फिल्म के रूप में देखा जाए तो कभी बीजेपी के लौहपुरुष रहे लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली तीनों सामूहिक रूप से शहंशाह की भूमिका में हैं, संघ सलीम हैं और राजनाथ सिंह की दशा इस वक्त अनारकली जैसी हो चली है। सलीम उन्हें मरने नहीं दे रहा और शहंशाह उन्हें जीने नहीं दे रहा। अनारकली की जिंदगी की इस जंग में राजस्थान बीजेपी चुनाव के लिए कमर कस रही है, तो उसको अपने धुरंधर नेता ओम प्रकाश माथुर के किसी भी पद पर नहीं होने का खामियाजा भुगतने को कमर कस कर तैयार रहना चाहिए।