Thursday, May 16, 2013


इक मोदी, इक राहुल भैया कौन बनेगा हमरा खिवैया

-निरंजन परिहार-

नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात की सीमाओं में नहीं समा रहे थे। वैसा भी अब गुजरात में उनके लिए करने को बहुत कुछ नहीं बचा है। जितना कुछ कर सकते थे, वह कर चुके। गुजरात के वे बेताज बादशाह हैं, उनका एकछत्र राज है और प्रदेश की राजनीति के सारे रंग उनसे ही बनते हैं, उन्हीं से बिगड़ते हैं। सारी राजनीति उनसे शुरू होकर उन्हीं पर खत्म होती है। अब वे देश पर नहीं तो देश के दिलों पर तो राज करने को बेताब हैं ही। फिर बीजेपी ने उनको वह तख्ता भी दे दिया है। राजनाथ सिंह का कुनबा बन गया है और मोदी अकेले सीएम हैं, जो संसदीय बोर्ड में बिठाए गए हैं। शिवराज सिंह एमपी में बढ़िया काम कर रहे हैं, पर बाहर खड़े हैं। मोदी गुजरात में फिलहाल तो अजेय हैं। वहां सब पाना ही पाना है। लेकिन देश के स्तर पर वे अगर बहुत कुछ पाएंगे, तो उनके पास खोने को भी बहुत कुछ है।

कर्नाटक में चुनाव हैं। राहुल गांधी वहां की कमान संभालेंगे। बीजेपी की हालत वहां उसके अपने ही सपूत येदुरप्पा ने खराब कर रखी है। हाल ही के मुंसपल्टी चुनाव में बीजेपी वहां तीसरे नंबर पर धकिया गई है। कांग्रेस फायदे की आस में इसलिए भी है। बीजेपी की फूट का फायदा तो मिलेगा। फिर वहां के मुसलमानों का साथ भी मिलेगा। कर्नाटक में मुसलिम मतदाता भी बहुतायत में हैं। राहुल गांधी को वहां भेजा जा रहा है। कांग्रेस समझदार पार्टी है। राशिद अल्वी इसीलिए कह रहे थे कि मोदी को संसदीय बोर्ड में तो भले ही बीजेपी ने शामिल कर दिया, पर उनकी असली परीक्षा तो कर्नाटक में होगी। दरअसल, राजनीति में लोगों को इसी तरह से फंसाया जाता है। राष्ट्रीय नेता होने की वजह से मोदी को कर्नाटक जाना चाहिए। अगर वे न जाएं, तो कांग्रेस कहेगी कि डर गए। और जाएं, फिर बीजेपी हार जाए, जो कि तय है, तो कांग्रेस कहेगी कि राहुल गांधी ने मोदी को कर्नाटक में पछाड़ दिया।

राजस्थान में भी बीजेपी की हालत कोई बहुत ठीक ठाक नहीं है। वसुंधरा राजे के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जिला और ब्लॉक स्तर तक के संगठन खेमों में बंट गए हैं। वहां भी चुनाव हैं। मोदी के लिए ऐसी एक नहीं, कई चुनौतियां हैं। लेकिन उनकी पहली बड़ी परीक्षा तो इसी बात में होगी कि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपने घनघोर आलोचकों से किस तरह निपटते हैं। हालांकि, नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर अमर सिंह और हमारे राजस्थान में चंद्रराज सिंघवी की तरह कोई राजनीतिक जोकर तो हैं नहीं, कि उनको अपना भविष्य पता नहीं हो। लेकिन यह वाकई बहुत दिलचस्प दृश्य होगा कि कांग्रेस, मोदी को लेकर क्या रणनीति अपनाती रही है। क्योंकि मोदी के मामले में उसकी रणनीति अकसर फेल रही है। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी का मुद्दा कांग्रेस की चुनावी रणनीति में प्रमुखता से शामिल होगा। मोदी के नए राष्ट्रीय अवतार को लेकर कांग्रेस के राशिद अल्वीयों और शकील अहमदों ने जैसी शुरुआती प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, उनसे तो यही लगता है कि कांग्रेस मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों को लेकर काफी आक्रामक होने वाली हैं।

अपना मानना है कि कांग्रेस छोटी छोटी गलतियां बहुत करती है। जो गलती कर्नाटक में राहुल को भेजने की बात पर अब वहां के नजरिए से मोदी के कद को नापने के कोशिश में कर रही है, वैसी ही अनंत भूल, चूक, गलतियां, कांड और महाकांड कर कर के गुजरात में मोदी को महामोदी बना चुकी है। अपन पहले भी कहते रहे हैं और अब भी कहते हैं कि कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी वह योद्धा हैं, जिसने पता नहीं जीवन के किस मौके पर यह सीख लिया था कि वार करनेवाले के हथियार को ही अपनी ढाल में कैसे तब्दील किया जाना चाहिए। सो, कांग्रेस को कम से कम फिलहाल तो जरा धीरे चलना चाहिए। बेचारे हमारे राहुल भैया को सडक पर चलना सीखने से पहले ही सीधे रोड़ रोलर से भिड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।