Thursday, May 16, 2013


बीजेपी का तो अब भगवान ही मालिक है

-निरंजन परिहार-

राजनाथ सिंह की तकलीफें कम होनेवाली नहीं हैं। कभी बीजेपी के लौहपुरुष के रूप में बहुत विख्यात कर दिए गए लालकृष्ण आडवाणी से उनको लोहा लेना पड़ रहा है। अब, जब कर्नाटक की हार से उबरने की कोशिश में बीजेपी केंद्र सरकार के सर पर सवार होने की तैयारी में सरदारजी का सर मांग रही है, तो पता नहीं आडवाणी ने क्या सोचकर यह कह डाला है कि कर्नाटक में जीतते तो उन्हें आश्चर्य होता। अरे साहब, चुप रहिए न। समूची बीजेपी जब, हार गए तो हार गए - अब आगे की सुधि लेय, की तर्ज पर चल रही है तो क्यूं पीछे खींच रहे हो लौहपुरुषजी। जिस पार्टी को खून पसीने से सींच कर देश की सत्ता में लाया, उसके कर्नाटकी शोककाल में भी इस तरह से भड़ास निकालने का क्या मतलब। अपना मानना है कि आडवाणी बुढ़ापे में अपनी ऊर्जा व्यर्थ बहा रहे हैं।

वैसे, जिस पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी जैसे बहुत सीनियर लेवल के नेता भी अपनी ही पार्टी को शर्म में डालने में लगे हों, उस बीजेपी का अध्यक्ष पद वैसे भी मुसीबतों के किसी ताज से कम नहीं है। हालांकि पिछली बार जब राजनाथ सिंह बीजेपी के अध्यक्ष बने थे, तब भी उन्हें इसी तरह की बहुत सारी मुसीबतें झेलनी पड़ी थीं। मगर पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल जीतने के बाद उन्होंने किसी तरह अपनी कुर्सी बचा ली। लेकिन इस बार उनकी असली परीक्षा राजस्थान, दिल्ली, एमपी और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में होगी। वहां से जैसे तैसे बचकर निकल गए तो, उसके तत्काल बाद लोकसभा चुनाव है। वह उनकी अग्नि परीक्षा का वक्त होगा। उस दौरान सबका ध्यान खास तौर पर यूपी पर होगा। यूपी राजनाथ सिंह का अपना प्रदेश है। बीजेपी को केंद्र में अपनी सरकार बनाने के लिए यूपी से सबसे ज्यादा सीटें चाहिए। वैसे तो कल्याण सिंह जिस किस्म के नेता हैं, उसके हिसाब सो कोई उनका मुंह बंद नहीं कर सकता। लेकिन राजनीति में ही नहीं, निजी जिंदगी में पुराना रुतबा रह रहकर जोर मारता रहता है, सो कल्याणसिंह कभी भी पिछला इतिहास दोहरा सकते हैं।

पिछली बार तो पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने अपने जूनियर रहे और राजनाथ सिंह से साफ कह दिया था कि सिर्फ भाषणबाजी से वे बीजेपी को सत्ता में नहीं ला सकते। राजनाथ के सामने कल्याण ने अपने चुनावी समीकरण पेश करते हुए कहा था कि अगर बीजेपी को केंद्र में अपनी सरकार बनाती है तो उसे यूपी में कम से कम 35 लोकसभा सीटें चाहिए और इसके लिए कम से कम 250 किलो खून - पसीना बहाना पड़ेगा। कल्याणसिंह ने जब यह कहा था, राजनाथ सिंह तब भी बीजेपी के अध्यक्ष थे, और इस बार भी अध्यक्ष हैं। पर, कल्याण सिंह बीजेपी की नैया डूबने के बाद पार्टी से निकलकर अपनी भारतीय जनक्रांति पार्टी की क्रांति हार कर फिर से कमल के फूल पर खड़े होकर खिल रहे हैं। पर, बीजेपी के सत्ता में आने के लिए यूपी में 35 सीटों का सवाल यक्ष प्रश्न की तरह फिर वहीं का वहीं और जस का तस जीवित हैं। समीकरण के हिसाब से बीजेपी को लगभग आधी सीटें अपने कब्जे में करनी पड़ेगी।

यहां यह जरूर याद किया जाना चाहिए कि कल्याण सिंह जब यूपी के सीएम थे, तो राजनाथ सिंह उनकी सरकार में शिक्षा मंत्री थे। अपने जूनियर का दो दो बार पार्टी अध्यक्ष बनकर अपने से भी बहुत बड़ा बन जाना हर किसी को अखरता है। फिर वह तो कल्याण सिंह हैं, जिनका यूपी में बचा खुचा जो भी जनाधार है, वह भी राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद राजनाथ सिंह पर बहुत भारी है। सन 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी, तो बीजेपी की 183 सीटें थी। लेकिन फिलहाल उसके 116 सांसद ही लोकसभा में हैं, उनमें से भी यूपी में तो सिर्फ 10 सीटें ही हैं। हालत बहुत खराब है। उस पर भी लौहपुरुषजी जैसे बड़े आदमी जब कांटे बो रहे हैं, तो कहा जा सकता है कि बीजेपी का अब भगवान ही मालिक है। बात गलत तो नहीं ? (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)