Thursday, May 16, 2013


अशोक गहलोत अंगार हैं, बाकी सब भंगार हैं

-निरंजन परिहार-

राजस्थान की कांग्रेसी राजनीति में अशोक गहलोत ही अकेले सरदार भी हैं और असरदार भी। और यह भी सभी जानते हैं कि उनकी पार्टी का बाकी कोई भी नेता उनके औने – पौने के आस पास नहीं है। राजस्थान में तो थे ही समूचे देश की राजनीति में अब तक सिर्फ भैरौं सिंह शेखावत ही अकेले ऐसे नेता रहे हैं, जिनकी अपने पूरे प्रदेश में सार्वभौमिक रूप से राजनीतिक साख थी, हर जिले में राजनीतिक वजन था और हर पंचायत स्तर पर पार्टी के साथ साथ उनके अपने कार्यकर्ता भी थे। गहलोत भी बिल्कुल शेखावत की तर्ज पर ही पूरे प्रदेश के नेता हैं जिनके लिए पार्टी से पार जाकर लोगों के दिलों में जगह है। शेखावत जब तक हम सबके बीच रहे, कांग्रेस के लोग भी राजस्थान का सबसे बड़ा नेता उन्हीं को मानते थे। उसी तरह बीजेपी के लोग भी खुलकर तो नहीं पर यह स्वीकारते जरूर हैं कि कांग्रेस में राजस्थान में गहलोत से बड़ा नेता कोई और नहीं है। इस सत्य के सार्वजनिक होने के बावजूद पता नहीं क्यों कुछ लोग बहुत कूद फांद करते रहते हैं।

यह अपने आप में बहुत अचंभे की बात थी ही कि सारी कोशिशों के बावजूद जब 2008 में राजस्थान में इस बार की चल रही सरकार बनाने के लिए कांग्रेस की सांसें फूल रही थीं, तो बसपा की ईंट और निर्दलियों के रोड़े को मिलाकर अशोक गहलोत ने ही भानुमति के कुनबे को जोड़ने की जोरदार जुगत की थी। लेकिन उससे भी ज्यादा अचंभित करनेवाली बात यह थी कि गहलोत की नवजात सरकार को परेशानियों का ज्यादा सामना प्रतिपक्ष के बजाय अपनी ही पार्टी के मुखौटा पहने लोगों से करना पड़ा। सीपी जोशी वैसे तो राजनीतिक रूप से कर्नल सोनाराम जैसे अपने गहलोत विरोधी साथी जितने भी ताकतवर कभी नहीं रहे, लेकिन फिर भी उन विधायकों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जिन्हें मंत्री बनने की उम्मीद थी, या आस लगाए भटक रहे हैं। वैसे, मंत्री बनने की उम्मीद किसे नहीं होती। सरकार की जिंदगी में कम से कम छह – सात महीने अभी बाकी हैं। सो, कुछ विधायक उम्मीद की नौकाओं पर सवार होकर सीपी नामक उस राजनीतिक टापू पर पहुंच रहे हैं, जिसका खुद का कोई बहुत बड़ा आधार नहीं है। मेवाड़ के कांग्रेसी सागर में जब गिरिजा लहरें आती हैं तो सीपी का टापू हर बार हिलता नजर आता है। राजस्थान में तो छोड़ दिजिए, सिर्फ मेवाड़ की ही बात कर लें तो वहां कांग्रेस में आज भी सीपी जोशी के मुकाबले गिरिजा व्यास कई गुना ज्यादा ताकतवर हैं।

पता नहीं सीपी जोशी की समझ में यह क्यूं नहीं आ रहा है कि केंद्र सरकार में करीब साढ़े तीन साल से केबीनेट मंत्री होने के बावजूद वे अभी तक न तो राजनीतिक रूप से इतने परिपक्व हो पाए हैं और न ही उतने ताकतवर, जितने 32 साल पहले सन 1982 में केंद्र सरकार में उप मंत्री होने के बावजूद अशोक गहलोत हुआ करते थे। गहलोत तब भी प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के न केवल लाडले हुआ करते थे, बल्कि उनका विश्वास भी प्राप्त था। तब तो हरिदेव जोशी, नवल किशोर शर्मा, शिवचरण माथुर, राजेश पायलट, परसराम मदेरणा, खेतसिंह राठौड़, हीरालाल देवपुरा, चंदनमल बैद, शीशराम ओला जैसे बहुत सारे लोग बहुत ताकतवर हुआ करते थे। गहलोत तब भी इन सब पर बहुत भारी पड़ते थे। लेकिन सीपी जोशी तो इन सबके मुकाबले बहुत नए हैं। इसलिए जोशी के लिए भले ही ये राजनीतिक खेल नए हों, पर गहलोत ये सारे ही खेल देखने और झेलने के पुराने अनुभवी हैं।

बीजेपी भले ही राजस्थान में कांग्रेस की पराजय बता रही हो। पर, अभी करीब सात - आठ महीने का वक्त बाकी हैं, और कांग्रेस में भीतर के घात – प्रतिघात भी कोई कम नहीं होने हैं। पर अशोक गहलोत ही कांग्रेस की नाव को इस बार भी किनारे लगाएंगे। क्योंकि बहुत सीधे, सरल और सादे दिखने के बावजूद अशोक गहलोत ही असल अंगार हैं, बाकी सब तो भंगार हैं। भरोसा न हो तो राजस्थान में किसी से भी पूछ लीजिए। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)