Thursday, May 16, 2013


लेकिन इस जनम में तो हार मानने वाले नहीं हैं करुणानिधि

-निरंजन परिहार-

करुणानिधि की ताकत को सलाम और सरकार की ताकत पर लानत। करुणानिधि के पास समर्थन था, सो वापस ले लिया। वही उनकी ताकत भी था। सरदारजी की सरकार जुगाड़ के जादू पर जिंदा है। उधार की सांसों वाली सरकार ममता बनर्जी का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती थी, वहां 25 हजार वोल्ट की बिजली का झटका है। लेकिन जगन मोहन रेड्डी ने बगावत की, तो सीबीआई से शिकंजे में कसे हुए जेल में हैं। नितिन गड़करी ने मुंह खोला, तो सीबीआई शुरू हो गई। ताजा मामला करुणानिधि का है। जैसे ही सरकार से समर्थन वापस लिया, सीबीआई ने अपनी फाइलें खोल दीं।

कोई 15 साल पहले परिवार के घनघोर विरोध के बावजूद अचानक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन गए करुणानिधि आज भी अगर प्रासंगिक हैं, तो सिर्फ इसलिए हैं कि उन्होंने नेपथ्य की राजनीति को उन्होंने एक बार फिर से मंच पर लाकर खडा कर दिया है। और भी मंच भी वैसा ही सजाया, जैसा वे चाहते थे। बेटे स्टालिन को अपनी राजनीतिक दुकानदारी की चाबी सौंपकर रिटायर होने की घोषणा कर दी थी। सोचा था कि लाखों करोड़ के मालिक होने के अहसास के साथ बुढापा सुंदर सपने की तरह कटेगा। लेकिन कभी आधी रात में जयललिता के पुलिसवाले उनको नींद से उठाकर हवालात में बंद कर देते हैं, तो कभी सीबीआई सपने को तोड़ देती है। करुणानिधि सिर्फ 14 साल की उम्र में उन अन्नदुराई के भक्त हो गए थे, जिन्होंने हिंदी विरोध के नारे पर सत्ता में आने का रास्ता साफ किया। फिल्मों में पटकथा व संवाद लिखने का काम तो करुणानिधि ने बहुत बाद में शुरू किया। लेकिन वहां भी हिंदी विरोध और तमिल गौरव को अपनी कहानियों का प्रमुख विषय बनाए रखा।

जयललिता तो खैर बहुत बाद में लाजवंती नायिका की तरह तमिल सिनेमा में आईं और तब के सुपर स्टार व करुणानिधि के दोस्त एमजी रामचंद्रन की सखी बन गईं। करुणानिधि के साथ एमजी रामचंद्रन भी राजनीति में घुसे। करुणानिधि को पहली बार सीएम बनाने वाले भी रामचंद्रन ही थे, पर अपने निहायत निजी श्रृंगारिक कारणों से जयललिता खुद को एमजी रामचंद्रन का सच्चा उत्तराधिकारी मानती रहा, जो बाद में उन्होंने साबित भी किया। भले ही उसके बाद भी जयललिता फिल्मों में करुणानिधि के लिखे संवाद बोलती थीं लेकिन करुणानिधि ने खुद को किसी भ्रम में कभी नहीं रखा। जयललिता अब सीएम हैं और सभी जानते हैं कि करुणानिधि पर सीबीआई के शिकंजे से वह बहुत खुश हैं क्योंकि करुणानिधि का जीवन नर्क से भी बदतर होने से कम वह कुछ नहीं चाहती।

बीते कई सालों का इतिहास देखें तो कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने करुणानिधि की राज्य सरकारें अकारण भंग की हैं। मुख्यमंत्री रहने के दौरान हुए किसी मामले के चक्कर में पुलिस ने इतने बडे तमिल नेता को घर जाकर सुबह पांच बजे न सिर्फ गिरफ्तार किया था, बल्कि बाकायदा धक्के भी मारे थे। यह सब टीवी कैमरों के सामने हुआ। बाद में कांग्रेस के शासन में ही उनके सबसे चहेते मंत्री ए राजा को पद से हटाकर सरकार ने जेल भेज दिया। साथ में करुणानिधि की बेटी कन्नीमोजी को भी सलाखों के पीछे कर दिया। किसी बूढ़े बाप की इससे बड़ी और बेचारगी क्या हो सकती है कि उसी के समर्थन से बनी सरकार उसी की लाडली को जेल भेज दे और उस सुखी घर संसार बसा चुकी बेटी के अपने साथा मंत्री के साथ इश्क के चर्चे पूरी दुनिया में सुनाई दे। कन्नीमोजी को अब भी सत्ता के गलियारों में ए राजा की रानी के रूप में ही देखा जाता है। ऐसे में करुणानिधि राजनीतिक तौर पर कांग्रेस के साथ अपनी रिश्तेदारी मजबूरी में ही निभा रहे थे। पर अब रिश्ता टूट गया। लेकिन सरकार की पोल भी खुल गई। विपक्ष कहता रहा है और सरकार भी भले ही कितनी भी सफाई दे, लेकिन यह साफ हो गया है कि वह सीबीआई का दुरूपयोग करती है। हालात इसकी गवाही के लिए काफी हैं। सीबीआई अगर सरकार का हथियार नहीं होती तो, पहलवान मुलायमसिंह और हाथी की ताकतवाली मास्टरनी मायावती को किसी पागल कुत्ते ने काटा है जो जब- तब सरकार चरण चूमते दिखाई देते हैं।