Friday, May 17, 2013


कटारिया सूर्य हैं, जिसमें से कई किरण निकलती हैं

-निरंजन परिहार-

गुलाब चंद कटारिया एक बार फिर खबरों में हैं। खबर यह है कि सीबीआई उन पर एक ऐसे मामले में शिकंजा कस रही है, जिसमें उनके शामिल होने पर कोई भी आसानी से ते भरोसा नही कर सकता। वे हैं भले ही बीजेपी में लेकिन पार्टी की सीमाओ के पार जाकर कटारिया समूचे राजस्थान में बहुत सम्मानित नेता के तौर पर विख्यात हैं। छवि बहुत उज्ज्वल है और जनाधार भी बहुत व्यापक। फिलहाल दूसरी बार प्रदेश में विपक्ष के नेता हैं और जब बीजेपी में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर नहीं थे, तब भी वे वसुंधरा राजे की बराबरी के स्थान पर विराजमान थे। इसकी वजह उनका आदर्श जीवन तो है ही। उनकी ईमानदारी, चरित्र और निष्ठा की वजह से भी बहुत हद तक जनता उनके समर्थन में खड़ी रही है।

पर, बात जब मेवाड़ की करते हैं तो कुछ लोग एक सोची समझी रणनीति के तहत किरण माहेश्वरी को कटारिया की तुलना में खड़ा करते हैं। राजनीति में विरोध में खड़े होना अलग बात है और बराबरी में खड़े होने के लिए विरोध करना अलग। किरण की हर कोशिश कटारिया के विरोध में खड़े होने के लिए नहीं बल्कि विरोध करके उनकी बराबरी में खड़े होने की लगती रही है। होने को भले ही किरण माहेश्वरी अब बीजेपी की उपाध्यक्ष और पहले महासचिव रही हों, पर वह गुलीब चंद कटारिया ही थे, जिनने किरण को उंगली पकड़कर राजनीति में लाया और चलना सिखाया। सो बात अगर तुलना की की जाए तो कटारिया से किरण माहेश्वरी की तुलना तो कम से कम नहीं की जा सकती। कहां गुलाब चंद कटारिया का कद और कहां किरण माहेश्वरी। एक बार विधायक और एक बार सांसद चुन जाने भर से कोई किसी की बराबरी में नहींआ सकता। राजनीति में कटारिया का कद पाने के लिए त्याग, तप और समर्पण का जीवन बरसों तक जीना पड़ता है। हालांकि किरण माहेश्वरी बीजेपी की महिला नेताओं की पहली पंक्ति में शामिल होने की कोशिश करह रही है लेकिन कोई बहुत मजबूत प्रयास नहीं होने की वजह से भले ही राष्ट्रीय महामंत्री और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद तक पहुंच गई। पर, अरावली की पहाड़ियों के पार आज भी न तो कोई उनको चोहरे से जानता है और न ही नाम से। भरोसा न हो तो किसी से पूछकर तसल्ली कर लीजिए। कटारिया जैसे भले मानुस के लिए राजनीति का यह दौर इसीलिए अचानक असहज हो जाता है। लेकिन राजनीति में यह नया नहीं है कि जिनको आपने अंगुली पकड़कर चलना सिखाया, वे ही आंख दिखाने लग जाएं, कटारिया यह भी अच्छी तरह से जानते हैं।

फिर किरण माहेश्वरी को भी अपनी राजनीतिक जगह और औकात समझनी चाहिए। वे आम कार्यकर्ताओं की मेहनत पर खड़ी होकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और महामंत्री के पद तक पहुंची हैं। वसुंधरा राजे की वरदहस्त होने का यह तो मतलब नहीं होता कि आपको वरिष्ठ नेताओं को नीचा दिखाने का लाइसेंस मिल गया। किरण माहेश्वरी पता नहीं यह क्यों भूल जाती है कि कटारिया के त्याग, और तप का पार्टी को खड़ा करने और बड़ा करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। उसी तप और त्याग के बल पर पले कार्यकर्ताओं की मजबूती पर वह इतरा रही है। किरण को यह भी याद रखना चाहिए कि आज राजनाति में या समाज में उनकी थोड़ी बहुत जो भी पहचान है, वह बीजेपी की बदौलत है। यह सब बीजेपी ने उनको दिया है, बीजेपी को उन्होंने कुछ भी नहीं दिया। जबकि कटारिया ने अपने खून पसीने और मेहनत से बीजेपी को सींचा है। फिर राजनीति में तो कोई भी किसी का अपमान करके तो कमसे कम एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाया।

वैसे अपना मानना है कि किरण माहेश्वरी को सबसे पहले स्वयं के बारे में सोचना चाहिए। वे राजनीति में उन श्रीमती वसुंधरा राजे की मेहरबानियों पर पल रही हैं, जो किसी को भी बहुत लंबे समय तक अपने साथ रखने से परहेज करती रही हैं। और यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि किरण आज जिस पद पर हैं, वहां पहुंचने में हेमामालिनी जैसी अंतर्राष्ट्रीय शख्सियत को पूरा जनम गुजर गया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया जैसी दैदिप्यमान नेता अपने जीवन के आखरी मुकाम पर पार्टी में जिस पद पर पहुंची, वहां किरण माहेश्वरी बावन साल की उमर मे ही पहुंच गई हैं। तो, यह सब कोई उनके जीवन की मेहनत और पार्टी में योगदान की बदौलत नहीं बल्कि इस वजह से हैं क्योंकि राजनीति में मेहरबानियों की भी अपनी अलग माया है। कब कौन किस पर कैसी कैसी मेहरबानियां करता है, वह किसी सै छुपा नहीं रहता। फिर, किरण माहेश्वरी को यह भी हमेशा याद रखना चाहिए कि वे एक महिला हैं। लोग तो हर किसी के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं। किसी को नहीं छोड़ते। फिर राजनीति में सक्रिय महिलाओं के बारे में उनके आगे बढ़ने और ऊंचे पदों पर आने को लेकर जो बातें आम तौर पर कही सुनी जाती हैं, वे सारी की सारी बातें उनके बारे में भी लोग कहते ही हैं। क्योंकि राजनीति में बुरे लोगों की जमात का ईभी अपना अलग संसार है। इसीलिए राजनीति में महिलाओं का काम करना और अपने सम्मान को बचाए रखना बहुत कठिन है। फिर यह तो मेवाड़ का मामला है। किरण और कटारिया दोनों का घर मेवाड़ है। वह मेवाड़, जहां कटारिया के कद को पाने को लिए लोग तरसते हैं। राजस्थान की राजनीति में कटारिया वह सूर्य है, जिसमें से अब तक कई किरणें निकली हैं, उनमें से किरण माहेश्वरी तो सिर्फ एक है। इसीलिए कटारिया जैसे नेता का तत्व और महत्व बीजेपी समझती है। पर, कोई एक किरण नहीं समझना चाहे तो क्या फर्क पड़ता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)