Thursday, May 16, 2013


बीजेपी गुंडे मवालियों की पार्टी नहीं है भाई साहब !

- निरंजन परिहार-

बीजेपी मुसीबत में है। यह मुसीबत नेतृत्व की हैं। पार्टी के हाल, हवाल और हूलिया देखकर आपके मन में भी एक सवाल जरूर आता होगा कि आखिर बीजेपी को चला कौन रहा है? अपना यह लिखा पढ़कर बीजेपीवालो को गुस्सा आ सकता है। उनका हक भी बनता है। सच सुनने पर गुस्सा तो आता ही है। लेकिन सच तो सच है। कांग्रेस को सोनिया गांधी चला रही है। भले ही राहुल गांधी अभी कोई बहुत परिपक्व नहीं है, फिर भी वे कांग्रेस को चलाने में अपनी माताजी का बोझ हल्का कर रहे हैं। यह अलग बात है कि कभी कभी वे बचकाने बयानों से माता का बोझ बढ़ा भी देते हैं। पर, फिर भी यह कभी नहीं लगता कि कांग्रेस को कौन चला रहा है। लेकिन बीजेपी के मामले में यह सवाल हर बार जिन्न की तरह आकर खड़ा हो जाता है।

सभी जानते हैं कि परदे के पीछे संघ परिवार बीजेपी के खेल खेलता रहता है। पार्टी में किस पद पर कौन रहेगा, यह भी वही तय करता है। लेकिन सामने नहीं आता। मामला सिर्फ यही है कि या तो संघ परिवार डरपोक हैं, और या फिर बीजेपी को चलाने की बात स्वीकारने में शर्म आती है। अपना मानना है कि जो काम करने में हमें शर्म आती हो, वह करना ही नहीं चाहिए। लेकिन संघ परिवार भी अजीब है। साफ छुपता भी नहीं और सामने भी नहीं आता। कुछ दिन पहले की बात करें, तो जब अध्यक्ष पद से हटाने का नीतिन गड़करी वाला लफड़ा चल रहा था तो पार्टी की बहुत फजीहत हुई। कोई दूसरी पार्टी होती, तो अपने अध्यक्ष से खुद को कब का अलग कर लेती। हालांकि खुद बीजेपी ने भी बंगारू लक्ष्मण के मामले में तो ऐसा ही किया था। बंगारू बेचारे दलित थे, सो पिस गए। पर बीजेपी गड़करी के साथ बंगारू जैसा नहीं कर पाई। मामला संघ के समर्थन का था। बीजेपी आज जिस बोझ से दबी जा रही है, वह पार्टी की नेतृत्वहीनता का बोझ है।

दरअसल, मामला यही है कि बीजेपी में वो ताकत नहीं है, जो कांग्रेस में है। आपको अपनी इस बात पर भरोसा नहीं हो तो देखिए कि सोनिया गांधी के दामाद, राहुल गांधी के बहनोई और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगे, तो कांग्रेस पार्टी ने वाड्रा को शुद्ध करार दिया! रॉबर्ट वाड्रा कांग्रेस के पदाधिकारी भी नहीं है। फिर भी पूरी कांग्रेस उनके साथ खड़ी रही। आप भी वाड्रा के कलंक को भूल गए होंगे। शरद पवार के साथ भी ऐसा हुआ, और उनके भतीजे अजित पवार के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही। पूरी एनसीपी दोनों के साथ ठसके के साथ खड़ी रही। लेकिन जब नितिन गडकरी को लफड़े से निकालने के लिए संघ परिवार ने गुरूमूर्ति के जरिए क्लीन चिट दिलवाई, तो भी बीजेपी में ही बवाल सबसे पहले हुआ।

यह उलझन है। बहुत बड़ी उलझन। ऐसी उलझन कि डोर हर बार सुलझने के बजाय कुछ ज्यादा ही उलझ जाती है। इधर नरेंद्र मोदी, उधर संघ परिवार। इधर पूरी बीजेपी और लालकृष्ण आडवाणी। इधर सुषमा स्वराज और उधर अरुण जेटली। बेचारे राजनाथ सिंह तो अध्यक्ष होने के बाद भी कहीं पिक्चर में भी नहीं आ पाते। मामला कुल मिलाकर घात - प्रतिघात का है। अटलजी और आडवाणी जी के दौर में बीजेपी पर संघ परिवार इतना हावी नहीं था। बीजेपी का जो कबाड़ा होना था, वह हो चुका। यशवंत सिन्हा का विद्रोह, जेठमलानी के तेवर, जसवंत सिंह का रुख और ऐसे ही बहुत खेल अभी तो और दिखेंगे। क्योंकि होने के बावजूद बीजेपी का कोई असल माई बाप नहीं है। और जो है, वह देश के सामने साफ साफ स्वीकारने को तैयार नहीं है। वैसे, पूरे देश को पता है कि बीजेपी का असल माई बाप संघ परिवार ही है। सो, अपना मानना है कि संघ परिवार को अब तो कम से कम बीजेपी को खुलकर स्वीकारने से डरना नहीं चाहिए। संघ परिवार उससे इस तरह की दूरी बनाकर क्यों रखे हुए है, बीजेपी कोई गुंडे मवालियों की पार्टी थोड़े ही है। (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)