Thursday, May 16, 2013


जयललिता का अभिनय और कांग्रेस से दोस्ती की नौटंकी

-निरंजन परिहार-

जयललिता को पता नहीं क्या हो गया है। बहकी बहकी बातें करने लगी है। वैसे जयललिता कब क्या कह दें, या कर दें, कोई गारंटी नहीं ले सकता। पर, कांग्रेस से फिलहाल तो उनका दूर दूर तक लेना देना है और न ही फिलहाल कांग्रेस ने उनको या उनकी सरकार को सताया है। फिर भी कह रही है कि कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए। सीधे पार्टी को ही खतम करने की बात। राजनीति में शायद ऐसा भी होता ही होगा, अम्मा इसीलिए हुंकार भर रही है। कांग्रेस खतम हो जाए, जिससे हमारे देश के कई सारे नेता बहुत सारी भवबाधाओं से मुक्ति पा ले। न रहे बांस न बजे बांसुरी। जैसे, कांग्रेस ही नहीं रहेगी, तो देश तो जैसे उछलकर सीधे अम्मा की गोद में ही आ जाएगा। देश नहीं जैसे कोई फुटबॉल हो गया।

पता नहीं किस मंशा में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जे. जयललिता ने कांग्रेस को भंग करने की अपनी बात को साबित करने के लिए बहुत सारे साक्ष्य भी खोज लिए। बोली, कि देश की स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी को भंग करना चाहते थे। मामला बढ़ गया और विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों ने उनसे यह साबित करने की मांग की तो दूसरे दिन अम्मा आक्रामक होकर विधानसभा में आईं और जो बहुत सारे दस्तावेज भी लाई, उनमें से ‘दी कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी-वॉल्यूम 90’ के वे कुछ अंश पढ़े, जिनमें महात्मा गांधी ने यह भावना व्यक्त की थी कि देश आजाद हो गया है, अब कांग्रेस की जरूरत नहीं है। विधानसभा में जयललिता ने कहा कि भारत के विभाजन के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से अपनाए तरीकों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिल चुकी है, अब कांग्रेस का उसके वर्तमान स्वरूप में यानी देश को आजाद कराने वाले एक हथियार के रूप में निश्चित समय से अधिक वक्त तक इस्तेमाल हो चुका है। कांग्रेस का जन्म ही देश को आजाद कराने के लिए हुआ था, और अब देश आजाद हो चुका है, सो इसकी कोई जरूरत नहीं है। कांग्रेस को अब समाप्त कर देना चाहिए। हालांकि विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों ने दावा किया था कि महात्मा गांधी ने कभी इस संदर्भ में कुछ नहीं कहा, लेकिन जयललिता की ओर से आज यह दस्तावेज पेश किए जाने के बाद कांग्रेस के सदस्य निरुत्तर हो गए।

विवादों को जन्म देना जयललिता का शगल है और उनसे घिरे रहना उनकी किस्मत का हिस्सा। विवाद शायद इसीलिए जयललिता का पीछा नहीं छोड़ते। पर, इस बार समझ में नहीं आ रहा है कि जयललिता को अचानक कांग्रेस का यह सपना क्यों आया। इस नए विवाद को जन्म देने के पीछे भी कोई लंबी रणनीति हो सकती है। वैसे जयललिता रणनीतियों की भी उस्ताद रही हैं। वे एक सोची समझी रणनीति के तहत ही अपनी हीरोइन मां का दामन थामकर किसी लाजवंती नायिका की तरह तमिल सिनेमा में आईं और एमजीआर के नाम से बहुत प्रसिद्ध तब के वहां के सुपर स्टार एमजी रामचंद्रन की परम सखी के रूप में छा जाने की रणनीति में कब सफल हो गईं, किसी को पता भी नहीं चल सका। बाद में रामचंद्रन राजनीति में घुसे। चूंकि वे सुपर स्टार थे, इसलिए उनके नाम से पार्टी चलने लगी। और राजनीतिक कारणों से तो नहीं पर श्रृंगारिक कारणों की वजह से अपनी रणनीतियों के तहत जयललिता स्वयं को एमजीआर का सच्चा उत्तराधिकारी मानती थीं। एमजीआर की धर्म पत्नी होने के बावजूद बेचारी जानकी तो कहीं पिक्चर में भी नहीं थी। उन रणनीतिबाज जयललिता से कांग्रेस का कलह उसी समय शुरू हो गया था, जब कांग्रेसियों के फाइनेंस वाली फिल्मों में भी जयललिता भरपूर नखरे करती थी। पर, अभी शायद इसलिए कांग्रेस पर प्रहार कर रही हैं, क्योंकि एक तो चुनाव आ रहे हैं, और दूसरे, कांग्रेस से दोस्ती और दुश्मनी दोनों का अभिनय कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है। रणनीति की राजनीतियां भी बहुत मजबूत हुआ करती है।